सागर। सालों से सोयाबीन की फसल में हो रहे नुकसान ने किसान की कमर तोड़ दी है. कभी फायदे का सौदा नजर आने वाले सोयाबीन ने कई किसानों को कर्ज के दलदल में फंसा दिया, यहां तक कि कई किसानों ने तो कर्ज के बोझ तले दबकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली. जहां कृषि विभाग की सलाह पर बुंदेलखंड क्षेत्र के देवरी, केसली क्षेत्र के किसानों ने बड़े पैमाने पर सोयाबीन की फसल की बुआई की, लेकिन किस्मत और कुदरत दोनों की मेहरबानी रही और मक्के की बंपर पैदावार हुई. लेकिन अब जब मक्का की खरीदी नहीं हो रही है तो किसान ठगा सा महसूस कर रहे हैं.
सोयाबीन की जगह मक्का की सलाह
कुछ साल तक तो सोयाबीन की खेती से किसानों ने काफी बंपर कमाई की. किसानों में संपन्नता भी आई, लेकिन जलवायु परिवर्तन की वजह से पिछले 2-3 साल से किसानों को सोयाबीन की फसल से लगातार नुकसान हो रहा था. जिसके बाद कृषि से जुड़े अधिकारी वैज्ञानिक कृषि के जानकार उन्हें मक्के की फसल लगाने की सलाह देते रहे. जिसके चलते इस साल किसानों ने सोयाबीन के रकबे को घटा दिया, और मक्के के रकबे को बढ़ा दिया.
सरकार नहीं कर रही मक्का की खरीदी
किसानों ने कई-कई एकड़ जमीन पर फसल लगाई. इस उम्मीद के साथ कि फसल तैयार होगी तो कमाई होगी. अब आलम यह है कि मक्के की फसल तो तैयार है. लेकिन किसान इस बात से परेशान है कि वह फसल को काटेगा तो बेचेगा कहां. क्योंकि बिचौलियों के पास और व्यापारियों के पास ले जाने के बाद मक्के की फसल के अच्छे दाम भी नहीं मिल रहे हैं. वहीं सरकार मक्के की खरीदी ही नहीं कर रही है. अब किसान मक्के की फसल लगाकर ठगा सा महसूस कर रहा है. किसानों के अनुसार मक्का की फसल के बाजार में 5 से 8 रुपये किलो के भाव से बिक रहा है. जिससे लागत भी बमुश्किल निकल पाएगी.