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जानकारी के अभाव में विलुप्त होती 'दहिमन संजीवनी', कई असाध्य रोगों में है रामबाण - कॉर्डिया मैकलोडी हुक

आयुर्वेद की दुनिया में एक ऐसी औषीधि है दहिमन जो संजीवनी का काम करता है, लेकिन शहडोल जिले के आदिवासी अंचलों में जानकारी के अभाव में यह विलुप्ती के कगार पर है.

Dahiman is in danger of extinction due to lack of information
विलुप्त होती दहिमन संजीवनी

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Published : Nov 20, 2020, 6:53 AM IST

शहडोल। भारत को आयुर्वेद का गुरु माना जाता है, क्योंकि यहां सदियों से आयुर्वेद को लेकर बड़े-बड़े शोध होते रहे हैं. यहां ऐसी कई दुर्लभ प्रजातियों पेड़ पौधों पाए जाते हैं, जो कई असाध्य रोगों के लिए रामबाण उपयोगी साबित हुए है. इन्हीं में से एक है दहिमन का पेड़, जो काफी दुर्लभ होता है और आसानी से इसकी पहचान नहीं की जा सकती. इस पेड़ के फल, पत्ती, जड़ तना सभी कुछ असाध्य रोगों और शारीरिक समस्या के लिए काम आता है. कई तरह की बीमारियों में ये संजीवनी का भी काम करता है.

जानिए दहिमन के बारे में

दहिमन पेड़ का बॉटेनिकल नाम कॉर्डिया मैकलोडी हुक है, जिसे दहिमन या देहिपलस के नाम से भी जाना जाता है, दहिमन एक औषधीय गुणों से भरपूर पेड़ है. जो किसी भी प्रकार की संजीवनी बूटी से कम नहीं है. कहा जाता है कि यह कैंसर जैसी घातक बीमारी को भी ठीक कर सकती है. दहिमन के बारे में हमारे ग्रंथों में भी वर्णन किया गया है और लोगों की कुछ धार्मिक आस्था भी इस पेड़ से जुड़ी हुई है.

दुर्लभ है दहिमन

शहडोल जिले के जंगलों में औषधिय महत्व के कई वनस्पती पाए जाते हैं, जिनके बारे में क्षेत्र के लोगों को जानकारी नहीं है. ऐसा ही है दहिमन का पेड़ जो शहडोल जंगलों में पाया जाता है, लेकिन जानकारी के आभाव में विलुप्ति की कगार पर हैं, यही कारण है कि अब यह ढूंढने से ही मिलता है, लेकिन इसका समय रहते संरक्षण नहीं किया गया तो औषधीय महत्व का ये पेड़ भी कब विलुप्त हो जाएगा किसी को पता भी नहीं चलेगा.

विलुप्त होती दहिमन संजीवनी

विलुप्ति की कगार पर

वन विभाग में कई साल अपनी सेवाएं देने के बाद, अब जड़ी बूटियों में ही अपना ध्यान लगा रहे, रिटायर्ड रेंजर जगदीश तिवारी बताते हैं कि दहिमन का पेड़ शहडोल क्षेत्र में आज से 20 साल पहले तक काफी तादाद में पाए जाते थे, लेकिन आदिवासी अंचल में इसके बारे में जानकारी न होने का कारण इसका इसकी उपयोगिता कम होती जा रही है. किसी सामान्य पेड़ की लकड़ी की तरह इसका भी उपयोग होता गया और संरक्षण के अबाव में यह अब लगभग गायब सा ही हो गया है.

रिटायर्ड रेंजर जगदीश तिवारी ने बताया कि यह विलुप्त प्रजातियों की श्रेणी में भी है, मध्यप्रदेश वन विभाग और जैव विविधता बोर्ड ने भी सूची के अनुसार दहिमन का पौधा अन्य पौधों की तरह विलुप्त श्रेणियों की प्रजाति में है, जिनके संरक्षण की आवश्यकता है.

संरक्षण की जरूरत

ऐसा नहीं है कि दहिमन के पेड़ पूरी तरह गायब हो गए है, ढ़ूंढ़ने पर यहा कदा मिल जाते हैं. अगर इसका संरक्षण किया जाए, तो इसे विलुप्ति से बचाया भी जा सकता है. इसके संरक्षण के लिए जरूरी है कि इसे घरों में रोपित किया जाए. अनुसंधान संस्थान से लाकर इन्हें बगीचे में रोपा जाए.

आयुर्वेद में दहिमन का महत्व

आयुर्वेद और पंचकर्म विशेषज्ञ डॉक्टर तरुण सिंह ने बताया कि दहिमन का पौधा छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में काफी तादाद में पाया जाता है. इसके बहुत सारे औषधीय गुण हैं. इसके अलग-अलग तरीके से उपयोग से अलग अलग बिमारियों से निजात मिल सकती है. दहिमन, पित्त की बीमारियों को बैलेंस करता हैं, साथ ही हाइपरटेंसिव सीवीए की प्रॉब्लम, सेरिब्रोवस्कुलर अटैक, लकवा वगैरह का पेशेंट भी दहिमन का प्रयोग कर आराम पा सकता है.

क्या है दहिमन का उपयोग

  • ब्रेन में क्लॉट में दहिमन का पत्तियों का लेप लगाना और माला पहनने से क्लॉट डिसॉल्व होने लगता है.
  • कई मामलों में इसका उपयोग जहर का प्रबाव कम करने के लिए होता है.
  • कम नीद और ज्यादा नीद के मरीजो की मानसिक स्थिती को संतुलित करता है.
  • अगर कोई मानसिक रोगी शराब नहीं छोड़ पा रहा है तो उसके लिए भी यह बहुत उपयोगी है.
  • सांप के काटने पर भी इसका उपयोग जहर के कम करने के लिए किया जाता.

अंग्रेजों ने कटवा दिए थे पेड़

दहिमन के पौधे को लेकर कुछ जानकर बताते हैं कि अंग्रेजों के समय में यह पेड़ बहुत अधिक संख्या में पाए जाते थे. इसके पत्तों पर कुछ लिखा जाए तो यह उभरकर सामने आ जाता है. इसलिए इसके पत्तों का उपयोग क्रांतिकारी गुप्तचर संदेश भेजने के लिए किया करते थे लेकिन जब इस बात का पता अंग्रेजों को चला तो उन्होंने इसके पेड़ को काटने का आदेश दे दिया इसलिए दहिमन का वृक्ष केवल कुछ जगह पर ही बचे हैं.

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