सागर। रहली स्थित टिकीटोरिया माता मंदिर का निर्माण 1832 में मराठा रानी लक्ष्मीबाई खेर द्वारा कराया गया था. 1984 तक लोग पेड़ों के सहारे पहाड़ पर माता का दर्शन करने पहुंचते थे. जीर्णोद्धार हुआ तो मंदिर तक पहुंचने के लिए सीढ़ियों का निर्माण कराया गया. फिलहाल, 350 से ज्यादा सीढ़ियां चढ़कर लोग माता का दर्शन करने पहुंचते हैं. लेकिन अब इन भक्तों के रोपवे की सौगात मिलने जा रही है. यह बुंदेलखंड का पहला ऐसा मंदिर होगा, जहां रोपवे की सुविधा होगी.
मंदिर में पाषण प्रतिमा:रहली-जबलपुर मार्ग पर टिकीटोरिया पहाड़ी है. इसी पहाड़ी पर माता का मंदिर है. यहां अष्टभुजाधारी सिंहवाहिनी की पाषाण प्रतिमा स्थापित की गई थी. प्रतिमा को करीब 50 साल पहले किसी अज्ञात व्यक्ति ने खंडित कर दिया था. इसके बाद मंदिर के नजदीक खेजरा बरखेरा गांव के मातादीन अवस्थी और द्रौपदी बाई द्वारा संगमरमर की आकर्षक मूर्ति स्थापित कराई गई थी. इस प्रतिमा के खंडित हो जाने के बाद मंदिर में अष्टभुजाधारी सिंहवाहिनी माता के साथ सरस्वती और लक्ष्मी की प्रतिमा विधि-विधान के साथ प्राणप्रतिष्ठा कराई गई. मंदिर जीर्णोद्धार समिति द्वारा सीढ़ियां बनवाए जाने के बाद पहाड़ के नीचे 15 धर्मशाला और एक शादीघर का भी निर्माण कराया गया है. यहां आने वाले श्रद्धालु और पर्यटक इन्हीं धर्मशालाओं में रुकते हैं.