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एक गांव ऐसा भी जहां घर-घर में है चंदन के पेड़, जानें क्या है वजह - शहडोल का चंदनवन गांव

शहडोल जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर सिंहपुर ग्राम पंचायत है. इस गांव को कभी चंदनवन (chandanvan in shahdol) के नाम से जाना जाता था. इसकी इसके पीछे की वजह यह है कि गांव में प्राकृतिक तौर पर कहीं भी चंदन के पेड़ उड़ जाते हैं. आज भी इस गांव में घर-घर में चंदन के पेड़ हैं.

Sandalwood farming in shahdol
शहडोल में चंदन की खेती

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Published : Dec 23, 2021, 4:43 PM IST

शहडोल। अभी कुछ दिन पहले ही प्रधानमंत्री ने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को चंदन के जंगल को बढ़ावा देने की सलाह दी थी. ऐसे में हम आपको मध्य प्रदेश के एक ऐसे गांव से रूबरू कराएंगे, जिस गांव को कभी चंदनवन के नाम से जाना जाता था. आज भी यहां घर-घर में, खेतों में और नदियों के किनारे प्राकृतिक तौर पर ही चंदन के पेड़ उग (Sandalwood farming in shahdol) जाते हैं. आखिर इस गांव में ऐसी क्या खास बात है, जो यहां अपने आप ही चंदन के वृक्ष लग जाते हैं.

शहडोल का चंदनवन गांव

जिला मुख्यालय से कितनी दूर है चंदनवन
जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर सिंहपुर ग्राम पंचायत है. इस गांव को कभी चंदनवन (chandanvan in shahdol) के नाम से जाना जाता था. इसकी इसके पीछे की वजह यह है कि गांव में प्राकृतिक तौर पर कहीं भी चंदन के पेड़ उड़ जाते हैं. आज भी इस गांव में घर-घर में चंदन के पेड़ हैं. इतना ही नहीं यहां के खेतों और नदियों के किनारों के जंगलों में भी चंदन के पेड़ों की तादाद बढ़ने लग गई है.

यहां की मिट्टी में ही अलग बात
सिंहपुर गांव के ही रहने वाले शिवनारायण द्विवेदी ने बताया कि उनके गांव को कभी चंदनवन के नाम से जाना जाता था. आज भी कभी-कभी लोग चंदनवन की चर्चा कर देते हैं. उन्होंने बताया कि यहां की मिट्टी में एक अलग ही बात है. तभी तो कहीं भी यहां चंदन के पेड़ उग जाते हैं. यहां आप किसी भी घर में जाएंगे तो वहां चंदन का पेड़ (sandalwood tree in shahdol) जरूर मिलेगा. खेतों में चंदन के पेड़ों की भरमार है. अगर इन चंदन के पेड़ों को शासन प्रशासन संरक्षित करे तो निश्चित तौर पर एक बार फिर से सिंहपुर का यह गांव चंदन वन बन सकता है.

चंदन के पेड़ का पौधा

प्राचीन काल से हैं यहां चंदन के पेड़
पूर्व वन परिक्षेत्र अधिकारी और सिंहपुर निवासी जगदीश प्रसाद तिवारी बताते हैं कि प्राचीन काल से ही इस गांव में प्राकृतिक तौर पर चंदन के पेड़ भारी मात्रा में रहे हैं. बीच में बेरोजगारी के कारण कुछ लोगों ने कन्नौज के व्यापारी या फिर इत्र के व्यापारियों को औने पौने दाम में चोरी-छिपे चंदन के पेड़ बेचे. जिसके चलते चंदन के पेड़ों की जमकर कटाई हुई. इसके बाद भी आज सैकड़ों नहीं बल्कि हजारों की संख्या में प्राकृतिक तौर पर यहां चंदन के पेड़ हैं. जो परिपक्व होने से पहले ही काट दिया जाते हैं.

शहडोल संभाग में चंदन की भरमार
जगदीश तिवारी ने बताया कि सबसे अधिक चंदन अगर मध्यप्रदेश में कहीं है तो वो शहडोल संभाग है. संभाग के जैतहरी से लेकर अमरकंटक से हथगला तक भारी मात्रा में चंदन के पेड़ पाए जाते हैं. उन्होंने बताया कि यहां की काली मिट्टी इतनी उपयुक्त है कि अपने आप ही अगर कहीं से भी बीज मिल गया तो वो चंदन का पेड़ किसी भी परिस्थिति में तैयार हो जाता है. बड़ी बात ये भी है कि गांव से बाहर आसपास के गांवों में जब चंदन के पेड़ लगाए जाते हैं, तो बड़ी मुश्किल से लग पाते हैं.

2019 में दिया था प्रोजेक्ट
चंदन के पेड़ों को लेकर 2019 में एक प्रोजेक्ट बनाकर जैव विविधता बोर्ड भोपाल को सौंपा गया था. चंदन वृक्षों की स्थिति को स्पष्ट करते जगदीश तिवारी ने बताया कि मैंने कहा था कि यहां लाखों करोड़ों रुपए का कारोबार प्रतिवर्ष चंदन को लेकर हो सकता है. तब इस प्रोजेक्ट को बोर्ड ने स्वीकृत नहीं किया. आज तक यह प्रोजेक्ट पेंडिंग है.

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पूर्व वन परिक्षेत्र अधिकारी ने बताया कि चंदन के पेड़ों की गणना करने के बाद ही प्रोजेक्ट बना कर दिया गया था. साल 2018 में ही हमने करीब 3800 पौधों की गिनती कराई थी. 2018 से अब यह धीरे-धीरे जंगल में भी पहुंच गए हैं, जो सिंहपुर के जंगल में है.

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