सागर।बुंदेलखंड का नाम उसके समृद्ध इतिहास, मधुर बोली, संस्कृति की सुंदरता और लोकगीतों- लोकनृत्यों के लिए देशभर में प्रसिद्ध है. बुंदेलखंड भारत का ऐसा भौगोलिक क्षेत्र है, जहां न सिर्फ संरचनात्मक बल्कि एकता और सामाजिकता का आधार भी एक ही है. यही वजह है कि बुंदेलखंड को अलग राज्य बनाने की मांग कई बार उठती रही है. बुंदेलखंड में ही आता है मध्यप्रदेश का सागर जिला जो कि बुंदेलखंड के ह्रदय के नाम से मशहूर है.
क्या है बुंदेलखंड का भूगोल
1 नवंबर 2020 देश भर में मध्य प्रेदश के 65वें स्थापना दिवस के रूप में मनाया जा रहा है. बुंदेलखंड में मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्से शामिल हैं. वर्तमान भौतिक शोधों के आधार पर बुंदेलखंड को एक भौतिक क्षेत्र घोषित किया गया है, जिसकी सीमाएं उत्तर में यमुना, दक्षिण में विंध्य प्लेटो की श्रेणियों तक हैं. बुंदेलखंड उत्तर पश्चिम में चंबल और दक्षिण पूर्व में पन्ना अजयगढ़ श्रेणियों से घिरा हुआ है. बुंदेलखंड में उत्तर प्रदेश के जालौन, झांसी, ललितपुर, चित्रकूट, हमीरपुर, बांदा और महोबा जिले आते हैं. वहीं मध्य प्रदेश के सागर, दमोह, टीकमगढ़, निमाड़ी, छतरपुर, पन्ना, दतिया के अलावा भिंड जिले के लहार और ग्वालियर जिले की मंडी तहसील शामिल हैं. साथ ही रायसेन और विदिशा जिले का कुछ हिस्सा भी शामिल बुंदेलखंड में शामिल हैं.
ये भी पढ़ें-मध्यप्रदेश स्थापना दिवस: विविधताओं से लबरेज है देश का दिल, दिखती है संपूर्ण भारत की झलक
बुंदेलखंड का ह्रदय 'सागर'
बुंदेलखंड के प्रसिद्ध नगरों में एक है सागर, जो कि संभागीय मुख्यालय है. सागर संभाग के सभी 6 जिले छतरपुर, टीकमगढ़, पन्ना, दमोह, निमाड़ी और मुख्यालय सागर बुंदेलखंड का हिस्सा हैं. सागर को बुंदेलखंड का ह्रदय कहे तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी. यहां न सिर्फ बुंदेलखंड कि शौर्य संस्कृति और विरासत बसी हुई है, बल्कि इस भूमि ने देश-विदेश तक बुंदेली संस्कृति को पहुंचाया है. सागर की माटी जहां कवि पद्माकर की जन्मस्थली है तो वहीं महान विद्वान दानवीर डॉ हरिसिंह गौर का भी यहां बचपन से नाता रहा है. यही वजह है कि गौर नगरी के नाम से भी सागर जाना जाता है.
ये भी पढ़ें-बुंदेलखंड का कैलाश है भगवान भोलेनाथ का यह धाम, जहां होता है आस्था और भक्ति का अनूठा संगम
सागर का इतिहास
- सागर शहर का इतिहास करीब 1600 ईसवी पुराना बताया जाता है. कहा जाता है कि सागर में उड़ान शाह जो कि निहाल सिंह के वंशज थे, उन्होंने एक छोटा सा किला बनवाया था.
- उड़ान शाह ने जो किला बनवाया था, उसे परकोटा कहा जाता था, जोकि आज भी शहर के बीचों-बीच मौजूद हैं. वहीं से पुराने शहर की बसावट की शुरुआत हुई है.
- बाद में यहां गोविंदराव पंडित (पेशवा के अधिकारी) ने कई दूसरे निर्माण कराए, उस वक्त सागर पर पेशवा का शासन था.
- 1818 में जिले के ज्यादा से ज्यादा हिस्सा पेशवा बाजीराव द्वितीय ने अंग्रेजों को सौंप दिया था, जबकि वर्तमान जिले के बाकी के अलग-अलग हिस्सों पर 1818 और 1860 के बीच अलग-अलग समय पर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया था.
- 1861 में सागर और नर्मदा प्रदेशों को नागपुर राज्य के हिस्से के रूप में गठित किया गया. कुछ वक्त के लिए अंग्रेजी हुकूमत में यह कमिश्नरी का मुख्यालय भी रहा. 1863-64 में इसे जबलपुर संभाग में मिला लिया गया.
- 1932 में दमोह को सागर जिले में जोड़ दिया गया. बाद में इसे अलग से जिला बनाया गया. उस समय सागर में सिर्फ चार तहसीलें थी जो कि सागर, खुरई, रहली और बंडा के रूप में थी.
ये भी पढ़ें-मध्यप्रदेश के 65 साल, कृषि क्षेत्र में हुआ विकास, औद्योगिक क्रांति में पिछड़ा
क्यों कहते हैं गौर नगरी?
सागर की पहचान के रूप में एक बड़ी भूमिका डॉ. हरिसिंह गौर की है. बताया जाता है कि डॉ. हरिसिंह गौर जो कि मूलत: सागर के थे. उन्होंने अपने जीवन भर की कमाई से सागर के लिए सागर में यूनिवर्सिटि की स्थापना की, जिसका नाम भी डॉ. हरिसिंह गौर के नाम पर है, जिसने न सिर्फ देश को अनगिनत विद्वान दिए बल्कि यहां के कला संकाय के छात्रों ने बुंदेली परंपरा, लोकगीत, लोकनृत्य को देश-दुनिया में सम्मान दिलाया है.
2009 के बाद डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया. इस विश्वविद्यालय ने टेलीविजन, बॉलीवुड और न्यूज चैनल को भी कई प्रतिभाएं दी हैं. फिल्म अभिनेता आशुतोष राणा, मुकेश तिवारी, गोविंद नामदेव और कई बॉलीवुड की हस्तियां यहीं की देन हैं.
ये भी पढ़ें-बुंदेलखंड की गौरवगाथा का बखान करता राहतगढ़ का किला, आज भी पर्यटकों के लिए है आकर्षण का केंद्र