शहडोल। कहने को तो दिव्यांगों की मदद के लिए सरकार ने कई तरह की योजनाएं, रियायतें दे रखी है, लेकिन जब उनकी समस्याओं के समाधान के लिए जो संस्था और सेंटर बनाए गए हैं, वहीं ना हों तो फिर दिव्यांगों की समस्याओं का समाधान कैसे हो. यहां शहडोल संभागीय मुख्यालय में जिला दिव्यांग पुनर्वास केंद्र ही नहीं है, डीडीआरसी ( डिस्ट्रिक्ट डिसेबिलिटी रिहैबिलिटेशन सेंटर) ना होने से जिले में दिव्यांगजनों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.
पुर्नवास की आस में दिव्यांग जब सेंटर ही नहीं, तो दिव्यांगों की कौन करे मदद ?
शहडोल जिले का कुछ ऐसा ही हाल है, जिले में भले ही स्वास्थ्य विभाग के जरिए दिव्यांगों को किसी कदर प्रमाण पत्र तो जारी कर दिए जा रहे हैं, लेकिन दिव्यांग पुनर्वास केंद्र ना होने की वजह से यहां के दिव्यांगों को वह सुविधाएं नहीं मिल पाती हैं. जो उन्हें मिलनी चाहिए. या यूं कहें कि उनकी समस्याओं का समाधान नहीं हो पाता है. उनकी मदद नहीं हो पाती और यहां तक कि प्रमाण पत्र में भी जो सही तरीके से उनकी दिव्यांगता की काउंसलिंग होनी चाहिए, संसाधन ना होने की वजह से वह फायदे भी उन्हें नहीं मिल पाते हैं.
दिव्यांग बच्चों संग प्रेरणा जिले को दिव्यांग पुनर्वास केंद्र की जरूरत
प्रेरणा फाउंडेशन की सचिव मधुश्री राय जो अक्सर ही दिव्यांगों के लिए काम करती रहती हैं. वह बताती हैं कि शहडोल जिले में जिला चिकित्सालय से दिव्यांगों को प्रमाण पत्र तो मिल जा रहा, लेकिन एक्चुअल में शहडोल संभाग को डीडीआरसी दिव्यांग पुनर्वास केंद्र की जरूरत है. क्योंकि इसके आ जाने से जिले के दिव्यांगों को न केवल उनका सही हक मिल पाएगा. बल्कि उनकी समस्याओं का सही समाधान होगा. उनकी दिव्यांगता का सही आकलन हो सकेगा, उनकी काउंसलिंग हो सकेगी. साथ ही उन्हें तकनीकी प्रशिक्षण भी मिल सकेगा. इतना ही नहीं जो उनको इक्विपमेंट दिए जाएंगे उसे भी बनाया जा सकता है या रिप्लेस किया जा सकता है. एक तरह से कहा जाए तो उनके हर समस्याओं का समाधान इस केंद्र में हो जाएगा. लेकिन यह शहडोल संभाग का दुर्भाग्य है कि संभाग के तीनों ही जिलों में डीडीआरसी नहीं है.
जानिए क्या होता है दिव्यांग पुनर्वास केंद्र का काम
मधुश्री राय ने डीडीआरसी दिव्यांग पुनर्वास केंद्र के बारे में बताते हुए कहा कि इसे आसान भाषा में समझें तो एक विकलांग व्यक्ति के लिए यह केंद्र संपूर्ण विकास से लेकर सब कुछ करती है. उनके दिव्यांगता का जल्द पहचान करना काउंसलिंग करना उनके पेरेंट्स का काउंसलिंग करना, उन्हें सही सलाह देना, जिससे विकलांगता को कम किया जा सके. कई बार ऐसी चीजें होती हैं कि पेरेंट्स को जानकारी ही नहीं होती है कि उनका दिव्यांग बच्चा स्वस्थ हो सकता है. बस थोड़ी इलाज और ऑपरेशन की जरूरत है. दिव्यांग पुनर्वास केंद्र खुल जाने के बाद ही वही काउंसलिंग हो सकती है. क्योंकि वहां इसके एक्सपर्ट होते हैं. ट्रेंड लोग होते हैं जो उनकी काउंसलिंग करते हैं और काउंसलिंग करने के बाद उन्हें सही सलाह दे सकते हैं.
इतना ही नहीं जो दिव्यांग बच्चे होते हैं. उनकी विकलांगता का भी सही आकलन उसी केंद्र में हो सकता है. जो दिव्यांगों के लिए उपकरण बनते हैं. उसमें कई बार ऐसा होता है कि अगर कहीं कैंप होते हैं तो कैंप में बाहर से आकर विशेषज्ञ लोग उपकरण तो उन दिव्यांगों को दे जाते हैं. लेकिन कई बार ऐसा होता है कि वह उपकरण खराब हो जाते हैं या रिप्लेस करने की जरूरत होती है. तो फिर वह नहीं बन पाता और वह दिव्यांग बिना उपकरण के ही हो जाता है.
मधुश्री राय ने उदाहरण देते हुए बताया कि अगर किसी के घर में एक ब्लाइंड बच्चा पैदा हुआ लेकिन उसके पैरेंट्स को इस बात की जानकारी नहीं है कि अगर उसका एक छोटा सा ऑपरेशन हो जाए तो देख सकता है. डीडीआरसी ना होने की वजह से उन्हें कोई सलाह देने वाला ही नहीं है. लोग इस बात से वंचित रह जाते हैं. बहुत सारे बच्चे जो सुनते बोलते नहीं हैं इनका थोड़ी उपचार, सलाह और प्रशिक्षण दिया जाए तो बोलने सुनने लग सकते हैं.
डीडीआरसी के लिए पहल जारी
सामाजिक न्याय विभाग निशक्तजन कल्याण के उपसंचालक मुद्रिका प्रसाद सिंह भी मानते हैं कि शहडोल संभाग में शहडोल जिले में डीडीआरसी की स्थापना होनी चाहिए जो नहीं है. उसकी स्थापना हो जाने से निश्चित रूप से हमारे यहां के दिव्यांगों को काफी राहत मिलेगी. उनकी काउंसलिंग उनकी सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए उनकी समस्याओं का जल्दी से निराकरण किया जा सकता है. इसके लिए हमारे यहां पहल भी की जा रही है. मुद्रिका प्रसाद सिंह ने कहा कि जिले के कलेक्टर ने जिला रेडक्रॉस सोसायटी के सचिव को डीडीआरसी संचालन के लिए पत्राचार किया हुआ है. निश्चित रूप से कलेक्टर के मार्गदर्शन में डीडीआरसी संचालन की व्यवस्था की जाने का प्रयास तेज़ी से किया जा रहा है.
अभी यहां ऐसे बनते हैं दिव्यांगों के सर्टिफिकेट
सामाजिक न्याय विभाग निशक्तजन कल्याण के उपसंचालक बताते हैं कि अभी हमारे जिले में दिव्यांगों के लिए जिला अस्पताल में प्रत्येक बुधवार और शुक्रवार को उनका परीक्षण किया जाता है और सर्टिफिकेट जारी करने की व्यवस्था की गई है. साथ ही हमारे सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र जो हैं वहां पर भी ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर को अधिकृत किया गया है कि अगर उनके यहां कोई दिव्यांगजन जाते हैं तो उनका परीक्षण कर उनको सर्टिफिकेट जारी करेंगे.
जिले में दिव्यांगों की स्थिति
- स्पर्श अभियान में शहडोल जिला अंतर्गत दिव्यांगों का सर्वे जो साल 2011 में मई महीने में कराया गया है. उसके मुताबिक शहडोल जिले में लगभग 15,742 दिव्यांगजन चिन्हांकित किए गए.
- जिसमें मंदबुद्धि दिव्यांगजन लगभग 2,939, दृष्टिबाधित दिव्यांगजन 2,114, श्रवण बाधित दिव्यांगजन 3, 837, अस्थि बाधित दिव्यांगजन 5,632 और बहु विकलांग 1,220 लगभग हैं.
गौरतलब है कि शहडोल जिले का यह दुर्भाग्य ही है कि आदिवासी जिला है और यहां जिला दिव्यांग पुनर्वास केंद्र ही नहीं है. जहां पर दिव्यांगों की समस्याओं का समाधान हो सके. उम्मीद करते हैं कि जिस तरह से डीडीआरसी के लिए पहल की जा रही है, जल्द ही दिव्यांगों के लिए जिला दिव्यांग पुनर्वास केंद्र का संचालन शहडोल जिले में भी होने लगेगा, क्योंकि इससे न केवल शहडोल जिले के दिव्यांग इसका फायदा उठा सकते हैं. साथ ही जिला दिव्यांग पुनर्वास केंद्र संभाग के अनूपपुर और उमरिया जिले में भी नहीं है, वहां के दिव्यांगों को भी इसका फायदा मिल सकता है.