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महाराष्ट्र के पंढरपुर की तर्ज पर बना सागर में श्रीदेव पंढरीनाथ मंदिर

श्रीदेव पंढरीनाथ मंदिर कई मायनों में महाराष्ट्र के पंढरपुर की तर्ज पर बनाया गया है. जिसमें भगवान विट्ठल की मनमोहक प्रतिमा स्थापित की गई है. मध्य प्रदेश के मराठी बंधुओं और स्थानीय लोगों में यह आस्था का केंद्र है. जानिए इस मंदिर की खास बातें...

Sridev Pandharinath Temple
श्रीदेव पंढरीनाथ मंदिर

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Published : Feb 22, 2021, 8:04 PM IST

सागर।आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि महाराष्ट्र वासियों के प्रमुख तीर्थ भगवान विट्ठल के महाराष्ट्र के पंढरपुर में स्थित श्रीदेव पंढरीनाथ मंदिर की तर्ज पर बुंदेलखंड में भी एक पंढरपुर बसाया गया है. करीब 230 साल पहले सागर जिले की रेहली में सुनार और देहार नदी के संगम पर श्रीदेव पंढरीनाथ मंदिर का निर्माण किया गया था. इस मंदिर का निर्माण शिवाजी के हिंदू राष्ट्र के अभियान से जुड़ा हुआ है. जब शिवाजी अपने क्षेत्र का विस्तार करते हुए बुंदेलखंड पहुंचे और उन्होंने इस इलाके का कामकाज राजा खेर के लिए सौंपा था. तब श्रीदेव पंढरीनाथ मंदिर का निर्माण सागर के राजा खेर की महारानी लक्ष्मीबाई खेर ने कराया था.

भगवान विट्ठल का मंदिर

महाराष्ट्र के पंढरपुर की तर्ज पर बना ये मंदिर

खास बात यह है कि ये श्रीदेव पंढरीनाथ मंदिर कई मायनों में महाराष्ट्र के पंढरपुर की तर्ज पर बनाया गया है. जिसमें भगवान विट्ठल की मनमोहक प्रतिमा स्थापित की गई है. मध्य प्रदेश के मराठी बंधुओं और स्थानीय लोगों में यह आस्था का केंद्र है. 200 से ज्यादा साल पुराने इस श्रीदेव पंढरीनाथ मंदिर का नए सिरे से जीर्णोद्धार किया गया है और यहां आने वाले भक्तों के लिए तमाम सुविधाएं भी मुहैया कराई जाती हैं. जबलपुर से भगवान विट्ठल के दर्शन करने आए श्रद्धालु हेमंत कुमार भावे ने बताया कि उन्होंने यहां का नाम बहुत सुना था. यहां पर आने की कई दिनों से इच्छा भी थी.

छात्रपति शिवाजी के विजय अभियान से जुड़ा हुआ है इस मंदिर का निर्माण

महाराष्ट्र के पंढरपुर में विराजे भगवान विट्ठल के मंदिर की तर्ज पर बनाया गया यह मंदिर शिवाजी महाराज के विजय अभियान से जुड़ा हुआ है. इस श्रीदेव पंढरीनाथ मंदिर के बारे में बताया जाता है कि हिंदू राष्ट्र की स्थापना के संकल्प के साथ जब महाराज शिवाजी विजय अभियान पर निकले थे, तो आगे बढ़ते हुए उन्होंने इंदौर, ग्वालियर, झांसी और सागर पर भी परचम लहराया था.

भगवान विट्ठल का मंदिर

रानी लक्ष्मीबाई खेर ने कराया था मंदिर का निर्माण

शिवाजी महाराज ने राजा खेर के लिए सागर की जिम्मेदारी सौंपी थी. जब वह महाराज खेर सागर में बसे, तो उनके साथ भारी संख्या में मराठी लोग भी सागर और आसपास के इलाकों में बस गए. जिन्हें अलग-अलग जिम्मेदारी सौंपी गई थी. लेकिन यहां रहने वाले सभी मराठी भगवान विट्ठल के दर्शन से वंचित रह जाते थे और उन्हें हमेशा भगवान विट्ठल के दर्शनों की कामना रहती थी. सागर के राजा की रानी लक्ष्मीबाई खेर भी भगवान विट्ठल की भक्त थी. उन्होंने पंढरपुर की तर्ज पर यहां भी पंढरपुर स्थापित करने का फैसला किया और उनकी तलाश रेहली में सुनार और देहार नदी के संगम पर समाप्त हुई. जहां उन्होंने पंढरपुर नाम की जगह बसाने के साथ पंढरपुर की तर्ज पर भगवान विट्ठल का मंदिर भी बनाया.

भक्त पुंडरीक और भगवान विष्णु की कहानी से जुड़ा है भगवान विट्ठल का मंदिर

भगवान विट्ठल की स्थापना की कहानी भगवान विष्णु के परम भक्त पुंडरीक से जुड़ी हुई है. पुंडरीक वेद शास्त्रों के ज्ञाता, तपस्वी और त्रिकाल संध्या करने वाले भगवान विष्णु के भक्त थे. पुंडरीक अपने माता-पिता के भी परम भक्त थे और उनकी सेवा में समर्पित रहते थे. कहा जाता है कि पुंडरीक की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु दर्शन देने आए थे, लेकिन पुंडरीक उस समय अपने माता पिता की सेवा में लीन थे. जब भगवान विष्णु प्रकट हुए, तो भक्त पुंडलिक ने उनसे निवेदन किया कि वह अपने माता पिता की सेवा कर ले, तब तक वह आसन ग्रहण करें और उन्होंने वहीं पर एक ईंट पर भगवान विष्णु को विराज के लिए कहा. श्रीदेव पंढरीनाथ मंदिर मंदिर के प्रबंधक अजित सप्रे ने कहा कि पंढरपुर की तर्ज पर ही मंदिर का निर्माण कराया गया. उन्होंने कहा कि पंढरपुर का श्रीदेव पंढरीनाथ मंदिर दो नदियों के संगम पर बना है.

भगवान विष्णु का दूसरा नाम विट्ठल

भगवान विष्णु कमर पर हाथ रखकर प्रतीक्षा की मुद्रा में ईट पर विराज गए, मराठी में ईट को विठ कहा जाता है. भक्त पुंडरीक जब माता-पिता की सेवा करने के बाद ईट पर बैठे भगवान विष्णु के पास पहुंचे, तो भगवान विष्णु ने उनकी माता पिता की सेवा और अपनी भक्ति से प्रभावित होकर वर मांगने के लिए कहा तो भक्त पुंडरीक ने उनसे वहीं पर विराज ने की प्रार्थना की. भगवान विष्णु ने उनकी प्रार्थना को स्वीकार किया और उसी ईट पर विराज गए, मराठी में विट को बिठ कहा जाता है, इसी से भगवान विष्णु का नाम विट्ठल पड़ा.

बुंदेलखंड में श्रीदेव पंढरीनाथ मंदिर

महाराष्ट्र के पंढरपुर से कई समानताएं

  • सागर जिले की रेहली में पंढरपुर में स्थित भगवान पंढरीनाथ यानि भगवान विट्ठल का मंदिर कई मायनों में महाराष्ट्र के पंढरपुर में स्थित भगवान विट्ठल के मंदिर जैसा ही है. मंदिर का निर्माण 1790 में रानी लक्ष्मीबाई खेर ने कराया था.
  • महाराष्ट्र के पंढरपुर में स्थित भगवान विट्ठल का मंदिर भीमा और मुठा नदी के संगम पर है और नदी का आकार अर्धचंद्राकार है. रेहली में स्थित पंढरीनाथ का मंदिर सुनार और देहर नदी के संगम पर स्थित है. इस नदी का आकार भी अर्धचंद्राकार है और चंद्रभागा के किनारे बसे होने के कारण इसे भी पंढरपुर का नाम दिया गया है.
  • मंदिर का आकार रथ के समान है, महाराष्ट्र के पंढरपुर में स्थित मंदिर भी रथ के आकार का है.
  • महाराष्ट्र के पंढरपुर में स्थित भगवान विट्ठल के मंदिर के बाहर दीपस्तंभ बनाए गए हैं. जहां कार्तिक एकादशी और पूर्णिमा पर दीप प्रज्वलित किए जाते हैं तो रहेली में स्थित भगवान विट्ठल के मंदिर में भी उसी तर्ज पर दीपस्तंभ बनाए गए हैं और यहां भी कार्तिक एकादशी और पूर्णिमा पर दीप प्रज्वलित किए जाते हैं.
  • महाराष्ट्र के पंढरपुर के मंदिर के बाहर हनुमान जी और राधा कृष्ण का मंदिर है, तो यहां भी हनुमान जी और राधा कृष्ण का मंदिर है.
  • मंदिर के द्वारपाल के रूप में हनुमान जी और गरुड़ यहां भी पधारे हैं.
  • गर्भ ग्रह में भगवान विट्ठल की मनमोहक मूर्ति है, उनके बाएं और रुक्मणी और दाएं और राधा कृष्ण की सुंदर प्रतिमा स्थापित है.

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