सतना।मध्य प्रदेश में कोरोना के संकट के बाद सतना जिले के आदिवासी इलाकों को पानी की प्यास तड़पा रही है. जून की चिलचिलाती धूप और गर्मी के बाद जिले के मझगवां तहसील के ग्रामीण पानी की बूंद-बूंद के लिए तरस रहे हैं. मझगवां तहसील के अधिकांश इलाको में आदिवासी रहते हैं और इन लोगों को साल के 12 महीने पीने के पानी की दिक्कत रहती है.
- बीहड़ जंगली रास्तों से जाते हैं पानी लेने
सतना जिला मुख्यालय से 80 किलोमीटर दूर मझगवां तहसील में आदिवासी गांव रामनगर खोखला, पड़ोधारी, पड़ोऊपर, पड़मनिया और मलगौसा बसे हैं. इन आदिवासी गांवों में रहने वाले लोगों को गर्मी के दिनों में पानी के लिए 5 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है. यह लोग बीहड़ जंगली रास्तों से पानी लेने के लिए जाते हैं, लेकिन इन्हें गड्ढे, नाले का प्रदूषित पानी ही इन्हें पीने को मिलता है.
प्रदूषित पानी पीने से कारण इन गांवों के कई लोगों की जान जा चुकी है, लेकिन इसके बावजूद मजबूरी में यह आदिवासी यही पानी पीने को मजबूर हैं. एक गैरसरकारी आंकड़े के मुताबिक, इलाके के एक गांव में पिछले 10 वर्षों में प्रदूषित पानी पीने के कारण सैकड़ों लोगों की मौत हुई है. 20 से अधिक बच्चे गंभीर बीमारी और कुपोषण का शिकार हुए हैं. 500 की आबादी वाले इस आदिवासी क्षेत्र में कोई हेंडपंप, कुआं या पानी का कोई अन्य साधन नहीं है. यहां पानी का एकमात्र साधन एक पहाड़ी नाला (दल्लन बीहड़) है जहां हमेशा जान का खतरा बना रहता है. जंगली जानवर और डकैतों का खौफ रहता है. आदिवासी सुबह से शाम तक यहां पानी भरते रहते है. इंसानों के साथ यहां उनके पालतू जानवर भी प्रदूषित पानी पीते है.
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- नहीं पहुंच पाती सरकारी योजना
इस गांव में सरकार की योजना पहुंचने से पहले दम तोड़ देती है. न कोई नल जल योजना, न हेंडपंप, न कोई अन्य साधन. ऐसा लगता है इन लोगों को सरकार अपनी जनता समझती ही नहीं है. वहीं, इस इलाके में पानी मुहैया न होने का एक यह भी कारण है कि यहां गहरे कुएं खोदने के बाद भी इलाके के जमीन से पानी नहीं निकला है. ऐसे में सरकार को जो दूसरे विकल्प इन लोगों के लिए खोजने की जरुरत थी वह अभी तक नहीं ढूढ पाई है.