MP Assembly Election 2023: परिवार वाद पर भारी पड़ा जातीय समीकरण, बुंदेलखंड की हारी हुई सीटों पर बीजेपी का नया दांव - एमपी बीजेपी पहली लिस्ट जारी
एमपी बीजेपी ने प्रत्याशियों के नाम की पहली लिस्ट जारी कर दी है. इस लिस्ट में भाजपा ने बुंदेलखंड की पांच सीटों का एलान भी किया है. जो कुछ इस तरह हैं...
बीजेपी ने जारी की लिस्ट
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Published : Aug 17, 2023, 10:57 PM IST
सागर। आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा को कांग्रेस से कड़ी टक्कर मिल रही है. कठिन चुनौती को देखते हुए भाजपा ने आज एमपी की पिछले चुनाव में हारी हुई 39 सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी. इसी कड़ी में भाजपा ने बुंदेलखंड की पांच सीटों का एलान कर दिया है. जिसमें सागर के बंडा वीरेन्द्र सिंह लंबरदार, दमोह के पथरिया से लखन पटेल, छतरपुर से ललिता यादव, महाराजपुर से कामाख्या सिंह और पन्ना के गुन्नौर अनुसूचित जाति सीट से राजेन्द्र कुमार वर्मा को उम्मीदवार बनाया है. जिन चेहरों पर भाजपा ने भरोसा जताया है, उनकी पृष्ठभूमि पर जाएं तो टिकट वितरण के तमाम फार्मूलों को भूलकर जातियों के सहारे भाजपा ने जीत की उम्मीद सजोंयी है. परिवारवाद पर बड़ी-बड़ी बातें करने वाली भाजपा ने जहां सागर की बंडा तो छतरपुर की महाराजपुर सीट पर नेताओं के परिजनों पर विश्वास जताया है, तो दूसरी तरफ जातीय समीकरणों के आधार पर जीत की बुनियाद रखने की कोशिश की है.
सागर की बंडा विधानसभा: पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से करारी हार का सामना भाजपा को करना पड़ा था. बंडा में कांग्रेस ने जातिगत समीकरणों के आधार पर लोधी समाज के युवा चेहरे तरवर सिंह लोधी को मैदान में उतारा था और वो करीब 14 हजार वोटों से चुनाव जीतने में सफल रहे थे. अब भाजपा ने जातिगत समीकरण के आधार पर वीरेन्द्र सिंह लंबरदार को मैदान में उतारा है, जो लोधी समाज के हैं और फिलहाल शासकीय शिक्षक है. इनके पिता स्व.शिवराज सिंह बंडा विधानसभा से विधायक और दमोह संसदीय क्षेत्र से सांसद रहे हैं. बंडा से 2008 में स्व शिवराज सिंह के पुत्र रामरक्षपाल सिंह ने चुनाव लड़ा था, जो चतुष्कोणीय संघर्ष में कांग्रेस उम्मीदवार से चुनाव हार गए थे और हार्ट अटैक से उनकी मौत हो गयी थी. अब स्वर्गीय सांसद के दूसरे बेटे जो फिलहाल सरकारी स्कूल में शिक्षक हैं और पिछले दो साल से बंडा विधानसभा में जनसंपर्क में जुटे हैं, भाजपा ने उन्हें मौका दिया है. भाजपा के इस फैसले से पार्टी के लिए भीतरघात और बगावत का खतरा बढ़ गया है. सागर के पूर्व सांसद लक्ष्मीनारायण यादव के बेटे सुधीर यादव टिकट की दावेदारी कर रहे थे. पूर्व मंत्री स्व. हरनामसिंह राठौर के बेटे पूर्व विधायक हरवंश सिंह राठौर भी दावेदार थे. इसके अलावा कई ऐसे दावेदार थे, जो बंडा से टिकट की उम्मीद लगाए थे. कांग्रेस अगर तरवर सिंह लोधी पर फिर भरोसा जताती है, तो बंडा में लोधी समाज के अलावा यादव समाज और अहिरवार मतदाता जीत हार के फैसले में अहम भूमिका निभाएंगे.
वीरेन्द्र सिंह लंबरदार बीजेपी प्रत्याशी
दमोह की पथरिया: दमोह की पथरिया विधानसभा जहां से फिलहाल बसपा की रामबाई विधायक हैं. वहां बीजेपी ने फिर एक बार लखन पटेल पर भरोसा जताया है. लखन पटेल महज 2 हजार वोटों से 2018 में रामबाई परिहार से चुनाव हार गए थे. तब भाजपा के वरिष्ठ नेता पूर्व मंत्री रामकृष्ण कुसमारिया निर्दलीय चुनाव लडे़ थे. रामकृष्ण कुसमारिया भी कुर्मी समुदाय से आते हैं और वोटों के नुकसान के कारण चुनाव हार गए. लखन पटेल 2013 के विधानसभा चुनाव में पथरिया से निर्वाचित हुए थे. यहां भाजपा ने जातीय समीकरण के आधार पर टिकट दिया है. पथरिया विधानसभा कुर्मी बाहुल्य विधानसभा सीट है. लखन पटेल दो बार दमोह जिला सहकारी केंद्रीय बैंक के जिलाध्यक्ष रहे है. 2015-2017 मे विधायक रहते हुए पिछड़ा वर्ग एवं एससी समिति सदस्य के सदस्य रहे और 2017-2018 पशु चिकित्सा विवि जबलपुर में विधानसभा की ओर से नामित संचालक के पद पर रहे हैं. वह 2016-2018 विधानसभा की कृषि समिति सदस्य भी रहे हैं. फिलहाल लखन पटेल एक अच्छे उम्मीदवार माने जा रहे हैं, लेकिन अगर रामबाई परिहार फिर बसपा के टिकट से मैदान में उतरती है या निर्दलीय चुनाव लड़ती है, तो एक बार फिर पथरिया में पिछले विधानसभा चुनाव की तरह त्रिकोणीय और चतुष्कोणीय संघर्ष देखने मिल सकता है. टिकट की घोषणा होते ही ललिता यादव का विरोध शुरू हो गया है.
लखन पटेल बीजपी प्रत्याशी
छतरपुर से ललिता यादव:छतरपुर से एक बार फिर भाजपा ने ललिता यादव पर भरोसा जताया है. ललिता यादव 2008 में पहली बार छतरपुर से विधायक चुनी गयी थी. ललिता यादव सागर के बिलहरा में जन्मी है. उनकी शादी छतरपुर के हरिप्रकाश यादव से हुई है. ललिता यादव समाजसेवा के साथ राजनीति और भाजपा संगठन में लंबे समय से सक्रिय है. उन्होंने भाजपा महिला मोर्चा से राजनीति की शुरूआत की. 1997 से लेकर 2004 तक छतरपुर महिला मोर्चा की अध्यक्ष रही और 2004 में छतरपुर नगरपालिका की अध्यक्ष चुनी गयी. 2007-08 में उन्हें बुंदेलखंड विकास प्राधिकरण का सदस्य बनाया गया है और पहला विधानसभा चुनाव उन्होंने 2008 में छतरपुर से लड़ा, जिसमें जीत हासिल की. दूसरी बार 2013 में फिर छतरपुर से विधायक चुनी गयी और 30 जून 2016 के शिवराज मंत्रीमंडल के विस्तार में उन्हें राज्यमंत्री के रूप में शामिल किया गया. छतरपुर से ललिता यादव को भीतरघात का सामना करना पड़ सकता है. दरअसल 2018 में छतरपुर से अर्चना गुड्डु सिंह को भाजपा से टिकट दिया गया था. जो कांग्रेस प्रत्याशी आलोक चतुर्वेदी से महज 3 हजार 495 वोटों से हार गयी थी. इस हार में ललिता यादव द्वारा भीतरघात करने की बात सामने आ रही थी. अब अर्चना सिंह के पति पुष्पेंद्र प्रताप सिंह बगावत या भीतरघात कर सकते हैं.
महाराजपुर से कामाख्या सिंह: छतरपुर जिले की महाराजपुर सीट से भाजपा ने पूर्व मंत्री मानवेन्द्र सिंह के बेटे कामाख्या प्रताप सिंह को टिकट दिया है. मानवेंद्र सिंह छतरपुर की अलीपुरा रियासत के राजा है और 2018 में कांग्रेस के नीरज दीक्षित से चुनाव हार गए थे. इस बार पार्टी ने मानवेन्द्र सिंह को तो टिकट नहीं दिया, लेकिन उनके बेटे कामाख्या प्रताप सिंह को टिकट दिया है. दरअसल बुंदेलखंड में बाहुबली की छवि रखने वाले मानवेन्द्र सिंह के व्यक्तिगत तौर पर करीब 20 हजार का खुद का वोटबैंक माना जाता है. पिछला चुनाव हारने के बाद यहां से भाजपा के कई दावेदार थे, जिनमें छतरपुर के जिलाध्यक्ष मलखान सिंह, बिजावर से विधायक रहे पुष्पेंद्र नाथ पाठक, कृष्णा यूनिवर्सटी के संचालक बृजेन्द्र सिंह गौतम के अलावा युवा मोर्चा के जिलाध्यक्ष रहे मणिकांत चौरसिया भी दावेदार थे. इस सबके बीच मानवेंद्र सिंह भंवर राजा के बेटे कामाख्या प्रताप सिंह भी क्षेत्र में लंबे समय से सक्रिय थे. महाराजपुर में भाजपा के भारी संख्या में दावेदार भाजपा के लिए परेशानी का सबब बन सकते हैं. यहां पर जातिगत समीकरणों की बात करें तो चौरसिया और अहिरवार समाज के बाहुल्य वाले इस इलाके में ब्राह्मण मतदाताा भी निर्णायक भूमिका निभाते हैं.
राजेश वर्मा बीजेपी प्रत्याशी
पन्ना के गुन्नौर से राजेश कुमार वर्मा: पन्ना जिले की गुन्नौर विधानसभा से एक बार फिर बीजेपी ने राजेश कुमार वर्मा पर भरोसा जताया है. गुन्नौर विधानसभा अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. राजेश कुमार वर्मा पिछले चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी शिवदयाल बागरी से महज 1984 वोटों से चुनाव हार गए थे. 2013 में इस सीट पर बीजेपी की जीत हुई थी. राजेश कुमार वर्मा पर फिर भरोसा जताए जाने से भाजपा के अन्य दावेदारों में निराशा है. अंदाजा लगाया जा रहा है कि कम वोटों के अंतर से हार के कारण उन पर फिर भरोसा जताया गया है, लेकिन स्थानीय भाजपा सूत्रों का कहना है कि करीब डेढ़ दर्जन दावेदारों के बीच राजेश कुमार वर्मा पर फिर भरोसा जताया गया है, जिससे अन्य दावेदारों में निराशा है. स्थानीय तौर पर राजेश कुमार वर्मा की छवि लोकप्रिय नेता की नहीं है और विवादों से उनका पुराना नाता है. जबकि कांग्रेस के मौजूदा विधायक की छवि एक अच्छे नेता की है. सत्ताविरोधी लहर के बीच 2018 में हारे प्रत्याशी पर भरोसा जताना भारी पड़ सकता है. राजेश कुमार वर्मा अनुसूचित जाति की खटीक समाज से आते हैं और यहां पर अहिरवार मतदाताओं की संख्या ज्यादा है. फिलहाल गुन्नौर के भाजपा खेमे में निराशा का माहौल है.