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बेरंग हैं यहां के हर घर की दीवारें, इस वजह से सदियों से नहीं हुई रंगाई-पुताई - काला कपड़ा बैन

भले ही दुनिया रंग-बिरंगी हो गयी है, पर रतलाम जिले के कछालिया गांव का नजारा आज भी बेरंग दिखता है, वहां मकान चाहे जितने अच्छे बने हों, लेकिन रंग-रोगन किसी पर नहीं होता, इसके पीछे ग्रामीण सदियों पुरानी परंपरा का निर्वाहन बताते हैं. इतना ही नहीं इस गांव की अपनी अलग परंपरा है, जो इसे और गांवों से अलग करती है.

कछालिया गांव

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Published : Jun 5, 2019, 3:47 PM IST

Updated : Jun 5, 2019, 4:32 PM IST

रतलाम। भले ही दुनिया तकनीकी और आधुनिक हो चुकी है, छोटी-छोटी दुकानों पर बड़े-बड़े मॉलों ने कब्जा कर लिया है, कच्चे मकानों को आधुनिक सुविधायुक्त मकानों ने रिप्लेस कर दिया है, लेकिन मध्यप्रदेश के रतलाम जिले का एक ऐसा गांव है, जहां इमारतें तो बनी हैं, पर उनकी दीवारें बेरंग नजर आती हैं, पूरे गांव में एक भी मकान की दीवार पर रंग-रोगन नहीं दिखता. आलोट तहसील के कछालिया गांव के लोग इस अनोखी परंपरा को सदियों से निभाते आ रहे हैं. इसी गांव में बिराजे कालेश्वर भैरव के सम्मान में ग्रामीण ऐसा करते आ रहे हैं. यही वजह है कि सिर्फ मंदिर के अलावा यहां किसी घर की रंगाई-पुताई नहीं होती है.

कछालिया गांव

कालेश्वर भैरव की नगरी के नाम से पहचाने जाने वाले कछालिया गांव की इस परंपरा की चर्चा पड़ोसी जिलों में भी होती है. गांव में अब बड़ी तादात में पक्के मकान भी बन गये हैं, पर सब के सब बेरंग नजर आते हैं. यहां के लोग काले कपड़े और काले जूते नहीं पहनते हैं. बारात हो या किसी की शव यात्रा, कभी भी कालेश्वर भैरव के सामने से नहीं गुजरता.

ग्रामीणों की कालेश्वर भैरव में गहरी आस्था है. यहां के लोग हर काम की शुरूआत कालेश्वर मंदिर से ही करते हैं और अपने घरों पर कालेश्वर कृपा या कालेश्वर दरबार लिखवाते हैं. बहरहाल सदियों से चली आ रही इस अनोखी परम्परा के चर्चे सुनकर बाहरी लोग भी इस गांव को देखने पहुंचते है और कालेश्वर भैरव के दर्शन कर मन्नते मांगते हैं.

भले ही दुनिया कितनी आधुनिक क्यों न हो जाये, पर अंधविश्वास पर विश्वास करने वालों को विश्वास दिलाना आसान नहीं है. यही वजह है कि आज भी कुछ लोग 18वीं सदी की सोच से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं.

Last Updated : Jun 5, 2019, 4:32 PM IST

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