सागर। मध्यप्रदेश को देश में सोयाबीन राज्य का दर्जा प्राप्त है. पिछले दो-तीन दशकों से सोयाबीन यानी राज्य के 'पीले सोने' के उत्पादन में मध्यप्रदेश नंबर बन रहा है. लेकिन पिछले कुछ सालों से घट रहे सोयाबीन के उत्पादन और बढ़ रही लागत के कारण किसानों का इससे मोहभंग हो गया है. किसानों का कहना है कि पिछले कुछ सालों से इस तिलहन फसल ने उन्हें पूरी तरह से बर्बाद कर दिया है. मध्य प्रदेश सरकार का कृषि विभाग भी चाहता है कि किसान सोयाबीन की जगह दूसरी फसलों पर ध्यान दें और उन को बढ़ावा दें. कृषि विभाग का मानना है कि लगातार सोयाबीन के उत्पादन के कारण जमीन में पोषक तत्वों में कमी आई है.
'पीले सोने' से मोहभंग: बढ़ी कीमतों से परेशान किसानों ने सोयाबीन को कहा न भई न - खरीफ सीजन.
किसान इस बार खरीफ सीजन में 'पीले सोने' से तौबा कर रहें हैं. तिलहन फसल के अच्छे बीजों की किल्लत से इस कदर परेशान हैं कि उन्होंने इस घाटे के सौदे को न कह दिया है. किसानों का तर्क है कि इस घाटे के सौदे की वजह से पिछले कुछ सालों से 25 हजार की लागत लगाने पर 25 रुपए भी हासिल नहीं हो रहे हैं और नुकसान ज्यादा हो रहा है.
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कृषि विभाग भी दे रहा है किसानों को दूसरी फसलें लगाने का सुझाव
वहीं दूसरी तरफ सोयाबीन के लगातार गिरते उत्पादन को लेकर कृषि विभाग भी चिंतित है. कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि सोयाबीन ऐसी फसल है, जिसमें 20% तेल और 40% तक प्रोटीन होता है. अधिक पोषक तत्वों वाली फसल पिछले 30 साल से लगातार बोई जा रही है, इसलिए जमीन के पोषक तत्वों में कमी आई है और पैदावार कम हो रही है. भविष्य में भी इसकी पैदावार संतोषजनक होने के आसार नहीं है. कृषि विभाग की भी सलाह है कि किसान सोयाबीन की जगह अन्य विकल्प जैसे उड़द, मूंग, तिल और धान की बुवाई कर सकते हैं. जिले में पिछले साल 4 लाख 38 हजार हेक्टेयर जमीन पर सोयाबीन बोया गया था. इस बार 3 लाख हेक्टेयर से नीचे लाने का प्रयास किया जा रहा है.