शहडोल।बदलते वक्त के साथ किसानों के खेती करने का तरीका भी बदल गया है किसान नए-नए फसलों को लगाकर प्रयोग कर रहे हैं. शहडोल जिले में भी कई किसान ऐसे हैं जो अलग-अलग तरह के फसलों में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं, लेकिन फूल की खेती की ओर किसानों का रुझान कम ही देखने को मिल रहा है. कहने को तो फूल की खेती के लिए सरकार किसानों को सब्सिडी भी दे रही है फिर भी किसान फूलों की खेती से किनारा कर रहे हैं.
फूल की खेती से किसान की दूरी - फूल की खेती से किसानों का किनारा
शहडोल आदिवासी बाहुल्य जिला है यहां भी बदलते वक्त के साथ बहुत कुछ बदला है. यहां भी कई ऐसे किसान हैं जो अलग-अलग तरह के प्रयोग कर रहे हैं. लेकिन सब्सिडी मिलने के बावजूद फूलों की खेती से किसान दूर ही हैं. शहडोल जिले में कोई भी ऐसा बड़ा किसान नहीं है जो बड़ी तादाद में फूल की खेती करता हो. जिले में कुछ किसानों ने फूलों की खेती शुुरू भी की थी लेकिन फिर उसे बंद कर दिया.
बेरुखी क्यों दिखा रहे हैं किसान
कोई किसान फूल की खेती करना चाहता है तो सरकार उसे 50% तक की सब्सिडी राशि दे रही है. हॉर्टिकल्चर विभाग में फूलों की खेती करने पर किसान को 50% तक अनुदान राशि दी जाती है. वावजूद किसान फूलों की खेती करने को लेकर बेरुखी दिखा रहे हैं. उद्यानिकी विभाग के सहायक संचालक किसानों को सलाह देे रहे हैं कि किसानों को फूल की खेती की ओर भी आगे आना चाहिए और अगर कोई किसान फूल की खेती करना चाहता है उसके बारे में जानकारी हासिल करना चाहता है तो हॉर्टिकल्चर ऑफिस से मदद ले सकता है.
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बाजार ही नहीं तो कहां खपाएं
किसान राजेश सिंह के पास 40 जमीन है जिसमें वे खेती करते हैं. अलग-अलग तरह की फसलों का प्रयोग भी करते आ रहे हैं. राजेश ने फूलों की खेती करने का भी उन्होंने प्रयास किया था लेकिन शहडोल में बाजार ना होने के चलते पूरा फूल वेस्टेज हो जाता है, जिससे उन्हें नुकसान हुआ इसलिए धीरे धीरे उन्होंने फूलों की खेती बंद कर दी. राजेश सिंह कहते हैं कि अगर बाजार उपलब्ध हो जाए तो किसान अपने आप फूल की खेती की ओर प्रोत्साहित होने लगेगा. कुछ और किसानों ने भी शुरुआत की थी लेकिन उनको जब एक खुला बाजार और अच्छा दाम नहीं मिला तो उन्होंने भी फूलों की खेती बंद कर दी.
- यहां नहीं है बाजार, खपत भी है कम
शहडोल जिला मुख्यालय में स्थित अनिल पुष्प भंडार के भालू माली बताते हैं कि लोकल में बहुत कम ही फूल लोग लगाते हैं. यहां फूल का उत्पादन ही बहुत कम हो पाता है और जो फूल होता भी है तो यहां बाजार नहीं है. यहां बड़े बड़े मंदिर नहीं हैं जिससे फूल की अच्छी खपत भी नहीं है क्योंकि जितनी बड़ी-बड़ी मंदिरे होंगी फूल की खपत भी उतनी ही ज्यादा होगी. भालू माली कहते हैं कि जब फूल की खपत ही नहीं है तो वो लोग उतना फूल खरीद भी नहीं सकते और वैसे भी शहडोल में फूल की खपत ज्यादा नहीं है और न ही इतने ज्यादा दुकान है वह बताते हैं कि किसान जब फूल की फसल लेकर उनके पास आते हैं तो ऊपर नीचे रेट देना पड़ता है जो किसानों को अच्छा नहीं लगता और जाहिर सी बात है जब आप की लागत भी खेती से नहीं निकलेगी तो किसान को कैसे अच्छा लगेगा ऐसे में किसानों की स्थिति खराब हो जाती है.