सागर.भारत देश में अंगदान (India Organ Donation Plan) को अधिकार के रूप में मान्यता दिलाने और जन जागरूकता के लिए अभियान चला रही सागर की एक संस्था ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई है. संस्था का कहना है कि सरकारी अस्पतालों और मेडिकल कॉलेज में अंगदान और ऊतक प्रत्यारोपण के लिए बुनियादी सुविधाओं का अभाव है. इसी वजह से ना तो लोग अंगदान कर पा रहे हैं और ना ही जरूरतमंद लोगों को अंग मिल पा रहे हैं.
अंगदान को लेकर क्यों जागरुकता की जरुरत?
खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग में लंबे समय तक सेवाएं देने वाले मनोहर लाल चौरसिया ने सरकारी सेवा से वीआरएस लेने के बाद गवेषणा नाम की सामाजिक संस्था का गठन किया. जिसके बाद अंगदान को अधिकार के रूप में मान्यता दिलाने के लिए जन जागरुकता की मुहिम चलाई. इसके लिए सबसे पहले मनोहर लाल चौरसिया खुद अपने अंगदान के लिए बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज पहुंचे, तो उन्हें पता चला कि मेडिकल कॉलेज में भी अंगदान या ऊतक प्रत्यारोपण (Tissue transplant) के लिए बुनियादी सुविधाओं का अभाव है. इसके बाद मनोहर लाल को एहसास हुआ कि इस दिशा में जागरूकता के साथ कुछ खास करने की जरूरत है.
अंगदान को लेकर नहीं हैं बुनियादी सुविधाएं
जब मनोहर लाल खुद की लिविंग विल (living will) लेकर बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज पहुंचे, तो डीन ने उनकी लिविंग विल लेने से इनकार कर दिया. डीन ने बताया कि उन्हें ये अधिकार नहीं है. दरअसल, इस वसीयत के जरिए मनोहर लाल चौरसिया ने मृत्यु के बाद अंगदान की इच्छा जताई थी. उन्हें व्यवस्था में ये खामी भी नजर आई कि ब्रेन डेड होने पर ही अंगदान किया जा सकेगा. सिर्फ बॉडी डेथ (body death) की स्थिति में अंगदान नहीं होगा. इसके अलावा अंगदान के मामले में ये भी नियम है कि MLC (MEDICO-LEGAL CASE) के मामले में अंगदान नहीं हो सकेगा.