रीवा।आप को अगर किसी भी तरह की तकलीफ या फिर कोई गंभीर बीमारी हो जाए तो आप सीधा डॉक्टर का दरवाजा ही खटखटाते है, इसके बाद आप डॉक्टर से अपनी तकलीफ बयां करते हैं जिसके बाद डॉक्टर आपका इलाज कर आप को ठीक तरह से स्वस्थ करने का हर संभव प्रयास करता है. मगर जब आप को कोई ऐसी गंभीर और अंजान बीमारी घेर ले, जिसके बारे में आप को तो क्या किसी डॉक्टर को भी पता न तब आप सिर्फ भगवान के ही भरोसे रह जाते है. ऐसी ही एक गंभीर बीमारी का मामला सामने आया है रीवा जिले के त्योंथर तहसील स्थित अंजोरा गांव से यहां पर रहने वाले एक ही परिवार के 5 सदस्य बीते कई वर्ष पूर्व एक गंभीर बीमारी का शिकार हो गए और उनका शरीर सूखकर हड्डियों का ढांचा बनकर रह गया.
अंजान बीमारी से ग्रसित थे एक ही परिवार के 5 सदस्य:दरासल रीवा जिले के त्योंथर तहसील क्षेत्र स्थित अजोरा गांव में रहने वाले एक ही परिवार के 5 सदस्य पिछले कई वर्षों से एक गंभीर बीमारी से पीड़ित थे, जिसका इलाज समूचे भारत में किसी भी डॉक्टर के पास नही था. इस अंजान और गंभीर बीमारी से पीड़ित परिवार अपने स्वस्थ होने की पूरी उम्मीदें ही खो चुका था. परिवार के पांचों सदस्यों का शरीर धीरे-धीरे सूखता चला गया और वह मात्र हड्डी का ढांचा बनकर रह गए. परिवार के पांचों सदस्य को इस अंजान बीमारी के बारे में कुछ भी पता नहीं था. बता दें कि अंजान बीमारी के प्रकोप ने 64 वर्षीय पिता रामनरेश यादव व उनके 3 पुत्र मनीष (23 वर्ष), अनीष(25 वर्ष), मनोज (28 वर्ष) और बेटी सुशीला यादव (32 वर्ष) को बीते कई वर्ष पहले अचानक से घेरना शुरू कर दिया था.
देश के कई स्थानों में चला इलाज फिर भी नहीं चला बीमारी का पता:पीड़ित परिवार ने इस अंजान बीमारी का इलाज देश के कई कोनों में कराया, लेकिन बड़े-बड़े डॉक्टर भी परिवार के इस गंभीर बीमारी का इलाज नहीं कर पाए और न ही उनकी इस अंजान बीमारी के बारे में पता लगाया जा सका. अंजान और गंभीर बीमारी का इलाज कराते-कराते परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होती चली गई और परिवार पाई-पाई का मोहताज हो गया. इसके बाद पीड़ित परिवार अपने स्वस्थ होने की सारी उम्मीदें छोड़कर सरकार से मदद की दरकार करने लगा.
सूख कर हड्डी का ढांचा बनते जा रहे थे परिवार के 5 सदस्य:पीड़ित परिवार के सभी 5 सदस्य अंजान और गंभीर बीमारी से ग्रसित थे, उनका शरीर लगातार सूखता जा रहा था. शरीर के सूखने के साथ ही उनका वजन भी घटता चला गया और धीरे-धीरे कर के वह हड्डी के ढांचे में तब्दील होते चले गए. हालाकि गंभीर बीमारी होने के बावजूद भी पीड़ित परिवार की दिनचर्या आम इंसानों की तरह ही थी, वह आम इंसान की तरह ही भोजन करते और उन्हीं की तरह ही विश्राम करते थे. हालांकि पीड़ितों को घूमने- फिरने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता था.