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अन्नदाताओं के संघर्ष के आगे झुका प्रशासन, जल्द मुआवजा दिलाने का दिया आश्वासन

सिवनी जिले के छुई ग्राम में 18 जुलाई से आमरण अनशन कर रहे किसानों के संघर्ष के आगे शासन-प्रशासन झुक गया. जिला प्रशासन की टीम द्वारा किसानों को शीघ्र अति शीघ्र प्रधानमंत्री फसल बीमा राशि दिलवाने का आश्वासन दिया गया. आश्वासन मिलने के बाद 18 जुलाई से जारी आमरण अनशन खत्म हो गया है.

अन्नदाताओं के संघर्ष के आगे झुका प्रशासन, जल्द मुआवजा दिलाने का दिया आश्वासन

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Published : Jul 26, 2019, 5:34 PM IST

सिवनीः - सिवनी जिले के छुई ग्राम में 18 जुलाई से आमरण अनशन कर रहे किसानों के संघर्ष के आगे शासन-प्रशासन झुक गया. आमरण अनशन पर बैठे किसानों में मुकेश ठाकुर, देवेंद्र विश्वकर्मा व बोथसिंह ठाकुर की हालत बिगड़ गई थी. हालत बिगड़ने के बाद डॉक्टर्स के द्वारा उन्हें ग्लूकोस की बॉटल लगाई गई. मौके पर पहुंचे जिला प्रशासन की टीम द्वारा किसानों को जल्द से जल्द प्रधानमंत्री फसल बीमा राशि दिलवाने का आश्वासन दिया,जिसके बाद किसानों ने अनशन खत्म कर दिया है. अपर कलेक्टर नीरज दुबे ने किसानों को जूस पिलाकर अनशन खत्म करवाया.

अन्नदाताओं के संघर्ष के आगे झुका प्रशासन, जल्द मुआवजा दिलाने का दिया आश्वासन

पिछले साल 13 फरवरी 2018 को जिले में हुई भीषण ओलावृष्टि से किसानों की फसलें नष्ट हो गई थी. इस आपदा से जिले के किसानों को भारी नुकसान हुआ था. इसकी गंभीरता को देखते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने स्वयं प्रशासनिक अमले के साथ जिले का दौरा किया था. उस समय सभी प्रभावित किसानों को आरबीसी 64 के तहत तत्काल मुआवजा प्रदान किया गया था. वहीं मुख्यमंत्री ने किसानों को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना प्रदान करवाने के लिए अधिकारियों को निर्देशित किया था.लेकिन बंडोल राजस्व निरीक्षक मंडल के 54 गांव के किसान ओलावृष्टि के डेढ़ साल बाद भी फसल बीमा की राशि के लिए चक्कर लगाते रहे. कोई सुनवाई नहीं होने पर किसानों ने आमरण अनशन का रास्ता चुना.
किसानों ने 18 जुलाई से लगातार अनिश्चितकालीन आमरण अनशन छुई ग्राम में प्रारंभ किया. अनशन उग्र होते देख कलेक्टर ने तत्काल अपर कलेक्टर नीरज दुबे को अनशन स्थल पर भेजा. अपर कलेक्टर ने किसानों को फसल बीमा राशि दिलाने का आश्वासन दिया. तब जाकर किसान अनशन तोड़ने के लिए राजी हुए. उन्होंने अनशन पर बैठे किसानों को जूस पिलाकर अनशन तुड़वाया.
अब देखने वाली बात यह है कि प्रशासन किसानों को बीमा राशि दिलवाने में सफल हो पाता है या फिर किसानों को उग्र आंदोलन के लिए मजबूर होना पड़ेगा.

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