सागर। हमारे देश में पन्ना एक ऐसी जगह है, जहां की धरती के गर्भ में बेशकीमती हीरों का भंडार है. देश के नक्शे पर बुंदेलखंड अपने पिछड़ेपन और गरीबी के लिए जाना जाता है, पर बुंदेलखंड की धरती को रत्नगर्भा कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. सागर संभाग के पन्ना जिले की जमीन सालों से हीरे उगल रही है, अब छतरपुर जिले में भी हीरे के भंडार की उम्मीद जगी है. छतरपुर जिले के बकस्वाहा में बड़े पैमाने पर हीरे के लिए उत्खनन किया जाना है, इसके लिए लाखों की संख्या में पेड़ काटे जाएंगे. हीरे के बदले हरियाली खत्म करने का विरोध भी हो रहा है. वहीं दूसरी तरफ भूगर्भ शास्त्रियों का कहना है कि बुंदेलखंड में सिर्फ पन्ना और छतरपुर ही नहीं, बल्कि सागर और दमोह में भी इसी तरह की संभावनाओं पर शोध किया जा रहा है, जल्द ही इसके परिणाम सामने होंगे.
जमीन के अंदर कहां और क्यों पाया जाता है हीरा
आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में हीरे के भंडार की खोज में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके सागर विश्वविद्यालय के भूगर्भ शास्त्री डॉ. मनीष पुरोहित के रिसर्च को करेंट साइंस शोध पत्रिका में स्थान मिला है. वो बताते हैं कि पन्ना और छतरपुर के बक्सवाहा में जहां हीरे पाए जा रहे हैं, यह एक प्लूटोनिक रॉक होती है, जिसे किंबरलाइट के नाम से जानते हैं. यह अर्थ क्रस्ट में वर्टिकल स्ट्रक्चर के रूप में जमा होती है, जिसे किंबरलाइट पाइप कहा जाता है. पन्ना और छतरपुर के बक्सवाहा में जहां हीरा निकल रहा है, उसका मुख्य स्रोत किंबरलाइट पाइप है, यह पाइप सरफेस के अंदर रेडिएटिंग फॉर्म में बनता है.
क्या है किंबरलाइट पाइप
भूगर्भ शास्त्र के अनुसार किंबरलाइट एक आग्नेय चट्टान है, जो हीरे का मुख्य स्रोत है. अपने गठन के 150 से 450 किमी की दूरी के बीच पृथ्वी की सतह के नीचे गहराई में यह चट्टान होती है. यह एक दुर्लभ नीले रंग की चट्टान है, जिसमें हीरे पाए जाते हैं. प्रमुख रूप से दक्षिण अफ्रीका और साइबेरिया में यह बहुतायत में पाया जाता है. खुरदरी कणों से बनी सूक्ष्म कणों की अपारदर्शी चट्टान होती है, हमेशा गहरी महाद्वीपीय परत के ऊपर ज्वालामुखी नली के रूप में पाई जाती है, यह सबसे पुरानी चट्टानों में से एक हैं, जिनकी सतह काफी चमकदार होती है.