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अर्जुन के बाद सतना में कौन संभालेगा कांग्रेस का गांडीव, खत्म होगा दशकों का वनवास, या फिर खिलेगा कमल

सतना लोकसभा सीट पर 1996 के आम चुनाव में दो पूर्व मुख्यमंत्रियों को पटखनी देकर बसपा प्रत्याशी ने जीत दर्ज की थी, विंध्य अंचल की सतना सीट का मतदाता अप्रत्याशित परिणाम के लिए जाना जाता है. ज्यादातर चुनाव में ऐसा ही होता है, जब बीजेपी-कांग्रेस यहां के मतदाताओं का मूड भांपने में फेल हो जाती है और अप्रत्याशित नतीजे सामने आते हैं.

बीजेपी प्रत्याशी गणेश सिंह और कांग्रेस प्रत्याशी राजाराम त्रिपाठी

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Published : May 5, 2019, 12:33 AM IST

सतना।मध्यप्रदेश की औद्योगिक नगरी सतना अपनी ऐतिहासिक-सांस्कृतिक विरासत के लिए जानी जाती है, जबकि विंध्य अंचल की सियासत का बड़ा केंद्र भी माना जाता है. सतना लोकसभा सीट पर इस बार का सियासी रण सबसे दिलचस्प माना जा रहा है क्योंकि बीजेपी ने यहां से गणेश सिंह को मैदान में उतारा है तो कांग्रेस ने राजाराम त्रिपाठी पर दांव लगाया है.

सतना में बीजेपी को फिर मिलेगी जीत या कांग्रेस की होगी वापसी

सतना संसदीय क्षेत्र में बीजेपी का दबदबा माना जाता है. यहां कांग्रेस भी समय-समय पर जीत दर्ज करती रही है, जबकि बसपा प्रत्याशी हर चुनाव में यहां निर्णायक भूमिका अदा करता है. 1967 से अस्तित्व में आई इस सीट पर अब तक 12 आम चुनाव हुए हैं. जिनमें 6 बार बीजेपी तो 4 बार कांग्रेस, जबकि 1-1 बार बसपा और जनसंघ के प्रत्याशी ने जीत दर्ज की है. सतना हमेशा अपने अप्रत्याशित परिणामों के लिए जाना जाता रहा है, 1996 के चुनाव में इस सीट पर सूबे के दो-दो पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह और विजय सकलेचा को बसपा प्रत्याशी सुखलाल कुशवाहा ने हराकर सबको चौंका दिया था.

ग्रामीण-शहरी आबादी में बंटी सतना सीट पर इस बार कुल 15 लाख 63 हजार 435 मतदाता वोट करेंगे. जिनमें 8 लाख 25 हजार 414 पुरुष तो 7 लाख 35 हजार 994 महिला मतदाता हैं. इस क्षेत्र में सतना, मैहर, अमरपाटन, रामपुर-वघेलान, रैगांव, नागौद, चित्रकूट विधानसभा सीटें शामिल हैं. विधानसभा चुनाव के नतीजों के आधार पर 5 सीटों पर बीजेपी काबिज है तो 2 सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है. इस लिहाज से इस सीट पर बीजेपी का दबदबा नजर आ रहा है. बीजेपी पिछले पांच चुनावों से यहां लगातार जीत दर्ज करती आ रही है. हालांकि, पिछले आम चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी अजय सिंह बीजेपी के गणेश सिंह से मामूली अंतर से चुनाव हारे थे.

खास बात ये है कि सतना जिले में जातिगत राजनीति हावी है. ब्राह्मण, क्षत्रिय, ओबीसी वोटर मिलकर यहां का सियासी समीकरण तय करते हैं. यही वजह है कि कांग्रेस ने 41 साल बाद ब्राह्मण कार्ड खेलते हुए राजाराम त्रिपाठी को मैदान में उतारा है, जबकि बीजेपी ने ओबीसी वर्ग से आने वाले गणेश सिंह पर फिर दांव लगाया है,1991 में कांग्रेस के दिग्गज नेता अर्जुन सिंह सतना से कांग्रेस के आखिरी सांसद थे.

बीजेपी प्रत्याशी इस बार भी यहां विकास मुद्दे पर चुनाव मैदान में हैं, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी बीजेपी सांसद की नाकामियां गिनाते हुए चुनाव लड़ रहे हैं. बीजेपी-कांग्रेस से इतर बसपा प्रत्याशी अच्छे लाल कुशवाहा भी अपनी जीत का दावा करने में पीछे नहीं हैं.

विंध्य की औद्योगिक नगरी सतना में 7 से ज्यादा सीमेंट फैक्ट्रियां हैं, बावजूद इसके ज्यादातर स्थानीय युवा बेरोजगार हैं, जबकि पूरे क्षेत्र में शिक्षा-स्वास्थ्य और बेरोजगारी आज भी सबसे बड़ा मुद्दा है. ऐसे में सतना का मतदाता 6 मई को किसे सतना का सरताज बनाता है. ये तो 23 मई को आने वाले नतीजे ही तय करेंगे.

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