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बढ़ती मांगों के साथ बढ़ी जन समस्याएं, कोई बीमार तो कोई प्रदूषण का शिकार

रीवा शहर से महज 10 किलोमीटर की दूरी पर दो अलग-अलग क्षेत्र बेला और बांकुइया में स्टोन क्रेशर संचालित किए जा रहे हैं. जिसके चलते लोगों का अपने घरों में रहना मुश्किल हो रहा है. वहीं कई तरह की बीमारियों के डर से ग्रामीण दशहत में जीने को मजबूर हैं.

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रीवा

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Published : Sep 16, 2020, 6:02 PM IST

रीवा।मध्यप्रदेश के रीवा जिले में इन दिनों दिन रात भारी-भरकम मशीनें चलने की वजह से प्रदूषण बढ़ता जा रहा है, और विकास की रेस में मानव जीवन के संकट का दौर कहीं न कहीं शुरू हो गया है. एक ओर जहां देशभर में पत्थर की बढ़ती मांगों के साथ स्टोन क्रेशर अधिक संख्या में संचालित हो रहे हैं. वहीं दूसरी ओर लगातार प्रदूषण बढ़ता जा रहा है, कुछ ऐसी ही तस्वीरें मध्यप्रदेश के रीवा जिले से देखने को मिल रही हैं, जहां लोग बढ़ते प्रदूषण के चलते आए दिन जान जोखिम में डालकर संघर्ष कर रहे हैं.

डस्ट, बीमारी और मुसीबत

डस्ट, बीमारी और मुसीबत

बढ़ती पत्थर और कंक्रीट की मांगों के चलते रीवा शहर से महज 10 किलोमीटर की दूरी पर दो अलग-अलग क्षेत्र बेला और बांकुइया में स्टोन क्रेशर संचालित किए जा रहे हैं. जिसके चलते लोगों को आसानी से पत्थर और गिट्टी तो मिल रही हैं, लेकिन लोगों की इन सुविधाओं के चलते कई समस्याएं भी तैयार हो रही हैं. लोगों को इन समस्याओं से हर रोज कहा-सुनी का सामना करना पड़ रहा है, हालत ये हैं कि स्टोन तोड़ने के दौरान होने वाले ब्लास्ट से लोगों का अपने घरों में रहना मुश्किल हो रहा है.

लगातार जारी है अवैध खनन

जिले में खनन माफिया का आंतक
दरअसल माइंस और स्टोन क्रशर को संचालित करने के लिए कई प्रकार के मापदंड बनाए गए हैं, लेकिन उन नियमों को ताक पर रखकर शहरी क्षेत्रों में माइंस का काम किया जा रहा है. पत्थर निकालने के लिए खुदाई पर अलग-अलग नियम बनाया गया है, लेकिन खनन माफिया नियमों को दरकिनार करते हुए खुदाई करते जा रहे हैं.

बढ़ते प्रदूषण का कौन जिम्मेदार ?

खनन माफिया इस पूरे क्षेत्र में इस कदर हावी हैं की सड़कों के दोनों ही तरफ खाई नुमे गड्ढे बना दिए हैं, जिसकी वजह से ग्रामीणों का आवागवन भी प्रभावित हो रहा है. वहीं क्षेत्रों में संचालित सैकड़ों स्टोन क्रेशरों द्वारा प्रदूषण नियंत्रण को लेकर किसी भी प्रकार के कार्य नहीं किए जा रहे हैं. इसके चलते आम लोगों का बीमार होना भी आम बात हो गई है.

माफिया का आतंक

स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर कोई इंतजाम नहीं

लोगों की बीमारियों को देखते हुए जब ईटीवी भारत की टीम ने जिला स्वास्थ्य अधिकारी एम एल गुप्ता ने कहा कि ऐसे क्षेत्रों में लोगों को सांस लेने में तकलीफ और फेफड़े की बीमारी होती है.

जिसका इलाज असंभव है. और इसके लिए अधिक से अधिक बचाव ही लोगों को सुरक्षित रख सकता है. स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी का कहना है कि इन क्षेत्रों में किसी भी प्रकार की स्वास्थ्य से जुड़े शिविर का आयोजन नहीं किया जाता है, जिसके कारण बीमारियों के प्रति लोग जागरूक भी नहीं हैं.

इस लापरवाही का कौन जिम्मेदार?

पत्थर और कंक्रीट की आवश्यकताओं को देखते हुए जिस प्रकार से माइंस संचालित हैं उससे प्रदूषण में भी लगातार विस्तार हो रहा है. जिसके कारण प्रदूषण के चलते लोगों को बीमारियों का भी सामना करना पड़ रहा है, और क्षेत्र में अब हर घर से लोग बीमार होते जा रहे हैं. मगर जिला प्रशासन इस ओर किसी भी प्रकार का ध्यान देने की वजह पत्थर और कंक्रीट पर अपनी कमाई कर रहा है.


आखिर कौन सी कार्रवाई से पड़ेगा असर?

वहीं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की मानें तो उनके द्वारा प्रदूषण की रोकथाम को लेकर हर रोज नई-नई तकनीक के तहत काम किया जा रहा है, और स्टोन क्रेशर वाले स्थानों पर पौधारोपण की व्यवस्था कराई जा रही है. इसके साथ लापरवाही करने वालों पर समझाइश के साथ कार्रवाई की जा रही है, और न मानने पर बिजली काट दी जाती है, इसके बावजूद लापरवाही करने पर कोर्ट केस भी किया जा रहा है.

ग्रामीणों को कब मिलेगी राहत?

बहराल कार्रवाई कितनी की जाती है, और कितनों पर लगाम कसा जाता है, ये अपने आप में एक बड़ा सवाल है, लेकिन इन माफियाओं द्वारा लगातार हेवी ब्लास्टिंग कर धरती को छलनी करने में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है. जिसका खामियाजा मासूम जनता को उठाना पड़ता है.

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