शहडोल। किसानों को लेकर सूबे की सियासत गरम रहती है. किसानों के बारे में वादे तो खूब किए जाते हैं लेकिन हकीकत तो ये है सुविधाएं नहीं मिलने से किसान बदहाल हैं. कहने को तो सरकार तरह-तरह की योजनाएं चला रही है और अपनी पीठ भी थपथपा रही है, पर गरीबों तक लाभ पहुंच ही नहीं पा रहा है. जिस किसान की मजबूरी और परेशानी आपको दिखाने जा रहे हैं, उसे देखकर आप सोचने को मजबूर हो जाएंगे कि किसान का जीवन तमाम दावों के बीच संघर्ष की किन गलियों से गुजर रहा है.
हर जगह लगाई गुहार फिर भी किसान है लाचार, अब तो इनकी सुनो सरकार
शहडोल जिले के ग्रामीण इलाके का चैतू कोल (65 साल), खेती और मजदूरी कर अपने और अपने परिवार का पेट पालता है, लेकिन आज इस गरीब किसान के पास नए बैल खरीदने के लिये पैसे नहीं हैं. सरकारी योजनाओं के फायदे से चैतू और उसका परिवार कोसों दूर है. हर जगह कागज और बातों में मामला उलझा हुआ है.
ये किसान मजबूर भी, परेशान भी
शहडोल जिला मुख्यालय से करीब 15 से 20 किलोमीटर दूर जोधपुर ग्राम पंचायत और उसी गांव में है जमुनिहा टोला, जहां कोल समाज के लोग बहुतायत में रहते हैं और इन्हीं में से एक गरीब किसान है, चैतू कोल (65 साल), खेती और मजदूरी कर अपने और अपने परिवार का पेट पालता है, लेकिन आज इस गरीब किसान के पास नए बैल खरीदने के लिये पैसे नहीं हैं, इसके पुराने बैल मर चुके हैं और अभी जो बैल हैं उनमें से एक बैल भी उसी तरह बूढ़ा हो गया है और एक आंख से अंधा भी. दूसरे बैल को देखकर लगता है जैसे अभी दम तोड़ देगा.
आलम ये है कि ये गरीब किसान अब अपने खेत की जुताई जुगाड़ तंत्र से इन्हीं बैलों से करता है. चैतू खुद रस्सी से एक बैल को आगे से पकड़ कर चलाते हैं और पीछे से उसका बेटा समयलाल हल को पकड़कर खेतों की जुताई करता है. चैतू खुद भी दिव्यांग हैं ज्यादा चलने में परेशानी होती है लेकिन चैतू कहते हैं 'क्या करूं अगर काम न करूं तो घर कैसे चले, बैठा रहूंगा तो खाना कौन देगा.'
गुहार सुनने वाला कोई नहीं
चैतू बताते हैं कि उन्होंने अपनी इस समस्या को लेकर हर जगह गुहार लगाई, सरपंच और सचिव को भी बोला, कई तरह के कागज भी बनवाकर दिए लेकिन हर कोई यही कह रहा कि कागज ऊपर भेज दिया गया है, जब ऊपर से कोई आदेश आएगा तो बताया जाएगा. चैतू कहते हैं 'अगर मैं उस आदेश का इंतजार करता रहा तो फिर बरसात का ये समय ही निकल जायेगा और खेत ऐसे ही पड़े रह जाएंगे.'
पेंशन के लिए भी परेशान
चैतू बताते हैं कि बैलों को लेकर तो वो परेशान हैं ही 65 साल की इस उम्र में जब लोग काम छोड़कर घर पर पेंशन के भरोसे जीने लगते हैं ऐसे में चैतू उसके लिये भी सिर्फ संघर्ष ही कर रहे हैं. लोग मदद के नाम पर सालों से सिर्फ कागज ही बनवा रहे हैं. चैतू कोल का कहना है कि सरकारी योजनाएं किस काम की जब हम गरीबों को उनका आसानी से लाभ मिल ही नहीं पा रहा है.
सरकारी योजनाओं के फायदे से चैतू कोल और उसका परिवार कोसों दूर है. हर जगह कागज और बातों में मामला उलझा हुआ है और चैतू जैसे गरीब इसी तरह से परेशान हो रहे हैं लेकिन उनकी कोई सुनने वाला नहीं है.