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Sehore Ganesh Mandir नए साल पर चिंतामन गणेश मंदिर में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़, जानें कैसे उल्टे स्वास्तिक से पूरी होती है मन्नत - उल्टे स्वास्तिक का महत्व

1 जनवरी नववर्ष पर गणेश जी के दर्शन के लिए सुबह से ही कई मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रही. (Sehore Ganesh Mandir) वहीं सीहोर के चिंतामन गणेश मंदिर में लोगों ने उल्टे स्वास्तिक बनाकर मन्नत मांगी. यहां मन्नत पूरी होने के बाद फिर सीधा स्वास्तिक बनाया जाता है. जानें इस मंदिर की और विशेषताएं

Sehore Ganesh Mandir
सीहोर में नए साल पर चिंतामन गणेश मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़

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Published : Jan 1, 2023, 3:45 PM IST

सीहोर में नए साल पर चिंतामन गणेश मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़

सीहोर। नए साल 2023 को लेकर लोगों में भारी उत्साह है. 1 जनवरी को हजारों श्रद्धालु भगवान गणेश के दर्शन करने प्रसिद्ध स्वयंभू श्री चिंतामन गणेश मंदिर पहुंचे. कई विशेषताओं को लेकर श्री चिंतामन गणेश भगवान प्रसद्धि है. स्वयंभू श्री चिंतामन गणेश मंदिर में स्थित श्रीगणेश प्रतिमा का रूप हर दिन बदलता है. यहां उल्टे स्वास्तिक से लोगों की मन्नत पूरी होती है. (Sehore Ganesh Mandir) राजधानी के पास बसे सीहोर जिला मुख्यालय से करीब तीन किलोमीटर दूरी पर स्थित स्वयंभू श्री चिंतामन गणेश मंदिर देशभर में अपनी ख्याति और भक्तों की अटूट आस्था को लेकर पहचाना जाता है.

उल्टे स्वास्तिक से होती है मन्नतें पूरी:यहां गणेश प्रतिमा का हर दिन स्वरूप बदलता है. स्वयंभू श्री चिंतामन गणेश भगवान की देश में 4 प्रतिमाएं हैं. इनमें से एक रणथंभौर, सवाई माधोपुर (राजस्थान), दूसरी उज्जैन स्थित अवंतिका, तीसरी गुजरात में सिद्धपुर और चौथी सीहोर में सिद्धनाथ गणेश मंदिर में विराजित हैं. यहां साल भर लाखों श्रद्धालु भगवान गणेश के दर्शन करने आते हैं. इतिहासविदों की मानें तो श्रद्धालु भगवान गणेश के सामने अपनी मन्नत के लिए मंदिर की दीवार पर उल्टा स्वास्तिक बनाते हैं. मन्नत पूरी होने के बाद सीधा स्वास्तिक बनाते हैं.

Sehore में स्वयंभू चिंतामन मंदिर में गणेश प्रतिमा का हर दिन बदलता है स्वरूप, भक्त ऐसे मांगते हैं मन्नत

मंदिर का है पौराणिक इतिहास:पार्वती नदी के कमल पुष्प से बने हैं चिंतामन प्राचीन चिंतामन सिद्ध गणेश को लेकर पौराणिक इतिहास है. इस मंदिर का इतिहास करीब दो हजार वर्ष पुराना है. किंवदंती है कि सम्राट विक्रमादित्य पार्वती नदी से कमल पुष्प के रूप में प्रकट हुए भगवान गणेश को रथ में लेकर जा रहे थे. सुबह होने पर रथ जमीन में धंस गया. रथ में रखा कमल पुष्प गणेश प्रतिमा में परिवर्तित होने लगा प्रतिमा जमीन में धंसने लगी. बाद में इसी स्थान पर मंदिर का निर्माण कराया गया. आज भी यह प्रतिमा जमीन में आधी धंसी हुई हैइतिहासविदों की मानें तो करीब मंदिर का जीर्णोद्धार एवं सभा मंडप का निर्माण बाजीराव पेशवा प्रथम ने करवाया था. शालीवाहन शक, राजा भोज, कृष्ण राय तथा गौंड राजा नवल शाह आदि ने मंदिर की व्यवस्था में सहयोग किया. नानाजी पेशवा विठूर के समय मंदिर की ख्याति व प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई है.

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