सागर। जब बुंदेली संस्कृति की बात हो तो यहां की बोली की मिठास,रहन-सहन और खानपान और रहन-सहन आकर्षित करता है. आकर्षण में बंधी इजरायल की 2 लड़कियां (पर्यटक) अविव और जूडिथ इजरायल से वाराणसी और ऋषिकेश होते हुए खजुराहो से सागर पहुंची. सागर में अपने डॉक्टर दोस्त से बुंदेलखंड को समझा. यहां कि, कला, संस्कृति को जाना और बुंदेली सीखने की शुरूआत की.
कला संस्कृति को पहचाना:इजरायल से आई अविव और जूडिथ की बात करें, तो भारत की संस्कृति के प्रति काफी लगाव रखने वाली दोनों लड़कियां भारत यात्रा पर वाराणसी और उत्तराखंड के ऋषिकेश पहुंची और दोनों ने योगा सीखने में रुचि दिखाई. योगा सीखने के बाद दोनों खजुराहो पहुंच गई और खजुराहो के विश्व प्रसिद्ध मंदिरों के बारे में जाना समझा. खजुराहो में अपने परिचित के जरिए उनकी पहचान सागर के बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज में पदस्थ प्रोफेसर डॉ सुमित रावत से हुई. दोनों इजरायली लड़कियों ने बुंदेलखंड की कला, संस्कृति और रहन-सहन के प्रति अपनी रूचि दिखाई और बुंदेली सीखने की इच्छा डॉ सुमित रावत के सामने रखी.
बुंदेली सीखने की शुरुआत:बीएमसी के डॉक्टर सुमित रावत से मिलने के लिए जब दोनों इजरायली लड़कियां सागर पहुंची और उनके घर पर जब अतिथि देवो भव की परंपरा के साथ उनका स्वागत किया गया और आरती उतारी गयी, तो दोनों काफी खुश हुई और उन्होंने यहां के खानपान और बोली के प्रति काफी रुचि दिखाई. लोगों को बातचीत करता देख उन्हें बुंदेली काफी पसंद आई और डॉक्टर सुमित रावत से उन्होंने बुंदेली सीखने की इच्छा जताई.
बुंदेली संस्कृति के प्रति लगाव: डॉक्टर सुमित रावत ने दोनों इजरायली लड़कियों को बुंदेलखंड में अभिवादन में सर्वाधिक उपयोग होने वाले जय राम जी शब्द के साथ बुंदेली सिखाने की शुरुआत की. दोनों लड़कियां जब एक फल की दुकान पर फल खरीदने पहुंची और फल विक्रेता का जय राम जी कहकर स्वागत किया, तो फल विक्रेता ने "जय सियाराम" कहकर उनका अभिवादन किया. इस तरह अविव और जुडिथ की बुंदेली सीखने की शुरुआत हुई. डॉ सुमित रावत ने दोनों को बुंदेलखंडी के सबसे ज्यादा प्रचलित शब्द "हओ" के बारे में बताया. बुंदेली में आमतौर पर हां के लिए हओ बोला जाता है. फिलहाल दोनों ने बुंदेली के कुछ प्रचलित शब्दों को सीखा है. आगे भी बुंदेली सीखने की इच्छा जताई है, जो इजरायल पहुंचने के बाद ऑनलाइन सीखेंगी.