रीवा। गुजरात और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों के कोविड सेंटर्स में हुई आगजनी की घटनाओं से सबक लेते हुए केंद्र और प्रदेश सरकार ने अस्पतालों में तमाम जरूरी कदम उठाने के निर्देश दिए हैं. बावजूद इसके रीवा के अधिकतर सरकारी अस्पतालों और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों व नर्सिंग होम में आगजनी की घटना से निपटने के लिए पुख्ता इंतजाम नहीं किए गए हैं. ईटीवी भारत ने जब सरकारी अस्पतालों का निरीक्षण किया, तो ज्यादातर अस्पतालों में आगजनी से निपटने के इंतजाम नहीं दिखे. चंद अस्पतालों में ही ये व्यवस्था दिखाई दी, कई अस्पतालों में लगे उपकरण धूल फांकते नजर आ रहे हैं.
विंध्य के सबसे बड़े अस्पताल कहे जाने वाले 800 बिस्तर वाले सजंय गांधी हॉस्पिटल की हालत तो बद से बदतर है. इस अस्पताल का निर्माण हुए लगभग 20 साल हो चुके हैं. इस अस्पताल में लगे फायर सेफ्टी सिस्टम धूल फांकते दिखाई दे रहे हैं, क्योकि अस्पताल प्रबंधन ने कभी इस और ध्यान ही नहीं दिया. अस्पताल प्रबंधन के कुछ स्थानों पर फायर सेफ्टी सिलेंडर तो लगवाए हैं, उनकी समय सीमा समाप्त चुकी है. पूरे अस्पताल में आगजनी की घटना से निपटने के लिए सिर्फ स्मोक डिटेक्टर यंत्र लगे हैं, जिससे सिर्फ अलार्म बजेगा और लोग अलर्ट हो पाएंगे, लेकिन आग लगने की स्थिति में उससे निपटने के लिए कोई फायर फाइटर तैनात नहीं किए गये हैं.
कोरोना काल में शासन की गाइड लाइन के अनुसार अस्पतालों में फायर सेफ्टी सिस्टम होना जरूरी है, ताकि आग लगने की स्थिति पर इससे काबू पाया जा सके. अस्पतालों में लगे फायर सेफ्टी सिस्टम का हर वर्ष मॉक ड्रिल कराने के निर्देश हैं. जिम्मेदारों की लापरवाही का खामियाजा अस्पताल में आकर इलाज कराने वाले मरीजों को भुगतना पड़ सकता है.
जब ईटीवी भारत ने कुशाभाऊ जिला अस्पताल की पड़ताल की, तो पूरे अस्पताल परिसर में सिर्फ एक ही फायर सेफ्टी सिलेंडर मिला. आगजनी जैसी बड़ी घटना से निपटने के लिए न तो यहां किसी वार्ड में फायर सेफ्टी सिलेंडर है और न ही आपात कालीन स्थित में बजाए जाने वाले अलार्म की कोई व्यवस्था. तीन मंजिला इमारत वाले जिला अस्पताल का ट्रामा सेंटर हो या बच्चा वार्ड या फिर कोई अन्य वार्ड हो, कहीं भी फायर सेफ्टी के पुख्ता इंतजाम नहीं हैं. जिले में तमाम ऐसे शासकीय अस्पताल सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र व नर्सिंग होम संचालित हैं, जो वर्षो से शासन की गाइडलाइन की अवहेलना करते हुए नियमों को ताक पर रख कर संचालित किए जा रहे हैं. इसके बाद भी जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा न तो कभी कोई कार्रवाई की गई और न ही अस्पतालों की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर कोई भी ठोस कदम उठाए गए.