रीवा।रीवा जिले के देऊर कोठार में प्राचीन गुफा और शैलचित्र अंकित हैं. बताया जाता है कि इन भित्ति चित्रों को आदि मानव के द्वारा उकेरा गया है. ये स्थान रीवा-प्रयागराज राष्ट्रीय राजमार्ग में कटरा से 3.5 किलोमीटर की दूरी मौजूद है. 1999 से 2000 के बीच मध्यप्रदेश पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा उत्खनन कार्य उपरांत बौद्ध स्थापत्य के अति महत्वपूर्ण पुरा अवशेष प्राप्त हुए थे. इनमें स्तूप और विहार के स्पष्ट अवशेष दिखाई देते हैं. इन पुरातत्विक महत्व के अवशेषों की खोज का श्रेय डॉ. फणिकांत मिश्र एवं स्थानीय शोधकर्ता अजीत सिंह को जाता है.
देऊर कोठार में है 5000 साल का संसार
प्रयागराज और रीवा दोनों से ही तकरीबन 72 और 70 किलोमीटर की दूरी पर बसा यह अनूठी विरासत कम से कम 5000 साल पुरानी है. यहां की हरी भरी वादियों में मंदिर से लेकर बौद्ध स्तूप तक मौजूद हैं. जो भित्ति चित्र और शैल चित्र देऊर से मिले हैं उनकी उम्र कम से कम 5 हजार साल आंकी गई है और ये मौर्य काल की शैलचित्र हैं. यही नहीं यहां मिले बोद्ध स्तूपों की उम्र भी कम से कम 2 हजार साल की है. इस अनूठे संसार की पहली झलक साल 1982 में मिली थी और उसके बाद ही इसकी खोज शुरु हुई. 1999 के बाद ये राज राज न रहा और दुनिया को इसका ठीक-ठाक पता चल गया.
गुफाओं से 8 मील दूर से आवाज होती है रिफ्लेक्ट
देऊर कोठार की वादियों की सबसे बड़ी खासियत है यहां आवाज का रिफ्लेक्शन. अगर आप गुफाओं के आखिर में खड़े होकर वादियों की तरफ मूंह करके जोर से बोलेंगे तो कम से कम 8 मील दूर से आपकी आवाज वापस ट्रैवेल करके दुबारा सुनाई देगी. इसे आवाज का ईको होना भी कहते हैं. दरअसल प्रकृति की गोद में समाए इस इलाके की ज्योग्राफी ही कुछ ऐसी है कि जो यहां आता है उसे देऊर से प्यार हो जाता है.