रीवा। संभागीय मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूर सीधी रोड पर गोर्गी नाम की एक जगह है, जिसे आठवीं शताब्दी में कलचुरी राजाओं ने बसाया था. कलचुरी राजाओं ने गोर्गी कोमट मंदिर को शहर की तर्ज पर विकसित किया था. जहां तरह-तरह की प्रतिमाओं को पत्थर पर उकेरा गया था. जिन्हें आज भी शिल्प कला का बेजोड़ नमूना माना जाता है. मगर बदलते वक्त के साथ अब वहां इधर-उधर बिखरी मूर्तियों के अवशेष के अलावा कुछ भी नजर नहीं आता है.
रीवा किला परिसर में स्थित गणेश की इस मूर्ति की नहीं होती है पूजा-अर्चना गोर्गी से बहुत सी मूर्तियां चोरों ने गायब कर दी थी, लेकिन कुछ बची हुई मूर्तियों को तत्कालीन रीवा महाराज गुलाब सिंह जूदेव एवं उनके बेटे महाराज मार्तंड सिंह जूदेव ने संरक्षण के उद्देश्य से रीवा जिले में स्थापित कर दिया था. उन्हीं में से एक है भगवान गणेश की मूर्ति, इस मूर्ति को एरोटिक गणेश के नाम से जाना जाता है.
बताया जाता है कि गणेश की ये मूर्ति इस रूप में दुनिया में और कहीं नहीं है. ये मूर्ति छठवीं से आठवीं शताब्दी के बीच की है, हालांकि इस मूर्ति को पूजा नहीं जाता है. इसे किला परिसर में स्थित जगन्नाथ मंदिर में संरक्षित कर रखा गया है.
गणेश चतुर्थी के अवसर पर भारत वर्ष में हर जगह गणेश भगवान की पूजा अर्चना की जा रही है. यहां तक की रीवा स्थित राजघराना किला मंदिर में भी गणपति बप्पा की कुछ मूर्तियां ऐसी हैं, जिनकी कायदे से पूजा-अर्चना की जाती है. पर एरोटिक गणपति की पूजा नहीं की जाती है. उन्हें नहीं पूजे जाने की वजह है कि इन मूर्तियों को कलचुरी राजाओं ने मंदिर के बाहरी हिस्से पर भव्यता और धार्मिकता को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किया था. जिसकी उस समय भी पूजा-अर्चना नहीं की जाती थी. यही वजह है कि बाद में रीवा राज के शासकों ने महल में 18 मूर्तियों को संरक्षित कर रखवा दिया.