रीवा। विंध्य की सांस्कृतिक गतिविधियों को सहेजने के उद्देश्य से करोड़ों रुपये लगाकर अंतर भारती केंद्र की स्थापना की गई थी. उस वक्त ना तो पैसे की कमी थी, ना ही इसके लिए काम करने वालों की कमी. सभी चाहते थे कि मौजूदा इमारत जिस उद्देश्य के लिए बनाई गई है, उसके लिए वह काम भी करें. लेकिन जिम्मेदारों ने इस तरफ गंभीरता से ध्यान नहीं दिया. वहीं अब सांस्कृतिक गतिविधियों को सहेजने की जगह आज ये बिल्डिंग खुद को बचाने की जद्दोजहद कर रही है.
स्थापना के 29 साल बाद भी शुरू नहीं हुआ अंतर भारती केंद्र इसलिए हुई अंतर भारती की स्थापना
29 साल पहले मानव संसाधन मंत्री कुंवर अर्जुन सिंह ने विंध्य की सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक गतिविधियों को बढ़ाने के लिए भोपाल के भारत भवन की तर्ज पर रीवा के अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय में अंतर भारती केंद्र की परिकल्पना की. इसके लिए देशभर के चुनिंदा लोगों को जोड़ने की कोशिश भी की गई. रविंद्र ने मौजूदा बिल्डिंग की परिकल्पना साकार करने का काम तो किया ही. वहीं अशोक बाजपेई, हबीब तनवीर जैसे लोगों ने अंतर भारतीय से जुड़कर काम करने की इच्छा जताई. व्यक्ति मानव संसाधन विभाग ने एक करोड़ की पहली किश्त जारी कर दी. जिसके बाद बिल्डिंग का काम जोर-शोर से शुरू कर दिया गया. कैमूर के पहाड़ की बाहरी बनावट से प्रेरित होकर के रविंद्र ने बिल्डिंग का बाहरी हिस्सा डिजाइन किया. अंदर से फर्श पर लकड़ी का काम किया गया. बिल्डिंग इस तरीके से बनाई गई कि आवाज ना गूंजे.
विश्वविद्यालय के कर्मचारी करेंगे अंतर भारती की शुरूआत
कर्मचरियों का कहना है कि बिल्डिंग की स्थापना हुए सालों हो गए लकिन जिम्मेदार लोगों ने इस पर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया. कर्मचरियों ने कहा कि अब वे लोग नए कुलपति के साथ मिलकर इसका बारे में जरूर ही गंभीरता से चर्चा करेंगे और पूरी कोशिश करेंगे कि इसकी शुरूआत हो सके. प्रशासन के साथ विश्वविद्यालय के पूरे कर्मचारी इस मामले में साथ है. करोड़ों की लागत से बनी ये अद्भुत इमारत महज 29 साल में ही अपने वजूद को बचाने के लिए संघर्ष कर रही है. हबीब तनवीर, अशोक बाजपेई जैसे बड़े नामों के जुड़ने के बाद भी हबीब तनवीर के चरणदास चोर के बाद यहां पर किसी तरीके की कोई संस्कृति गतिविधिया नहीं हुई.