सागर। मधुमक्खी कई चिकित्सीय गुणों से भरपूर मीठा शहद देती है, तो दूसरी तरफ मधुमक्खी का डंक इतना खतरनाक होता है कि अगर मधुमक्खी किसी इंसान को काट दे, तो दर्द बैचेनी के साथ गंभीर एलर्जी के अलावा मौत भी हो जाती है लेकिन ये जानकर हैरानी होगी कि मधुमक्खी का डंक कई बीमारियों का इलाज करने में भी सक्षम होता है जिसे हम एपेथेरेपी, बी थेरेपी और बी-वैनम थेरेपी के नाम से भी जानते हैं. मेडिकल साइंस में अल्टरनेटिव थेरेपी के रूप में पहचान रखने वाली इस थेरेपी का चलन दुनिया के कई देशों में है और इन दिनों मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड में मधुमक्खी के डंक से इलाज काफी लोकप्रिय हो रहा है. एपीथेरेपी का उपयोग चीन, कोरिया और रूस सहित यूरोप, एशिया और दक्षिण अमेरिका के कई देशों में पारंपरिक चिकित्सा के रूप में किया जाता है. हमारे देश और मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड इलाके में भी ये थेरेपी काफी चर्चित हो रही है. बुंदेलखंड के सागर और दमोह में कई जगहों पर इस पद्धति से इलाज हो रहा है.
कितनी पुरानी है एपेथैरेपी:वैसे तो मधुमक्खी के उत्पादों से चिकित्सा की पारंपरिक पद्धतियां चीन,रूस,मिश्र और यूरोप में काफी चर्चित रही है. मधुमक्खी के डंक से इलाज की पद्धति एपेथेरिपी की बात करें,तो इसका पहला उल्लेख ऑस्ट्रिया के डॉक्टर फिलिप टेरेक के 1888 में लिखे गए लेख में मिलता है. जिसमें उन्होंने मधुमक्खी के डंक से गठिया के इलाज के बारे मे लिखा था. वहीं बी वैनम थेरेपी के नाम की बात है तो हंगरी के डॉक्टर बोडोग एफ ने 1935 में पहली बार मधुमक्खी विष चिकित्सा शब्द का उपयोग किया था. हालांकि इस थैरेपी को अल्टरनेटिव थैरेपी के रूप में ही प्रयोग किया जाता है. जर्मनी में एपीथेरेपी का चलन बड़े पैमाने पर होता है. चीन, जापान, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया और थाईलैण्ड में एपीथेरेपी के लिए अलग से अस्पताल खोले गए हैं. एपेथेरपी अर्थराइटिस, माइग्रेन, थॉयराइड, साइटिका और सर्वाइकल जैसी बीमारियों में कारगर है.