शहडोल। अभी कुछ दिन पहले ही प्रधानमंत्री ने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को चंदन के जंगल को बढ़ावा देने की सलाह दी थी. ऐसे में हम आपको मध्य प्रदेश के एक ऐसे गांव से रूबरू कराएंगे, जिस गांव को कभी चंदनवन के नाम से जाना जाता था. आज भी यहां घर-घर में, खेतों में और नदियों के किनारे प्राकृतिक तौर पर ही चंदन के पेड़ उग (Sandalwood farming in shahdol) जाते हैं. आखिर इस गांव में ऐसी क्या खास बात है, जो यहां अपने आप ही चंदन के वृक्ष लग जाते हैं.
जिला मुख्यालय से कितनी दूर है चंदनवन
जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर सिंहपुर ग्राम पंचायत है. इस गांव को कभी चंदनवन (chandanvan in shahdol) के नाम से जाना जाता था. इसकी इसके पीछे की वजह यह है कि गांव में प्राकृतिक तौर पर कहीं भी चंदन के पेड़ उड़ जाते हैं. आज भी इस गांव में घर-घर में चंदन के पेड़ हैं. इतना ही नहीं यहां के खेतों और नदियों के किनारों के जंगलों में भी चंदन के पेड़ों की तादाद बढ़ने लग गई है.
यहां की मिट्टी में ही अलग बात
सिंहपुर गांव के ही रहने वाले शिवनारायण द्विवेदी ने बताया कि उनके गांव को कभी चंदनवन के नाम से जाना जाता था. आज भी कभी-कभी लोग चंदनवन की चर्चा कर देते हैं. उन्होंने बताया कि यहां की मिट्टी में एक अलग ही बात है. तभी तो कहीं भी यहां चंदन के पेड़ उग जाते हैं. यहां आप किसी भी घर में जाएंगे तो वहां चंदन का पेड़ (sandalwood tree in shahdol) जरूर मिलेगा. खेतों में चंदन के पेड़ों की भरमार है. अगर इन चंदन के पेड़ों को शासन प्रशासन संरक्षित करे तो निश्चित तौर पर एक बार फिर से सिंहपुर का यह गांव चंदन वन बन सकता है.
प्राचीन काल से हैं यहां चंदन के पेड़
पूर्व वन परिक्षेत्र अधिकारी और सिंहपुर निवासी जगदीश प्रसाद तिवारी बताते हैं कि प्राचीन काल से ही इस गांव में प्राकृतिक तौर पर चंदन के पेड़ भारी मात्रा में रहे हैं. बीच में बेरोजगारी के कारण कुछ लोगों ने कन्नौज के व्यापारी या फिर इत्र के व्यापारियों को औने पौने दाम में चोरी-छिपे चंदन के पेड़ बेचे. जिसके चलते चंदन के पेड़ों की जमकर कटाई हुई. इसके बाद भी आज सैकड़ों नहीं बल्कि हजारों की संख्या में प्राकृतिक तौर पर यहां चंदन के पेड़ हैं. जो परिपक्व होने से पहले ही काट दिया जाते हैं.