रीवा।आपने सुपारी पान के साथ खाने या भगवान को चढ़ाते हुए देखा होगा, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि, सुपारी से आकर्षक खिलौने भी बनाए जा सकते हैं. जी हां रीवा में ऐसा काम हो रहा है. जहां तीन पीढ़ियों से सुपारी से खिलौने और भगवान की प्रतिमाएं बनाई जा रही हैं. इन खिलौनों की मांग इतनी ज्यादा है कि, इन्हें लेने के लिए एडवांस में आर्डर देना पड़ता है. शहर में आने वाले राजनेताओं और अन्य सेलिब्रिटी को अधिकतर सुपारी की कलाकृतियां ही भेंट में दी जाती हैं. प्रसिद्धि इतनी कि, ये खिलौने देश सहित विदेशों तक पहुंच रहे हैं.
शहर में भगवान की पूजा में चढ़ने वाली सुपारी को खिलौनों में ढाला जा रहा है. ये काम जिले का कुंदेर परिवार लगभग तीन पीढ़ियों से कर रहा है. उनके लिए यह भले ही जीवन यापन का एक जरिया हो, लेकिन इससे रीवा की ख्याति जुड़ी हुई है. कुंदेर परिवार के बनाए खिलौने पूरे देश में पसंद किए जाते हैं. यही नहीं, अपनी कलाकृति के कारण सुपाड़ी से खिलौने बनाने वाले दुर्गेश कुंदेर के पिता स्व. राममिलन कुंदेर को राष्ट्रीय सम्मान मिल चुका है, जो दिल्ली में आयोजित एक राष्ट्रीय सम्मेलन में तात्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा द्वारा प्रदान किया गया था. वहीं 2019 में मध्यप्रदेश के कैलेंडर में रीवा जिले के सुपारी के खिलौने बनाने की कला को प्रदर्शित किया गया था.
कैसे हुई शुरुआत
रीवा में सुपारी के खिलौने बनाने की शुरुआत भी बड़ी रोचक है. बताया जाता है कि, कुंदेर परिवार रीवा रियासत में लकड़ी का काम करते थे. एक बार रीवा महाराजा गुलाब सिंह कहीं जा रहे थे, तभी उन्होंने लकड़ी के खराद का काम होते देखा. चूंकि महाराजा पान खाने के शौकीन थे, इसलिए उन्होंने अपने एक आदमी को भेजकर सुपारी छीलने के लिए कहा. इस पर कुंदेर परिवार उन्हें सुपारी छीलकर देने लगा. तभी कुंदेर परिवार के दिमाग में आया, क्यों ना सुपारी की कोई वस्तु बनाई जाए और तब से सुपारी के खिलौने बनाने का सिलसिला शुरू हुआ, जो अब तक चला आ रहा है. अब दुर्गेश कुंदेर अपने परिवार की परंपरा निभा रहे हैं. उन्होंने बताया कि, 1942 में उनके दादा भगवानदीन कुंदेर ने सुपारी का सिंदूरदान बनाकर महाराजा गुलाब सिंह को भेंट किया था. इसके पहले महाराजा के आदेश पर ही राज दरबार के लिए लच्छेदार सुपारी काटी जाती थी. महाराजा को सुपारी की कलाकृति से सुसज्जित वाकिंग स्टिक भी गिफ्ट की गई. जिस पर उनके दादा को 51 रुपए का इनाम दिया गया था.