रीवा। प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर गोविन्दगढ़ का यह ऐतिहासिक किला लगभग 200 वर्ष पुराना है. यह किला कभी रीवा रियासत के महाराजाओं की शान हुआ करता था. इस भव्य किले का निर्माण वर्ष 1855 में रीवा रियासत के महाराजा विश्वनाथ सिंह ने कराया था. विश्व का पहला सफेद बाघ मोहन भी इसी किले में पला और बड़ा हुआ. लेकिन समय बीतता गया और किले का अस्तित्त्व खत्म होता चला गया. देखरेख के अभाव में एक विशालकाय और खूबसूरत किला खंडहर में तब्दील हो गया. बीते कई वर्षों से सरकार इसके संरक्षण के लिए योजनाएं तो बना रही थी, लेकिन इसे मूर्तरूप नहीं दिया जा सका. लेकिन अब जल्द ही किला अपना वास्तविक रूप ले लेगा. इसके लिए सरकार ने वाइल्ड लाइफ हैरिटेज कंपनी को काम सौंप है.
महाराजा विश्वनाथ सिंह जू देव ने कराया था किले का निर्माण
रीवा रियासत में अब तक 37 राजाओं और उनकी पीढ़ियों ने राज किया. इन्ही राजाओं में से एक राजा थे महाराजा विश्वनाथ सिंह जू देव. महाराजा विश्वनाथ जू देव के पुत्र थे रघुराज सिंह जू देव. जिनका विवाह वर्ष 1851 के दौरान उदयपुर के महाराजा की बेटी राजकुमारी सौभाग्य कुमरी के साथ हुआ था. इतिहासकारों की मानें तो विवाह से पहले उदयपुर के महाराजा ने रीवा महाराजा विश्वनाथ सिंह के सामने उदयपुर स्थित लेक पैलेस के तर्ज पर रीवा में एक भव्य किला निर्माण कराने की शर्त रखी. जो प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर हो. जिसके बाद महाराजा विश्वनाथ सिंह जू देव ने उनकी शर्त मान ली और गोविन्दगढ़ में एक महल का निर्माण कार्य शुरू करवा दिया. महल के निर्माण कार्य से पहले एक विशालकाय तालाब का निर्माण कराया गया. जिसका नाम विश्वनाथ सरोवर रखा गया. जिसे आज के समय मे गोविन्दगढ़ तालाब भी कहा जाता है. तालाब के किनारे एक बंगले का निर्माण कराया गया. जो की उदयपुर के लेक पैलेस से मिलता जुलता था. वर्ष 1851 में किले का निर्माण कार्य शुरू हुआ. शर्त के अनुसार कुछ वर्षों बाद महाराजा रघुराज सिंह जू देव का विवाह उदयपुर की राजकुमारी सौभाग्य कुमारी के साथ संपन्न हुआ. महरानी बनकर इसी गोविंदगढ़ के किले में उनका निवास हुआ और 4 वर्षों के बाद महाराजा विश्वनाथ सिंह जू देव का निधन हो गया. जिसके बाद आगे का निर्माण कार्य उनके पुत्र महाराजा रघुराज सिंह जू देव की देख रेख में हुआ.
वृन्दावन के तर्ज पर विकसित किया गया गोविन्दगढ़ का कस्बा
निर्माण कार्य के दौरान किले के आस पास बड़ी संख्या में मंदिरों का भी निर्माण कार्य कराया गया. वृन्दावन के तर्ज पर कस्बे को विकसित किया गया. जिनमें से एक मंदिर में रमा गोविंद भगवान की स्थापना की गई और तब से इस कस्बे का नाम गोविन्दगढ़ हुआ. जबकि पहले गोविंदगढ़ को खंदो के नाम से जाना जाता था. लेकिन इस ऐतिहासिक किले और मंदिरों के अंदर रखी बेशकीमती मूर्तियों पर तस्करों की नजर पड़ी एवं कई मंदिरों से मूर्तिया चोरी कर ली गईं. वर्ष 1951 में विश्व का पहले सफेद बाघ मोहन को इसी गोविन्दगढ़ के जंगलों से पकड़ा गया था. इसके बाद में गोविन्दगढ़ के किले में रखा गया. जिसके वंशज आज दुनिया भर के चिड़ियाघरों में मौजूद हैं. 25 वर्षों तक मोहन की देख रेख की गई और लगभग 1976 के दरमियान मोहन ने अंतिम सांस ली. जिसकी याद में किले के बाहर बगीचे में उसकी समाधी बनाई गई.