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संकट में बीड़ी उद्योग, केंद्र की कमेटी में व्यवसायियों और कारीगरों को नहीं मिली जगह, कैसे होगा न्याय?

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Published : Oct 25, 2021, 7:15 PM IST

Updated : Oct 25, 2021, 9:44 PM IST

मध्य प्रदेश में 250 साल पुराने बीड़ी उद्योग पर संकट छाया हुआ है. केंद्र ने बीड़ी व्यवसाय पर कर का निर्धारण करने के लिए एक कमेटी का गठन किया है. इस कमेटी में बीड़ी उद्योग से जुड़े किसी भी व्यापारी और कारीगरों को शामिल नहीं किया. इस फैसले का विरोध करते हुए बीड़ी व्यवसाय से जुड़े लोगों का कहना है कि प्रदेश सरकार इस व्यवसाय को बंद करने पर तूली है. बीड़ी कामगार यूनियन का कहना है कि पीछले 50 सालों से इस व्यवसाय को बंद करने की साजिश की जा रही है.

Beedi industry in crisis
संकट में बीड़ी उद्योग

सागर। बीड़ी व्यावसाय पर लगातार संकट के बादल मंडरा रहे हैं. पहले कोटपा कानून (सिगरेट एंड अदर टोबेको प्रोडक्ट एक्ट) और फिर बीड़ी व्यावसाय पर करारोपण के लिए बनाई गई. कमेटी में बीड़ी व्यवसाय से जुड़े लोगों को स्थान न दिए जाने से निराशा का माहौल है. दरअसल केंद्र सरकार ने बीड़ी पर जीएसटी और अन्य टेक्स पर विचार-विमर्श के लिए विशेषज्ञों की समिति का गठन किया.

इस समिति में बीड़ी व्यवसाय से जुड़े उद्योगपतियों, व्यवसायियों और कारीगरों को शामिल नहीं किया गया है. ऐसी परिस्थिति में निराशा का माहौल निर्मित हो गया. इस व्यवसाय से जुड़े लोगों का मानना है कि व्यवसाय की मौजूदा परिस्थितियों को समझने वाले लोगों को समिति में स्थान ना मिलने से व्यवसाय के साथ न्याय नहीं हो पाएगा.

संकट में बीड़ी उद्योग

केंद्र सरकार ने गठित की समिति

केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने 12 अक्टूबर 2021 को तंबाकू उत्पादों पर जीएसटी और अन्य करों पर विचार विमर्श के लिए विशेषज्ञों की समिति का गठन किया. इस समिति में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय, विश्व स्वास्थ्य संगठन, नीति आयोग, जीएसटी और केंद्रीय मंत्रालय के अलावा स्वास्थ्य अर्थशास्त्री डॉ. रिजो एम जॉन को शामिल किया गया है.

हैरत की बात है कि इस समिति में बीड़ी कारीगरों या तंबाकू उत्पाद के निर्माताओं को स्थान नहीं दिया गया. इन परिस्थितियों में प्रतीत हो रहा है कि तंबाकू से जुड़ा यह व्यवसाय अंत की ओर जा रहा है. बीड़ी व्यावसाय से जुड़े लोगों को चिंता है कि उन्हें स्थान ना मिलने पर समिति में उनके हितों की अनदेखी होगी. उनकी समस्याओं पर भी विचार विमर्श नहीं होगा.

कर को पहले जैसा रखें सरकार- बीड़ी उद्योग संघ

मध्य प्रदेश बीड़ी उद्योग संघ के अनिरुद्ध पिंपलापुरे का कहना है कि बीड़ी एक प्राकृतिक, श्रम आधारित, असंगठित, ग्रामीण कुटीर उद्योग है. जिसका कार्बन उत्सर्जन बहुत कम है. इसके उत्पाद प्राकृतिक वस्तुओं से बनते हैं और फेंकने पर प्रकृति में विलीन हो जाते हैं. यह व्यवसाय सिगरेट या अन्य तंबाकू उत्पादों और उद्योगों से अलग है. तंबाकू उत्पाद की कर संबंधी समिति को बीड़ी पर कर बढ़ाने की अपेक्षा कर की वर्तमान दरों को जस का तस रखते हुए कर की चोरी रोकने पर ध्यान रखना चाहिए.

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कर बढ़ाने से इमानदार व्यापारियों की होगी फजीहत

अनिरुद्ध पिंपलापुरे ने बताया कि बीड़ी जंगलों में चोरी के पत्ते, सस्ती या चुराई हुई तंबाकू से बिना बिजली या पानी के आसानी से निर्मित हो जाती है. इस तरह की परिस्थितियों में कर चोर और नक्काल इस बीड़ी को अवैध रूप से बेचने का धंधा करेंगे. मौजूदा परिस्थिति में भी ऐसे लोग कर बचा ले जाते हैं. वर्तमान स्थिति ये है कि कर अदा करने वाले नियमबद्ध निर्माता बाजार में इन कर चोरों और नक्कालों से मुकाबला नहीं कर पा रहे हैं.

ऐसी स्थिति में जीएसटी, सेस या एक्साइज ड्यूटी बढ़ाए जाने से कर चोरों की चांदी हो जाएगी. नियमानुसार कर अदा करने वाले निर्माताओं को अपना धंधा बंद करना पड़ेगा. ऐसी स्थिति में सरकार को भी फायदा नहीं होगा, क्योंकि सरकार का राजस्व संग्रहण घट जाएगा. इसलिए सरकार को बीड़ी या संबंधित वस्तुओं पर कर की दरें बढ़ाने की अपेक्षा पंजीकृत निर्माताओं को पंजीकृत कर कर भरवाने पर ज्यादा जोर देना चाहिए.

बीड़ी नहीं बचेगी तो तेंदू पत्ता संग्राहकों का क्या होगा

बीड़ी कामगार यूनियन के अध्यक्ष अजीत जैन के अनुसार बीड़ी उद्योग प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से करोड़ों श्रमिकों को रोजगार देता है, जिसमें तेंदूपत्ता संग्राहक भी शामिल हैं. जो अधिकांश आदिवासी हैं. हाल ही में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने तेंदूपत्ता संगठन की नीति में सुधार कर इस उद्योग को आदिवासियों के लिए और लाभदायक बनाने की घोषणा की थी. हमारा कहना है कि यदि बीड़ी नहीं बचेगी, तो तेंदू पत्ते का क्या उपयोग रह जाएगा. ऐसी स्थिति में इस समिति के निर्णय या सुझाव एक तरफा ही कहलाएंगे.

क्योंकि इनमें उद्योग से जुड़े सभी शेयरधारकों को अपना पक्ष रखने का अवसर नहीं मिल रहा है. वैसे भी तंबाकू पर केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और डब्ल्यूएचओ का विशेष ध्यान हैं, वे इसे नशे की अपेक्षा जहर समझने लगे है. हालांकि विश्व स्तरीय शोध संस्थाओं ने प्रमाणित किया है कि तंबाकू पीने वालों के फेफड़ों पर कोरोना कम घातक होता है.

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सरकारों की नजर में तंबाकू ही नशे का जरिया

कोरोना की दूसरी लहर के चलते भी कोरोना नियंत्रण की अपेक्षा कोटपा और अन्य तंबाकू विरोधी गतिविधियों पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और डब्ल्यूएचओ को ज्यादा ध्यान देना उचित लगा. ऐसा प्रतीत होता है कि केंद्र और राज्य सरकारों के सभी विभागों ने केवल तंबाकू उत्पादों को नशे का इकलौता जरिया समझ रखा है. जबकि कई आलीशान क्रूज जहाजों पर कई प्रकार के नशीले पदार्थों का सेवन करने वाले भी बहुत हो गए हैं. आज कई नामी सितारे पान मसाले के विज्ञापनों में भी दिखाई देते हैं.

प्रधानमंत्री की मंशा के विपरीत हो रहा काम

बीड़ी उद्योग से जुड़े उद्योगपतियों और कारीगरों यूनियनों का मानना है कि प्रधानमंत्री ने 100 करोड़ वैक्सीनेशन के उपलक्ष्य में बधाई देते हुए वोकल फॉर लोकल, मेड इन इंडिया और छोटे दुकानदारों के साथ स्वदेशी उद्योग को प्रोत्साहित करने की बात की थी. लेकिन प्रदेश में 250 साल पुराने बीड़ी उद्योग को खत्म करने की कोशिश हो रही है.

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तंबाकू के धंधे को बंद करने की साजिश

बीड़ी कामगार यूनियन के अजीत जैन का कहना है कि केंद्र जो कमेटी बनाई है, उसकी कभी मांग नहीं की गई. इसका उद्देश्य सिर्फ टैक्स बढ़ाकर खजाना भरना है. देश में इस व्यवसाय से जुड़े करोड़ों लोगों को नजरअंदाज कर यह कमेटी बनाई गई है. उनका कहना है कि पिछले 50 सालों में तंबाकू के खिलाफ एक लॉबी काम कर रही है. देश में गांजा, अफीम, शराब को छूट मिल रही है. वही खेती के बाद सबसे ज्यादा लोगों को आत्मनिर्भर बनाने वाले बीड़ी का धंधा बंद होने की कगार पर है.

Last Updated : Oct 25, 2021, 9:44 PM IST

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