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सतनाः धारकुंडी आश्रम में कोरोना के चलते नहीं मनाई जाएगी गुरू पूर्णिमा, प्रवेश पर प्रतिबंध - Why Guru Purnima is celebrated

सतना जिले के धारकुंडी आश्रम में प्रकृति और आध्यात्म का अनुपम सौंदर्य देखने को मिलता है. जहां हर साल गुरू पूर्णिमा के दिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं, लेकिन इस साल कोरोना के चलते यहां गुरू पूर्णिमा नहीं मनाई जा रही है. साथ ही आश्रम में 31 जुलाई तक प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया है.

Guru Purnima will not celebrated in Dharkundi Ashram due to Corona in satna
प्रवेश पर लगा प्रतिबंध

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Published : Jul 5, 2020, 8:09 PM IST

सतना।जिला मुख्यालय से करीब 70 किलोमीटर दूर धारकुंडी आश्रम में प्रकृति और आध्यात्म का अनुपम रूप देखने को मिलता है. सतपुड़ा के पठार की विंध्यांचल पर्वत श्रृंखलाओं में स्थित धारकुंडी में प्रकृति की अनुपम छटा दिखाई देती है. यहां पर गुरू पूर्णिमा के दिन हजारों की तादाद में भक्तों का मेला लगता है और यहां स्वामी सच्चिदानंद महाराज के परमहंस आश्रम में भव्य भंडारे का भी आयोजन किया जाता है, लेकिन इस साल कोरोना के चलते यहां गुरू पूर्णिमा नहीं मनाई जा रही है. साथ ही इस आश्रम में प्रवेश के लिए 31 जुलाई तक प्रतिबंध लगा दिया गया है.

धारकुंडी आश्रम में प्रवेश वर्जित

आश्रम में भक्तों के आने पर लगा प्रतिबंध

धारकुंडी आश्रम में जो भी भक्त आता है, वह भूखा वापस नहीं जाता है. पूरे देश में फैली कोविड-19 की महामारी की वजह से इस परमहंस आश्रम में भक्तों को आने के लिए प्रतिबंध लगा दिया गया है. अपील की गई है कि सभी भक्त अपने घरों से ही भगवान की पूजा अर्चना करें और जैसे ही स्थिति सामान्य होगी तब आश्रम के अंदर भक्तों को आने की अनुमति दी जाएगी. सतना जिले के अंदर ये धाम गुरू पूर्णिमा के दिन बहुत ही शुभ माना जाता है. कहते हैं जो भक्त मन से इस धाम में आकर स्वामी सच्चिदानंद महाराज की पूजा-अर्चना करता है उसकी हर मनोकामनाएं पूरी होती है.

कुंड की मान्यता

ऐसा माना जाता है कि महाभारत काल में युधिष्ठिर और यक्ष का प्रसिद्ध संवाद यहां के कुंड में हुआ था, जिसे अघमर्षण कुंड कहा जाता है. ये कुंड भूतल से करीब 100 मीटर नीचे है. धारकुंडी मूलत: दो शब्दों से मिलकर बना हुआ है, धार और कुंडी यानी जल की धारा और जल कुंड, विंध्याचल की पर्वत श्रेणियों के दो पर्वत की संधियों से प्रस्फुटित होकर प्रवाहित होने वाली जल की निर्मल धारा यहां एक प्राकृतिक जल कुंड का निर्माण करती है, लेकिन आज तक कोई नहीं जान पाया कि इस कुंड में जल कहां से आती है.

आश्रम में अतिथियों के लिए खाने पीने की उत्तम व्यवस्था

योगीराज स्वामी परमानंद परमहंस के सानिध्य में सच्चिदानंद ने चित्रकूट के अनुसूइया आश्रम में करीब 11 वर्ष की साधना की. इसके बाद सच्चिदानंद महाराज 22 नवंबर सन 1956 में यहां आए और अपनी आध्यात्मिक शक्ति से यहां के प्राकृतिक सौंदर्य को आश्रम के माध्यम से एक सार्थक रूप दिया. उनके आश्रम में अतिथियों के रहने के लिए और भोजन की मुफ्त में उत्तम व्यवस्था है. इस आश्रम में आने वाले व्यक्ति को जीवन में अध्यात्म और शांति का अनुपम अनुभव होता है. यहां आकर मन को बहुत सुकून मिलता है. प्राकृतिक सौंदर्य देखते ही बनती हैं.

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