सागर। देवरी विकासखंड में स्थित प्राचीन देव खंडेराव मंदिर में हर साल चंपा छठ से अग्निकुंड मेले की शुरुआत होती है. कहा जाता है कि यह परंपरा करीब 400 साल पुरानी है और आज भी चली आ रही है. मनोकामना पूर्ति पर लोग अग्नि कुंड में दहकते अंगारों से निकलकर श्री देव खंडेराव (shridev khanderao temple of sagar mp) का स्मरण करते हैं. इस साल यह मेला 9 दिसंबर से शुरू होकर 18 दिसंबर तक चलेगा. श्री देव खंडेराव से सच्चे मन से जो भी मनौती मांगी जाती है, उसके पूरे होने पर पीले वस्त्र धारण कर परंपरागत तरीके से श्री देव खंडेराव की पूजा अर्चना करने के बाद लोग अग्निकुंड के दहकते अंगारों से निकलते हैं. हर साल हजारों की संख्या में श्रद्धालु देवरी पहुंचते हैं और श्री देव खंडेराव मंदिर में भरने वाले अग्निकुंड मेले में शामिल होते हैं.
कहां स्थित है श्री देव खंडेराव मंदिर
सागर संभागीय मुख्यालय पर नेशनल हाईवे-44 पर स्थित देवरी विकासखंड में श्री देव खंडेराव का मंदिर है. यह मंदिर करीब 400 साल पुराना है. इस मंदिर का निर्माण मराठा पेशवाओं ने कराया था. यह मंदिर सागर संभागीय मुख्यालय से 65 किमी दूरी पर है. वहीं नरसिंहपुर जिला मुख्यालय से 75 किमी दूरी पर है. यहां प्रतिवर्ष अग्हन शुक्ल की षष्ठी यानि चंपा छठ के दिन से पूर्णिमा तक मेला लगता है. इस मेले में शामिल होने के लिए दूर दूर से लोग आते हैं और मनोकामना पूर्ति होने पर श्री देव खंडेराव की पूजा अर्चना कर अग्निकुंड में दहकते अंगारों पर नंगे पैर चलते हैं.
कब से शुरू हुई परंपरा
कहा जाता है कि यह मंदिर करीब 400 साल पुराना है और अग्निकुंड मेले का इतिहास भी इतना पुराना है. इस इलाके में यशवंतराव का अधिपत्य था. उनके इकलौते पुत्र किसी अज्ञात बीमारी से पीड़ित होकर मृतप्राय हो गए थे. तब राजा यशवंतराव ने श्री देव खंडेराव की प्रार्थना की और कहा कि आपके ही आशीर्वाद से यह पुत्र प्राप्त हुआ है. कृपया कर उसकी रक्षा करें. उसी रात राजा यशवंतराव को श्री देव खंडेराव ने दर्शन दिए और कहा कि तुम मेरे दर्शन करके बाएं हाथ में हल्दी लगाकर प्रार्थना करो और एक आयताकार नाव की आकृति का कुंड बनाकर एक मन लकड़ी डालकर विधि विधान से पूजा करो और ठीक 12 बजे नंगे पैर आग पर चलो. ऐसेा करने से बेटा ठीक हो जाएगा. राजा यशवंतराव ने ऐसा ही किया और खंडेराव ने उनकी प्रार्थना को सुना और उनके पुत्र को स्वस्थ कर दिया. तभी से यह परंपरा चली आ रही है.