सागर।खुरई विधानसभा की बात करें तो अपने शरबती गेंहू के लिए खुरई पूरे देश और विदेश में भी मशहूर है. कृषि यंत्र उपकरण के लिए भी खुरई का नाम दूर-दूर तक मशहूर है. खुरई विधानसभा के इतिहास की बात करें तो खुरई में दांगी राजाओं का शासन रहा है. यहां पर राजा खेमचंद्र दांगी ने 1707 में किला बनवाया. 1752 में पेशवाओं का खुरई किले पर कब्जा हुआ और मराठा शासक गोविंद पंत ने डोहेला बनवाया. 1861 में अंग्रेजों ने खुरई को तहसील का दर्जा देकर सागर जिले में शामिल किया. 1893 में खुरई नगर पालिका गठित की गयी. खुरई कृषि उपज मंडी मध्यप्रदेश की पुरानी मंडियों में शामिल है, जिसकी स्थापना 1893 में ही हुई.
खुरई विधानसभा का इतिहास:सागर जिले की ब्रिटिश काल में सिर्फ चार तहसीलें थी. जिनमें सागर, बंडा, रहली और खुरई शामिल थी. खुरई विधानसभा में खुरई, मालथौन, बांदरी तीन तहसील मुख्यालय शामिल है. खुरई विधानसभा 2008 तक अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित थी, लेकिन 2008 के परिसीमन के बाद खुरई विधानसभा अनारक्षित हो गयी.
खुरई का चुनावी इतिहास: खुरई विधानसभा की बात करें तो ये विधानसभा एक तरह से बीजेपी का गढ़ बन चुकी है. यहां 2008 चुनाव को छोड़कर 1990 से लेकर अब तक भाजपा का दबदबा देखने को मिला है. 2008 में यहां कांग्रेस प्रत्याशी ने जीत हासिल की थी. इसके अलावा यहां पर ज्यादातर भाजपा का कब्जा रहा है.
विधानसभा चुनाव 2008:विधानसभा चुनाव 2008 में कांग्रेस के अरुणोदय चौबे ने भाजपा के भूपेन्द्र सिंह को हराकर जीत हासिल की थी. 2008 चुनाव में कांग्रेस के अरुणोदय चौबे को 45 हजार 777 वोट मिले थे. वहीं भाजपा के 28 हजार 460 मत मिले थे. इस तरह भूपेन्द्र सिंह कांग्रेस के अरुणोदय चौबे से 17 हजार 317 वोटों से हार गए थे.
विधानसभा चुनाव 2013: विधानसभा चुनाव में एक बार भूपेन्द्र सिंह और अरुणोदय चौबे आमने सामने थे, लेकिन इस बार मोदी लहर के बीच भाजपा के भूपेन्द्र सिंह को 62 हजार 127 वोट मिले और अरुणोदय चौबे को 56 हजार 43 वोट मिले. इस तरह भूपेन्द्र सिंह कांग्रेस प्रत्याशी अरुणोदय चौबे से 6 हजार 84 मतों से जीतने में कामयाब रहे.