सागर। जिले के रेहली विकासखंड के रानगिर में भरपूर प्राकृतिक सौंदर्य के बीच पहाड़ी पर मां हरसिद्धि (Maa Harsiddhi) का मंदिर स्थापित है. मंदिर के चारों तरफ भरे पूरे जंगल है और बीच से देहार नदी गुजर रही है. मां की प्रतिमा के बारे में कहा जाता है कि यह स्वयंभू प्रकट प्रतिमा है. मंदिर को लेकर भी तरह-तरह की किवदंतियां हैं. कोई सती के योग बल से शरीर त्याग की कहानी से जोड़ता है, तो किसी का कहना है कि जंगल से एक छोटी बालिका बच्चों के साथ खेलने आती थी और किसी चरवाहे ने जब बालिका का पता पूछा, तो बालिका यहीं बस गई. मां हरसिद्धि के बारे में कहा जाता है कि मां दिन में तीन रूप बदलती हैं. रानगिर मंदिर की महिमा के बारे में कहा जाता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से एक नारियल अर्पण कर मनोकामना मांगता है तो जरूर पूरी होती है.
क्या है रानगिर की हरसिद्धि माता के मंदिर का इतिहास
रहली मार्ग पर स्थित 5 मील से मां हरसिद्धि के मंदिर के लिए रास्ता जाता है. मां हरसिद्धि के मंदिर को लेकर मंदिर प्रबंधन के पास कोई प्रमाण या दस्तावेज मौजूद नहीं है, लेकिन बुजुर्गों से सुनी कहानी के अनुसार लोग कहते हैं कि रानगिर में छत्रसाल बुंदेला और धामोनी के मुगल फौज के बीच युद्ध हुआ था. युद्ध में राजा छत्रसाल बुंदेला विजयी हुए थे. उन्होंने मां हरसिद्धि की महिमा से प्रभावित होकर करीब 200 साल पहले मंदिर का निर्माण कराया था. पहाड़ी पर स्थित होने के कारण मंदिर पहुंचना काफी दुर्गम था, लेकिन समय के साथ-साथ सुविधाएं बढ़ीं और आज मंदिर सुगमता से पहुंचा जा सकता है.
मां हरसिद्धि मंदिर को लेकर किवदंतियां
मां हरसिद्धि मंदिर को लेकर किवदंती है कि दक्ष प्रजापति के अपमान से दुखित होकर सती ने योग बल से अपना शरीर त्याग दिया था. सती के शरीर त्यागने से नाराज भगवान शंकर (Lord Shiva) ने सती के शव को लेकर विकराल तांडव किया. जब भगवान शिव के कोप से पूरे विश्व में हाहाकार मच गया. तब भगवान विष्णु ने सती के शव को अपने चक्र से अंगों में बांटा और यह अंग जहां-जहां गिरे, वहां शक्ति पीठ स्थापित हैं. कहा जाता है कि सती माता की रान यानि जांघ इसी जंगल में गिरी थी, इसीलिए यह इलाका रानगिर कहलाया.