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सोयाबीन छोड़ मक्के को दिया मौका, अब सता रही है सही कीमत न मिलने की चिंता

सोना कहे जाने वाले 'सोयाबीन' की फसल की बुवाई को लेकर परेशान शहडोल के किसानों ने इस बार मक्के की खेती की है, लेकिन उसे बाजार मिल पाएगा की नहीं इस बात की चिंता सता रही है.

Farmer replace corn farming instead of soyabins
सोयाबीन छोड़ मक्के को दिया मौका

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Published : Aug 10, 2020, 1:32 PM IST

शहडोल।प्रदेश में मानसून आए एक माह बीत गया है, मानसून आने के साथ ही धान, सोयाबीन और मक्के के बोवनी भी की जा चुकी है. इस साल मानसून के आने के बाद भी बारिश के हाल देख परंपरागत किसानों ने फसलें बदल दीं. ऐसा ही कुछ किया शहडोल के सोयाबीन के परंपरागत किसानों ने, जिन्होंने सोयाबीन के जगह इस बार मक्के की बोवनी की है. यहां सोयाबीन लगातार घट रहे सोयाबीन के रेट और अच्छी गुणवत्ता के सोयाबीन की कमी के कारण किसान काफी परेशान थे, जिस कारण इस बार किसानों का रुझान मक्का की बुवाई में ज्यादा दिखाई दिया. लेकिन अब किसानों को मक्के के भाव को लेकर चिंता सता रही है.

सोयाबीन से नुकसान अब मक्के की ओर देख रहे किसान

शहडोल में जिन किसानों ने मक्के की फसल लगाई वह कभी सोयाबीन की फसल लगाया करते थे. सोहागपुर ब्लॉक के करीब 25 से 30 गांव में किसान सोयाबीन की फसल काफी तादात में लगाते थे और इस फसल से इस इलाके के किसान मालामाल भी हुए, इस इलाके की पहचान ही इस फसल से होने लगी थी, लेकिन अचानक ही सोयाबीन की फसल से अब किसानों का मोह भंग हो चुका है. अब जिस फसल से किसान मालामाल हुए उसकी जगह पर इस सीजन में किसानों ने मक्के की फसल पर भरोसा जताया है, जिससे मक्के का रकबा बढ़ा है. लेकिन इस फसल को लेकर भी किसानों को अब इस बात की चिंता सता रही है.

मक्के की फसल

किसानों ने बताई ये वजह
मक्का किसान नंदकिशोर यादव ने बताया कि कुछ साल में बारिश के क्रम में बदलाव हुआ है, जिस कारण सोयाबीन की उत्पादन में लगातार कमी आई है. नंदकिशोर यादव ने बताया कि अगर कम दिन वाला बीज लगाते थे तो फसल गल जाती थी और अगर ज्यादा दिन वाला बीज लगाते थे तो फसल सूख जाती थी, आलम ये था कि उन्हें कुछ साल से सिर्फ नुकसान ही हो रहा था. इस कारण उन्होंने ने इस बार करीब 4 से 5 एकड़ जमीन में सोयाबीन की जगह पर मक्के की फसल लगाई है, क्योंकि कुछ सालों से सोयाबीन के बीज की लागत भी नहीं निकल रही रही थी.

सोयाबीन की फसल

कृषि वैज्ञानिकों ने बताई ये वजह
कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर मृगेंद्र सिंह ने बताया की पिछले दो से तीन साल में बारिश के डिस्ट्रीब्यूशन में चेंज हुआ है, वहीं लगातार सोयाबीन जो की तिलहन है कि खेती करने से सल्फर और माइक्रो न्यूट्रियंट्स की कमी होने लगी थी, लेकिन किसान जमीन को उस हिसाब से पोषण नहीं दे पा रहा था, जिस कारण सोयाबीन का उत्पादन भी कम हुआ और किसान घाटे में चला गया. मृगेंद्र सिंह ने उम्मीद जताई है कि अब किसान ने क्रॉप रोटेशन किया है तो उपज भी बढ़िया मिलेगी.

हो मक्का खरीदने की व्यवस्था
इस बार क्षेत्र में मक्के का रकबा बढ़ा है, तो जाहिर है कि फसल भी ज्यादा होगी और फिर किसानों के सामने इसे बेचकर सही दाम हासिल करने की चुनौती होगी. सरकार अब तक जिले में सोयाबीन के फसल की खरीदी करती थी, लेकिन मक्के की फसल की खरीदी खरीदी केंद्रों में नहीं होती. ऐसे में किसानों को उत्पादन बेचेंगे की चिंता हो रही है. कई किसानों ने मांग भी की है कि शहडोल जिले में भी खरीदी केंद्रों पर मक्का खरीदने की व्यवस्था की जाए, जिससे वे सोयाबीन की तरह ही मक्के के सही दाम हासिल कर सकें.

शहडोल जिले में 75 प्रतिशत किसान सोयाबीन की फसल को बदलकर मक्के की फसल लगा रहे हैं और उम्मीद है कि उत्पादन भी बम्पर होगा. ऐसे कई किसानों का कहना है कि उन्होंने इस बार क्रॉप रोटेशन किया है. उम्मीद है जो घाटा पिछले कुछ साल में सोयाबीन की फसल लगाकर किसानों को हुआ वह अब इस फसल से पूरा हो जाएगा. किसानों को उम्मीद है कि जिस तरह से पिछले कुछ साल में सोयाबीन की फसल लगाकर बंपर कमाई की, ठीक उसी तरह अब मक्के की फसल भी किसानों के लिए एक बड़ा वरदान साबित होगी.

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