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'ऐश्वर्या-कैटरीना' के साथ ही 'सलमान-शाहरुख' की भी लगी बोली - मंदाकनी नदी पर मेला

सतना जिले की धार्मिक नगरी चित्रकूट में दिवाली के बाद घोड़े-गधों के मेले का आयोजन किया जाता है. खास बात ये है कि ये मेला औरंगजेब के शासन काल से लगता आ रहा है.

गधों का मेला

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Published : Oct 30, 2019, 11:55 PM IST

Updated : Oct 31, 2019, 10:07 AM IST

सतना। जिले की धार्मिक नगरी चित्रकूट में दिवाली के बाद तीन दिनों तक गधों का मेला लगता है. इसकी खास विशेषता होती है कि इसमें दूर-दराज से व्यापारी गधे और अच्छी किस्म के घोड़े लाकर यहां बेचते हैं. कहा जाता है ये मेला मुगल शासक औरंगजेब के समय से चला आ रहा है. मंदाकिनी नदी के किनारे लगने वाला इस मेले में खासतौर पर देशी-विदेशी किस्म के गधों का कारोबार होता है. इस मेले में व्यापारी हजारों की संख्या में गधे और घोड़े लाते हैं और उन्हें बेचते हैं. गधे की वजन उठाने की क्षमता जितनी ज्यादा होती है उसे उतना ही ऊंचा दाम मिलता है. जानकारी के मुताबिक पिछले साल इस मेला का कारोबार करोड़ों में था.

गधों का मेला

औरंगजेब और मेले का संबंध
मुगल शासक औरंगजेब ने जब यहां कि रियासत पर चढ़ाई की थी तो उसके लश्कर ने मैदान में पड़ाव डाला था. कहा जाता है कि अचानक उसके घोड़े मरने लगे और सेना में घोड़ों की कमी हो गई. तब मुगल शासक ने यहां घोड़ों और गधों का बाजार लगाया था. तभी से ये परंपरा भी जारी है.

हीरो-हीरोइन के नाम पर रखे जाते हैं गधों के नाम
गधा मेले की खास बात ये है कि नस्ल,रंग और ब्रीड के मुताबिक गधों की कीमत लगाई जाती है और उसी नाम पर व्यापारी अपने हीरो-हीरोइन के नाम पर गधों और घोड़ों का नामकरण भी करते हैं. इनमें सलमान, शाहरुख, कटरीना और ऐश्वर्या जैसे नाम ज्यादा प्रचलित हैं. इतना प्राचीन मेला होने के बावजूद बुनियादी सुविधाओं की कमी के चलते व्यापारियों को खासी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. ठंड के मौसम में न तो उन्हें रहने के लिए कोई विशेष इंतजाम होते हैं और न ही उनके सुरक्षा के. गधा व्यापारी दिलशाद बताते हैं कि उनके परिवार का ये पुश्तैनी धंधा है. वे कई दशकों से इस मेले में शामिल हो रहे हैं. वहीं सूरजदीन ने बताया कि अब पहले जैसे रेट नहीं मिलते.

मेले के ठेकेदार बग्गड़ पांडे बताते हैं कि मेले में प्रदेश के ही नहीं बाहर से भी लोग आते हैं. घोड़ों और गधों की नस्ल के हिसाब से बोली लगती है. जो हजारों से शुरु होकर लाखों तक पहुंच जाती है. आधुनिकता के दौर में बढ़ती मशीनरी और तकनीक की वजह से इन व्यापारियों को प्रतियोगिता की होड़ में टिक पाने में परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. जिसके चलते दिन प्रतिदिन उनके जानवरों की बिक्री कम होती जा रही है और ये ऐतिहासिक मेला अपनी पहचान खोता जा रहा है.

Last Updated : Oct 31, 2019, 10:07 AM IST

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