सागर।एक तरफ मध्यप्रदेश सरकार अनुसूचित जाति के लोगों को वोटर को रिझाने के लिए 100 करोड़ का मंदिर बनाने जा रही है. वहीं सागर में बूढी मां और परिजन नक्सली हमले में शहीद अपने सीआरपीएफ के जवान बेटे को शहीद का दर्जा दिलाने के लिए दर-दर ठोकरें खा रहे हैं. आखिरी उम्मीद के तौर पर शहीद की बूढी मां और परिजनों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दौरे के दिन घर पर रहकर मौन सत्याग्रह करने का फैसला किया है. दरअसल 2002 में नक्सलियों के अम्बुश, आईईडी विस्फोट और फायरिंग में सीआरपीएफ के 34 बटालियन के सिपाही प्रदीप लारिया मुठभेड़ में शहीद हो गए थे. शहीद सिपाही प्रदीप लारिया के परिवार को 21 साल बाद भी मध्य प्रदेश सरकार ने पात्र होते हुए भी निर्धारित शहीद का दर्जा, सम्मान निधि, उचित सम्मान एवं सुविधाएं नहीं दी. इस बात से व्यथित होकर आगामी 12 अगस्त 2023 को अपने घर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और शिवराज सरकार का मौन सत्याग्रह के माध्यम से विरोध जताएंगे.
कैसे हुआ प्रदीप लारिया शहीद:दरअसल 11 अगस्त 2002 को सीआररपीएफ की 34 बटालियन की टुकड़ी ने रायगढ़ जिले के गुनुपुर थाना इलाके के गांव गोथाल पड़ार में नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन का संचालन किया. सीआरपीएफ टुकड़ी ने करीब 25 किलोमीटर का रास्ता तय कर टुकड़ी लक्ष्य के नजदीक पहुंची. तभी नक्सलियों ने आईईडी विस्फोट और ताबड़तोड़ फायरिंग के साथ हमला कर दिया. बटालियन का एक वाहन विस्फोट की चपेट में आ गया और वाहन में सवार सभी जवान गंभीर रूप से घायल हो गये. सीआरपीएफ के जवानों को घायल देखकर नक्सिलयों हथियार लूटने आगे बढ़ने लगे. सीआरपीएफ जवानों की बहादुर टुकड़ी ने तुरंत संभल कर नक्सलियों पर फायरिंग शुरू कर दी. बल की टुकड़ी का जवाबी हमला देखकर नक्सली वहीं रूक गये. इसी बीच सीआरपीएफ के वाहन भी वहां पहुंच गये और उन्होंने नक्सलियों पर हमला कर दिया, जिससे घबराकर नक्सली भाग खड़े हुए. इस हमले में सीआरपीएफ के छह वीर जवान सब इंस्पेक्टर पतिराम, सिपाही प्रमोद कुमार त्यागी, सिपाही एमजी अंगाडे, सिपाही धर्मपाल, सिपाही प्रवीण कुमार पांडे और सिपाही प्रदीप कुमार लारिया गंभीर रूप से घायल होकर देश सेवा के कर्तव्य पर वीरगति को प्राप्त हो गए.
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