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Mp Seat Scann Jaora: 14 बार हुए चुनाव, कांग्रेस 8 जीती.. मुस्लिम बाहुल्य सीट, फिर भी सबसे बड़ी हार हुई मुस्लिम प्रत्याशी की - Jaora Seat Scan Ratlam

Jaora Vidhan Sabha Seat: रतलाम की जावरा सीट सामान्य है और यहां से भाजपा दो बार से लीड ले रही है, लेकिन पिछली जीत को देखकर भाजपा इस बार तनाव में है. क्योंकि भाजपा महज तीन अंक से जीत पाई थी और इस बार भी वही सीन दोहराए जाने की तैयारी है. जावरा सीट पर क्या है कांग्रेस की तैयारी और कैसे बचाएगी भाजपा अपनी सीट, ईटीवी भारत कर रहा है सीट का टोटल स्केन-

Mp Seat Scann Jaora Ratlam
जावरा विधानसभा सीट रतलाम

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Published : Aug 15, 2023, 9:05 PM IST

Updated : Nov 14, 2023, 10:46 PM IST

रतलाम।मध्य प्रदेश की जावरा विधानसभा सीट 1957 में अस्तित्व में आई, जावरा (GENREL) विधानसभा सीट मध्य प्रदेश के रतलाम जिले की एक सीट है और ये रतलाम लोकसभा सीट का हिस्सा है, जो मालवा इलाके में आता है. इस विधानसभा में अब तक 14 बार के चुनाव में 6 बार बीजेपी ने तो वहीं 8 बार कांग्रेस ने जीत हासिल की. इस सीट पर फिलहाल भारतीय जनता पार्टी का दो बार से कब्जा है, लेकिन 2018 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी डॉ राजेंद्र पांड अपने विरोधी यानी कांग्रेस प्रत्याशी से महज 511 वोट के अंतर से ही जीत पाए थे. वर्ष 2013 के चुनाव में भी भाजपा के राजेंद्र पांडेय ही काबिज हुए थे, जबकि उसके पहले यह सीट कांग्रेस के महेंद्र सिंह कालूखेड़ा के पास थी, लेकिन अब महेंद्र सिंह कालूखेड़ा दुनिया में नहीं रहे और उनके भाई केके सिंह कालूखेड़ा पिछली बार इस सीट से चुनाव लड़े थे.

अब राजेंद्र पांडेय के सामने एक नई चुनौती और नया अवसर है, क्योंकि केके सिंह कालूखेड़ा सिंधिया समर्थक हैं और उनके साथ भाजपा में आ गए हैं. पूरी टीम भाजपा में शामिल हो चुकी है, ऐसे में राजेंद्र पांडेय के सामने अवसर यह है कि अब उनके सामने कांग्रेस का फिलहाल कोई बड़ा नेता नहीं है, लेकिन चुनौती यह है कि केके सिंह कालूखेड़ा अब उनकी पार्टी में है तो वे दावेदारी भी करेंगे और पिछला चुनाव बहुत कम अंतर से हारने के कारण उनकी दावेदार में दम भी दिख रहा है पार्टी को.

जावरा विधानसभा क्षेत्र की खासियत:यह रतलाम जिले का हिस्सा है, यहीं पर मुस्लिम समुदाय का एक बहुत प्रसिद्ध पवित्र स्थान स्थित है जिसका नाम "हुसैन टेकरी" है. यह रोजगार और पर्यटन दोनों के लिहाज से महत्वपूर्ण है, इसीलिए एक बार कांग्रेस ने मुस्लिम प्रत्याशी भी उतारा, लेकिन उसकी इतिहास में अब तक की सबसे बड़ी हार हुई. जबकि इस सीट में बड़ी संख्या में अल्पसंख्यक वोटर्स रहते हैं, हुसैन टेकरी के कारण बड़ी संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोग देश-विदेश से घूमने और दर्शन करने के लिए आते हैं. ऐसा भी कहा जाता है कि मक्का मदीना के बाद दूसरा स्थान हुसैन टेकरी का ही है, इसके अलावा क्षेत्र की जनता कृषि एवं व्यवसाय पर निर्भर है. रोजगार की दृष्टि से कोई बड़ा उद्योग नहीं है, हालांकि जिले की सबसे बड़ी मंडी जावरा में ही स्थित है.

जावरा विधानसभा सीट के मतदाता

जावरा विधानसभा क्षेत्र में जातीय समीकरण:यहां जातीय समीकरण की बात करें ताे किसी एक जाति का वर्चस्व नहीं है, बल्कि यहां हिंदुत्व वर्सेज ऑल है. यही कारण है कि जब कांग्रेस ने अल्पसंख्यक प्रत्याशी मैदान में उतारा तो वह बुरी तरह से हार गया, फिर भी जातीय गणित की बात करें तो यहां पाटीदार, गुर्जर, किरार, मुस्लिम, ब्राम्हण, दलित, आदिवासी बड़ी संख्या में निवास करते हैं, इनके बाद बनिया, मीणा, लोधी वोटर्स भी निवास करते हैं.

जावरा मतदाताओं की संख्या:जावरा विधानसभा में कुल वोटर्स की संख्या 2 लाख 27 हजार 727 है, इसमें पुरुष मतदाता 1 लाख 15 हजार 436, महिला वोटर 1 लाख 12 हजार 278 और थर्ड जेंटर मतदाता की संख्या 10 है.

जावरा का राजनीतिक इतिहास

जावरा विधानसभा क्षेत्र के स्थानीय मुद्दे:इस विधानसभा क्षेत्र का सबसे बड़ा स्थानीय मुद्दा रेलवे ओवरब्रिज है, यहां ओवरब्रिज की मांग लंबे समय से चली आ रही है. हालात यह है जब 20 साल पहले राजेंद्र पांडे भाजपा से विधायक बने थे तो इनका सबसे बड़ा वादा रेलवे ओवर ब्रिज ही था, लेकिन वह 2023 तक पूरा नहीं हो पाया. हाल यह है कि रेलवे ओवरब्रिज का काम तो शुरू हुआ, लेकिन बीते 5 साल में कई बार इसे रोक दिया गया. क्षेत्र में गंदे पानी की समस्या और खराब सड़कें बड़ा मुद्दा है, बारिश में जलभराव की स्थिति भारी भरकम निर्मित होती है.

जावरा का राजनीतिक इतिहास:1957 से अब तक भाजपा व कांग्रेस प्रत्याशियों में ही मुख्य मुकाबला रहा, लेकिन पिछली बार जिस तरह से चतुष्कोणीय संघर्ष हुआ था, उसने भाजपा की मुश्किलें बढ़ा दी थी. दरअसल 1957 में हुए पहले विधानसभा चुनाव से लेकर 2018 तक के इतिहास में जावरा सीट पर पहला मौका आया था, जब दोनों प्रमुख दलों से एक-एक कद्दावर नेता बागी के रूप में मैदान में थे. भाजपा के बागी श्याम बिहारी पटेल ने 23,672 वोट लिए थे, जो टोटल वोटिंग का 12.82 फीसदी था, जबकि कांग्रेस के बागी प्रत्याशी डॉ. हमीर सिंह राठौर ने 16593 यानी 8.78 परसेंट वोट लिए थे. इससे भाजपा का गणित भारी भरकम बिगड़ गया था, केके सिंह कालूखेड़ा ने भी तगड़ी टक्कर देते हुए 63992 वोट लिए और महज 511 वोट से राजेंद्र पांडे उर्फ रज्जू भैया चुनाव जीत सके. जबकि इन्हीं राजेंद्र पांडे ने वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में 89656 वोट हासिल कर अपने प्रतिद्वंदी को 29851 मतों के अंतर से हराया था, दूसरे स्थान पर रहे कांग्रेस के कदपा मो. युसुफ को 59805 ही मिले थे. तब का चुनाव पूरी तरह हिंदु-मुस्लिम के बीच हुआ था.

यहां कुछ और सीट स्कैन पढ़ें...

कालूखेड़ा परिवार की रही यह सीट, जिसे पांडे ने भाजपा का बनाया:विधान सभा चुनाव 2008 में कांग्रेस के उम्मीदवार महेंद्रसिंह कालूखेड़ा जीते और विधायक बने, उन्हें कुल 61309 वोट मिले, जबकि भाजपा के उम्मीदवार डॉ. राजेंद्र पांडे को कुल 58850 वोट मिले और वे कालूखेड़ा से 2459 वोटों से हार गए. वहीं वर्ष 2003 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार डॉ. राजेंद्र पांडे जीते थे, उन्हें कुल 54159 वोट मिले थे और कांग्रेस के उम्मीदवार महेंद्र सिंह कालूखेड़ा को 47452 वोट मिन पाए, वे वे 6707 वोटों से हार गए थे. वहीं 1998 में कांग्रेस के उम्मीदवार महेंद्र सिंह जीते और विधायक बने थे, उन्हें कुल 45345 वोट मिले, जबकि भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार डॉ. राजेंद्र पांडे को कुल 43659 वोट मिले और वे महज 1686 वोटों से हार गए.

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राजेंद्र पांडे पहली बार चुनाव लड़े थे, इसके पहले वर्ष 1993 में जावरा विधान सभा से भाजपा ने रघुनाथ सिंह आंजना को मैदान में उतारा था, लेकिन वे कांग्रेस के उम्मीदवार मोहिंदर मोहन सिंह कालूखेड़ा से 7458 वोट से हार गए थे. इस चुनाव में कालूखेड़ा को 45109 वोट और भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार पटेल रघुनाथ सिंह आंजना को 37651 वोट मिले थे, रघुनाथ सिंह को टिकट देने का मुख्य कारण था कि वे वर्ष 1990 के चुनाव में 40177 वोट लेकर विधायक बने थे और उन्होंने कांग्रेस के उम्मीदवार भरत सिंह जसवन्त सिंह को कुल 9571 वोटों से हराया था. भरत सिंह वर्ष 1985 में कांग्रेस के टिकट से चुनाव जीत चुके थे, उन्होंने 35437 वोट लेकर तब भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार प्रकाश मेहरा को 11021 वोटों से हराया था. इसके पहले वर्ष 1980 में भी भरत सिंह ने भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार कांतिलाल खारीवाल को 3567 वोटों से चुनाव हराया था, इस चुनाव में भरत सिंह को कुल 23984 वोट और खारीवाल को कुल 20417 वोट मिले थे. 1977 में जावरा विधान सभा से जनता पार्टी के उम्मीदवार कोमल सिंह राठौड़ जीते थे और उन्हें कुल 21945 वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस के उम्मीदवार रतन सिंह सोलंकी को कुल 14683 वोट मिले और वे 7262 वोटों से चुनाव हार गए. इसके पहले वर्ष 1972 में कांग्रेस के उम्मीदवार बंकटेलाल तोदी चुनाव जीते थे और उन्होंने भारतीय जनसंघ प्रत्याशी लक्ष्मीनारायण पाटीदार को 5375 वोटों से हराया था, इस चुनाव में बंकेटलाल को 25162 वोट और पाटीदार को 19787 वोट मिले थे.

Last Updated : Nov 14, 2023, 10:46 PM IST

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