रीवा। एक पुरानी कहावत है कि महिलाएं अगर कुछ करने की ठान लें, तो वह पुरुषों को भी पीछे छोड़ देती हैं. यह कहावत रीवा जिले की सैकडों महिलाओं पर सही बैठती है. इन महिलाओं ने अपने जीवन यापन के लिए एक अलग ही जरिया बना लिया है. यह महिलाएं स्वयं सहायता समूह से जुड़कर अपना और अपने घर का खर्चा खुद ही निकालती हैं.
स्वयं सहायता समूह की मदद से बदली महिलाओं की जिंदगी रीवा के बैजनाथ गांव में महिलाएं 2012 से लगातार श्रुति डेवलपमेंट फाउंडेशन (NGO) की मदद से स्वयं सहायता समूह चला रही हैं. जो ग्रामीण महिलाएं कभी घर के कामकाज से मुक्त नहीं हो पा रही थीं, कभी समाज में अपनी एक पहचान नहीं बना रही थीं. वह महिलाएं घर बैठे रोजगार के साधन उपलब्ध करा रही हैं.
ये महिलाएं अपने घरों में ही पापड़ और अचार की अलग-अलग वैरायटी बनाकर बाजारों में उसे बेचतीं हैं. समय के साथ- साथ इनका व्यवसाय भी बढ़ने भी लगा है. अब यह महिलाएं केवल घर के कामकाज में ही नहीं, बल्कि अपने घर के पुरुषों से भी ज्यादा पैसा कमा लेती हैं.
समूह में काम करने वाली महिलाओं का कहना है कि, उन्हें हमेशा से ही इस बात का दुख रहता था, कि वह कभी अपने हुनर को लोगों के सामने नहीं ला पाएंगी. पर इस NGO से जुड़ने के बाद उसका ये सपना भी पूरा हो गया. NGO संचालक सुदीप ने उनकी इस स्वयं सहायता समूह को शुरु करने में मदद की. साथ ही लगातार इनसे जुड़े हुए लोग इन्हें प्रशिक्षण भी देते रहते हैं.