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बुंदेलखंड की प्यासी धरती क्यों उगल रही है हीरे, अब छतरपुर के बकस्वाहा जंगल में मिला हीरे का भंडार - सागर संभाग में हीरे का भंडार

हीरा उगलने वाली पन्ना की धरती के बाद अब छतरपुर की धरती भी हीरा उगलने वाली है, इसके लिए बक्सवाहा वर्षा वन के लाखों पेड़ काटने पडे़ंगे, भले ही हीरा निकालने के लिए जंगल को नष्ट करने की तैयारी सरकार कर रही है, लेकिन हीरे के लिए जंगल को हलाल होने से रोकने के लिए तमाम लोग सामने आ रहे हैं, वो किसी भी हाल में आज के लिए कल नष्ट नहीं करना चाहते हैं.

diamond storage in buxwaha forest found after panna district of MP
बकस्वाहा जंगल में मिला हीरे का भंडार

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Published : Oct 25, 2021, 11:17 AM IST

सागर। हमारे देश में पन्ना एक ऐसी जगह है, जहां की धरती के गर्भ में बेशकीमती हीरों का भंडार है. देश के नक्शे पर बुंदेलखंड अपने पिछड़ेपन और गरीबी के लिए जाना जाता है, पर बुंदेलखंड की धरती को रत्नगर्भा कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. सागर संभाग के पन्ना जिले की जमीन सालों से हीरे उगल रही है, अब छतरपुर जिले में भी हीरे के भंडार की उम्मीद जगी है. छतरपुर जिले के बकस्वाहा में बड़े पैमाने पर हीरे के लिए उत्खनन किया जाना है, इसके लिए लाखों की संख्या में पेड़ काटे जाएंगे. हीरे के बदले हरियाली खत्म करने का विरोध भी हो रहा है. वहीं दूसरी तरफ भूगर्भ शास्त्रियों का कहना है कि बुंदेलखंड में सिर्फ पन्ना और छतरपुर ही नहीं, बल्कि सागर और दमोह में भी इसी तरह की संभावनाओं पर शोध किया जा रहा है, जल्द ही इसके परिणाम सामने होंगे.

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जमीन के अंदर कहां और क्यों पाया जाता है हीरा

आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में हीरे के भंडार की खोज में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके सागर विश्वविद्यालय के भूगर्भ शास्त्री डॉ. मनीष पुरोहित के रिसर्च को करेंट साइंस शोध पत्रिका में स्थान मिला है. वो बताते हैं कि पन्ना और छतरपुर के बक्सवाहा में जहां हीरे पाए जा रहे हैं, यह एक प्लूटोनिक रॉक होती है, जिसे किंबरलाइट के नाम से जानते हैं. यह अर्थ क्रस्ट में वर्टिकल स्ट्रक्चर के रूप में जमा होती है, जिसे किंबरलाइट पाइप कहा जाता है. पन्ना और छतरपुर के बक्सवाहा में जहां हीरा निकल रहा है, उसका मुख्य स्रोत किंबरलाइट पाइप है, यह पाइप सरफेस के अंदर रेडिएटिंग फॉर्म में बनता है.

बुंदेलखंड की धरती उगल रही है हीरे

क्या है किंबरलाइट पाइप

भूगर्भ शास्त्र के अनुसार किंबरलाइट एक आग्नेय चट्टान है, जो हीरे का मुख्य स्रोत है. अपने गठन के 150 से 450 किमी की दूरी के बीच पृथ्वी की सतह के नीचे गहराई में यह चट्टान होती है. यह एक दुर्लभ नीले रंग की चट्टान है, जिसमें हीरे पाए जाते हैं. प्रमुख रूप से दक्षिण अफ्रीका और साइबेरिया में यह बहुतायत में पाया जाता है. खुरदरी कणों से बनी सूक्ष्म कणों की अपारदर्शी चट्टान होती है, हमेशा गहरी महाद्वीपीय परत के ऊपर ज्वालामुखी नली के रूप में पाई जाती है, यह सबसे पुरानी चट्टानों में से एक हैं, जिनकी सतह काफी चमकदार होती है.

बक्सवाहा के हीरे एक ही किंबरलाइट पाइप की देन

भूगर्भ शास्त्री डॉ. मनीष पुरोहित का कहना है कि पन्ना के मझगवां इलाके में जो कई सालों से हीरे का उत्खनन किया जा रहा है और जो छतरपुर के बक्सवाहा में हीरे का उत्खनन प्रस्तावित है, वह एक ही किंबरलाइट पाइप है. सागर संभागीय मुख्यालय को केंद्र मानकर अगर देखा जाए तो सागर से पन्ना उत्तर पूर्व दिशा में हैं और छतरपुर उत्तर दिशा में हैं. भूगर्भीय स्थिति के अनुसार यह एक ही किंबरलाइट पाइप है, जो कैमूर एसएसटी (सेंडस्टोन) का विंध्याचल पर्वत श्रेणी का एक हिस्सा है. इसका विस्तार पन्ना, छतरपुर के अलावा सागर एवं दमोह जिले में भी है.

सागर और दमोह में भी इस तरह की संभावनाएं

मनीष पुरोहित बताते हैं कि किंबरलाइट पाइप का विस्तार सिर्फ पन्ना और छतरपुर जिले में ही नहीं है, बल्कि इसका विस्तार दमोह और सागर जिले में भी है. दमोह और सागर जिले में हीरे की संभावनाओं को लेकर भी कई शोध कार्य चल रहे हैं और भविष्य में इनकी संभावनाओं पर विस्तार से जानकारी दी जाएगी. फिलहाल बक्सवाहा में जो हीरे की संभावना जताई गई है, वह पन्ना के हीरे की खोज का ही विस्तार है.

दो लाख से ज्यादा पेड़ काटे जाने का हो रहा विरोध

बकस्वाहा में हीरा खनन के लिए राज्य सरकार ने एक निजी कंपनी को खुदाई के लिए जंगल काटने की अनुमति दी है. एक अनुमान के मुताबिक 380 हेक्टेयर के जंगल में 40 से ज्यादा किस्मों के दो लाख से ज्यादा पेड़ काटे जाने हैं. जिसका पर्यावरण प्रेमी बड़े पैमाने पर विरोध कर रहे हैं. पर्यावरणविद इंदु जया चौधरी का कहना है कि हीरा भले ही बेशकीमती है, लेकिन उससे कहीं ज्यादा बेशकीमती हमारी हरियाली है, बक्सवाहा के जंगल हमारी धरोहर हैं और वहां की जैव विविधता हीरा खनन परियोजना के कारण खतरे में हैं, इसलिए हम इसका विरोध कर रहे हैं. हालांकि, इस मामले में एनजीटी ने फिलहाल रोक लगा दी है, लेकिन हमारा कहना है कि भविष्य की संभावनाओं को देखते हुए वर्तमान को नष्ट नहीं करना चाहिए.

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