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नवरात्रि स्पेशल: माता विंध्‍यवासिनी का पावन धाम सलकनपुर, जहां किया गया था रक्तबीज का वध

देशभर में कई चमत्कारिक मंदिर हैं, जो भक्तों की आस्था और विश्वास का केंद्र हैं. ऐसा ही एक मंदिर सीहोर जिले में भी आता है. जिसे देवीधाम सलकनपुर के नाम से जाना जाता है. जहां माता विजयासन विराजमान हैं.

सलकनपुर धाम
सलकनपुर धाम

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Published : Oct 20, 2020, 6:46 PM IST

Updated : Oct 20, 2020, 6:51 PM IST

सीहोर। सीहोर जिले का सलकनपुर देवी मंदिर भक्तों की आस्था का केंद्र माना जाता है. यहां माता विजयासेन विराजमान है. यहां आम दिनों में तो श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए पहुंचते ही हैं, लेकिन नवरात्रि में भक्तों की संख्या लाखों तक पहुंच जाती है. हर साल नवरात्रि में सलकनपुर मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं जहां नौ दिनों तक माता की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. इस मंदिर की ख्याति दूर-दूर फैली हुई है.

सलकनपुर धाम

मंदिर तक कैसे पहुंचे

ये मंदिर 1000 फीट ऊंची पहाड़ी पर विराजमान है. इस मंदिर पर पहुंचने के लिए भक्तों को 1400 सीढ़ियों से चढ़कर जाना होता है. जबकि इस पहाड़ी पर जाने के लिए अब सड़क मार्ग भी बना दिया गया है. यह रास्ता करीब साढ़े 4 किलोमीटर लंबा है. इसके अलावा दर्शनार्थियों के लिए रोप-वे भी शुरू हो गया है, जिसकी मदद से यहां पांच मिनट में पहुंचा जा सकता है. सलकनपुर राजधानी भोपाल से 75 किलोमीटर दूर है, तो होशंगाबाद से इस मंदिर की दूरी 40 किलोमीटर है. जबकि इंदौर से 180 और सीहोर से यह मंदिर 90 किमी की दूर है. इन सभी शहरों से मंदिर पुहंचने के लिए बसें मिलती हैं.

मंदिर की विशेषता

पुराणों के अनुसार देवी विजयासन माता पार्वती का ही अवतार हैं. जिन्होंने देवताओं के आग्रह पर रक्तबीज नामक राक्षस का वध किया था और सृष्टि की रक्षा की थी. विजयासन देवी को कई लोग कुलदेवी के रूप में भी पूजते हैं. माता कन्याओं को मनचाहा जीवनसाथी का आशीर्वाद देती हैं, वहीं भक्तों की सूनी गोद भी भरती हैं. भक्तों की ही श्रद्धा है कि इस देवीधाम का महत्व किसी शक्तिपीठ से कम नहीं हैं.

विजयासन धाम, सलकनपुर

स्वयं-भू है देवी विजयासन की प्रतिमा

मां विजयासन देवी की प्रतिमा स्वयं-भू है. यह प्रतिमा माता पार्वती की है, जो वात्सल्य भाव से अपनी गोद में भगवान गणेश को लेकर बैठी हुई है. इस भव्य मंदिर में महालक्ष्मी, महासरस्वती और भगवान भैरव की प्रतिमाएं भी स्थापित हैं. भक्तों का कहना है कि एक मंदिर में कई देवी-देवताओं का आशीर्वाद पाने का सभी को सौभाग्य मिल जाता है.माता रानी के दर्शन मात्र से ही भक्तो के सारे कष्ट हरने सहित सारी मनोकामनां पूर्ण हो जाती हैं.

विजयासन धाम की उत्पत्ति

शुरू से ही लोगों के मन में मां विजयासन धाम की उत्पत्ति, प्राकट्य, मंदिर निर्माण को लेकर जिज्ञाषा रही है, लेकिन अभी तक इसके कोई भी ठोस साक्ष्य और प्रमाण नहीं मिल पाए हैं. कुछ पंडितों का कहना है कि यहां मां का आसन गिरने से यह विजयासन धाम बना लेकिन विजय शब्द का योग कैसे हुआ, इसका सटीक उत्तर वे नही दे पाएं है.

श्रीमद् भागवत महापुराण में उल्लेख

श्रीमद् भागवत कथा के अनुसार जब रक्तबीज नामक देत्य से त्रस्त होकर जब देवता देवी की शरण में पहुंचे. तो देवी ने विकराल रूप धारण कर लिया और इसी स्थान पर रक्तबीज का संहार कर उस पर विजय पाई. मां भगवति की इस विजय पर देवताओं ने जो आसन दिया, वहीं विजयासन धाम के नाम से विख्यात हुआ और मां का यह रूप विजयासन देवी कहलाया.

बंजारों ने कराया था निर्माण

मंदिर निर्माण के संबंध में कहा जाता है कि आज से करीब 300 वर्ष पूर्व बंजारों द्वारा उनकी मनोकामना पूर्ण होने पर इस मंदिर का निर्माण किया गया था. मंदिर निर्माण और प्रतिमा मिलने की इस कथा के अनुसार पशुओं का व्यापार करने वाले बंजारे इस स्थान पर विश्राम और चारे के लिए रूके. अचानक ही उनके पशु अदृष्य हो गए.

माता विंध्‍यवासिनी

बंजारों की हुई थी यहां मन्नत पूरी

इस तरह बंजारे पशुओं को ढूंडने के लिए निकले, तो उनमें से एक बृद्ध बंजारे को एक बालिका मिली. बालिका के पूछने पर उसने सारी बात कही. तब बालिका ने कहा की आप यहां देवी के स्थान पर पूजा-अर्चना कर अपनी मनोकामना पूर्ण कर सकते हैं. बंजारे ने कहा कि हमें नही पता है कि मां भगवति का स्थान कहां है. तब बालिका ने संकेत स्थान पर एक पत्थर फेंका. जिस स्थान पर पत्थर फेंका वहां मां भगवति के दर्शन हुए. उन्होने मां भगवति की पूजा-अर्चना की. कुछ ही क्षण बाद उनके खोए पशु मिल गए. मन्नत पूरी होने पर बंजारों ने मंदिर का निर्माण करवाया.

धुने की स्थापना

हिंसक जानवरों, चौसठ योग-योगिनियों का स्थान होने से कुछ लोग यहां पर आने में संकोच करते थे, तब स्वामी भद्रानंद ने यहां तपस्या कर चौसठ योग-योगिनियों के लिए एक स्थान स्थापित किया. मंदिर के समीप ही एक धुने की स्थापना की और इस स्थान को चैतन्य किया है.धुने में एक अभिमंत्रित चिमटा, जिसे तंत्र शक्ति से अभिमंत्रित कर तली में स्थापित किया गया है. आज भी इस धुने की भवूत को ही मुख्य प्रसाद के रूप में भक्तगणों को वितरित किया जाता है.

Last Updated : Oct 20, 2020, 6:51 PM IST

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