सागर।देश ही नहीं अगर दुनिया की बात की जाए, तो कोरोना महामारी के कारण कुछ ऐसे शब्द हमारे जीवन से जुड़े हैं, जिन्हें हमने पहले न के बराबर सुना था. इनमें सबसे ज्यादा चर्चित 'क्वारंटाइन' शब्द है. जब 2019 में कोरोना महामारी फैली, तो 'क्वारंटाइन' शब्द काफी तेजी से प्रचलित हुआ. पहली बार इस शब्द से रूबरू हुए लोग शब्द को जानने और समझने के लिए इंटरनेट पर तलाश करते नजर आए, लेकिन आपको जानकर ताज्जुब होगा कि मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सीमा पर स्थित सागर जिले के मालथौन कस्बे में करीब डेढ़ सौ साल से लोग इस शब्द से भलीभांति परिचित हैं. इसकी वजह यह है कि बस स्टैंड के पास ही खंडहर के कुछ अवशेष हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि इनका निर्माण अंग्रेजों ने कराया था. खास बात यह है कि मालथौन के लोग इस जगह को शुरू से 'क्वारंटाइन' बोलते हैं. मतलब साफ है कि भले ही 'क्वारंटाइन' शब्द से हमारा परिचय पिछले दो सालों में हुआ हों, लेकिन एक छोटे से कस्बे के लोग इस शब्द को पिछले डेढ़ सौ साल से जानते हैं. इसका महत्व समझते हैं.
स्थानीय लोगों और इतिहासकारों की मानें, तो इसका उपयोग 1918-19 में फैले स्पैनिश फ्लू यानी लाल बुखार से पीड़ित लोगों को क्वारंटाइन करने के लिए किया गया था. इसके अलावा मालथौन देश के बीचों बीच ऐसी जगह पर स्थित था, जहां से कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक परिवहन होता था. ब्रिटिश जमाने में बाजार और मेले के लिए पशु व्यापारी इधर से ही गुजरते थे. इसलिए मालथौन में प्रवेश करते ही सभी पशुओं को क्वारंटाइन किया जाता था. देखा जाता था कि उन्हें कोई संक्रामक बीमारी तो नहीं है. सात दिन की क्वारंटाइन अवधि के बाद बीमार पशुओं को वहीं रोक लिया जाता था. बाकी पशुओं का टीकाकरण करके आगे के सफर के लिए अनुमति दी जाती थी.
खास बात यह है कि इस क्वारंटाइन सेंटर का उपयोग 80 के दशक तक मध्य प्रदेश का पशु पालन और पशु चिकित्सा विभाग करता आ रहा हैं, लेकिन अब यह धीरे-धीरे खंडहर में तब्दील हो रहा है.
मालथौन में है 'क्वारंटाइन' नाम की जगह
जिला मुख्यालय से करीब 65 किलोमीटर दूर मालथौन कस्बे में बस स्टैंड और आरटीओ दफ्तर के नजदीक करीब चार पांच एकड़ में फैला हुआ एक खंडहर नुमा इलाका है. इसे स्थानीय लोग 'क्वारंटाइन' बोलते हैं. इस इलाके में जो खंडहर बने हुए हैं, उसके बारे में कहा जाता है कि डेढ़ सौ साल पहले अंग्रेजों ने इसका निर्माण कराया था. यहां पर शुरुआती दौर में पशुओं के संक्रामक रोगों के इलाज और टीकाकरण के लिए पशुओं को क्वारंटाइन किया जाता था. इसके बाद 1918-20 में फैले स्पैनिश फ्लू (लाल बुखार) के समय यहां पर संक्रमित लोगों को भी क्वारंटाइन किया गया था.
दरअसल, यह इलाका उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित है, जो सागर और ललितपुर जिले को जोड़ता हैं. बुजुर्ग द्वारका प्रसाद तिवारी बताते हैं कि आम लोगों के लिए क्वारंटाइन शब्द अभी एक साल पहले ही आया है, लेकिन मालथौन में बच्चा-बच्चा और बुजुर्ग इस शब्द को कई सालों से जानते हैं. यह क्वारंटाइन सेंटर अंग्रेजों ने बनाया था. संक्रामक रोग होने पर यहां जानवरों को रखा जाता था. उनका इलाज किया जाता था. इसी दौरान स्पैनिश फ्लू यानी लाल बुखार आया था. उस समय हमारे देश में केवल आयुर्वेदिक इलाज की पद्धति थी. ब्रिटिश फौज के डॉक्टर इलाज का काम करते थे. जो स्थानीय लोग उनकी सेवा में लगे हुए थे, उनका भी इलाज करते थे.