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बुक स्टॉल और पेपर बेचने वालों का धंधा चौपट, व्यवसाय बदलने को मजबूर लोग - book stall and paper shop business

लॉकडाउन ने बुक स्टॉल संचालकों की कमर ही तोड़कर रख दी है. बुक स्टॉल संचालक नरेंद्र जैन ने कहा कि लॉकडाउन में ट्रेनें ही बंद हो गई थी. स्टॉल पर यात्री कैसे किताबें खरीदेते.रतलाम रेलवे स्टेशन पर बुक स्टॉल संचालक और पेपर हॉकर्स ही नहीं बल्कि स्टेशन पर छोटा-मोटा स्टॉल लगाने वाले सभी वेंडर रोजगार के संकट से जूझ रहे हैं. ऐसे में इन वेंडरों को जल्दी ही ट्रेनों की आवाजाही बढ़ने और रेलवे से मदद मिलने की भी उम्मीद है.

Book stall and paper shop business at Ratlam railway station
बुक स्टॉल और पेपर बेचने वालों का धंधा चौप

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Published : Sep 21, 2020, 4:48 PM IST

Updated : Sep 21, 2020, 6:59 PM IST

रतलाम। इस साल के मार्च के आखिरी सप्ताह में देशभर में कोरोना संक्रमण की रोकथाम के लिए लॉकडाउन लगाया गया था. जिसकी यादें सभी के दिलों दिमाग में आज भी ताजा होगी. लॉकडाउन लगते ही देशभर में आर्थिक गतिविधियों के साथ-साथ ट्रेन पर अचानक से ब्रेक लग गए थे. इससे रेलवे स्टेशन पर लगने वाले बुक स्टॉल संचालक और पेपर हॉकर्स और छोटे मोटे हॉकर्स भी अछूते नहीं है. लॉकडाउन ने बुक स्टॉल संचालकों की कमर ही तोड़कर रख दी है. बुक स्टॉल संचालक नरेंद्र जैन ने कहा कि लॉकडाउन में ट्रेनें ही बंद हो गई थी स्टॉल पर यात्री कैसे किताबें खरीदेते. बुक स्टॉल संचालक नरेंद्र जैन ने बताया कि लॉकडाउन की वजह से वेंडर, स्टॉल वेंडर सभी का धंधा चौपट हो गया है, जिसकी वजह से अब सभी नये सिरे से नया धंधा खोलने पर विचार कर रहे हैं. लॉकडाउन की वजह से व्यापारी ही खत्म हो गया है.

बुक स्टॉल और पेपर बेचने वालों का धंधा चौपट

पेपर वेंडर संजय बोरासी की भी कहानी औरों से अलग नहीं है. संजय बताते हैं कि अभी काम धंधे की हालात बहुत ही खराब चल रही है. ट्रेनें रतलाम के रेलवे स्टेशन पर आ ही नहीं रही हैं. जिसकी वजह से रेलवे स्टेशन पर काम करने वाले लोग मायूस हैं. वेंडर संजय ने कहा कि बड़ी मुश्किल से दाल रोटी चल पा रही है. लॉकडाउन की वजह से धंधा मंदा हो गया है.

रतलाम रेलवे स्टेशन

वहीं बुक स्टॉल संचालक मीना शर्मा ने बताया कि लॉकडाउन हटने के बाद उनके पास एक्का दुक्का ही ग्राहक आए हैं. उन्होंने बताया कि स्टेशन पर गाड़ी आती तो हैं, लेकिन ट्रेन के अंदर से कोई किताबें खरीदने नहीं आता है. मीना बताती हैं कि वे ट्रेन रुकते ही यात्रियों को आवाज भी लगाती हैं, लेकिन कोई भी यात्री प्लेटफॉर्म पर आता नहीं है. वो हर दिन दुकान इस उम्मीद से खोलती हैं कि शायद उनकी दुकान पर कुछ यात्री किताब खरीदेंगे. लेकिन वो भी बेबस हैं. मीना शर्मा ने अपनी पीड़ा सुनाते हुए कहा कि आमदनी नहीं होने के कारण उन्होंने दुकान का पिछले 6 महीने से बिजली का बिल नहीं भरा है.

बुक स्टॉल संचालक मीना शर्मा से जब पूछा गया कि उन्हें रेलवे की ओर से कोई मदद मिली है तो उन्होंने कहा कि उन्हें रेलवे की ओर से एक रुपये की भी सहायता नहीं मिली है. उलटे उन्होंने रेलवे को दुकान का पिछले 6 महीने से किराया नहीं भरा है. बहरहाल रतलाम रेलवे स्टेशन पर बुक स्टॉल संचालक और पेपर हॉकर्स ही नहीं बल्कि स्टेशन पर छोटा-मोटा स्टॉल लगाने वाले सभी वेंडर रोजगार के संकट से जूझ रहे हैं. ऐसे में इन वेंडरों को जल्दी ही ट्रेनों की आवाजाही बढ़ने और रेलवे से मदद मिलने की भी उम्मीद है.

कोरोना की वजह से बंद बुक स्टॉल

व्यवसाय बदलने को मजबूर हैं हॉकर

लॉकडाउन खुलने के बाद रेलवे की पटरियों पर ट्रेनें तो लौट आई हैं लेकिन रेलवे स्टेशन से जुड़े व्यवसाय और छोटे-मोटे वेंडरों का रोजगार आज भी पटरी पर नहीं लौट पाया है. रेलवे स्टेशन पर सीमित संख्या में यात्री गाड़ियों में कम संख्या में यात्री सफर कर रहे हैं. ऐसे में रेलवे स्टेशन पर पेपर और बुक स्टॉल लगाकर अपना गुजारा करने वाले बुक और पेपर सेलर धंधा चौपट होने के बाद आर्थिक तंगी से गुजर रहे हैं. रतलाम रेलवे स्टेशन पर रोज सुबह पेपर बेचने वाले 2 दर्जन से अधिक हॉकर अब अपना व्यवसाय बदलने को मजबूर हो गए हैं.

स्टेशन पर बुक स्टॉल

बुक स्टॉल संचालक बेच रहे हैं सैनिटाइजर, मास्क

रेलवे स्टेशन पर बुक स्टॉल लगाकर पेपर, मैगजीन और किताबें बेचने वाले स्टोर संचालक भी या तो स्टाल बंद कर चुके हैं या स्टॉल पर सैनिटाइजर, मास्क जैसी छोटी मोटी चीजें बेच कर अपना गुजारा कर रहे हैं. वर्तमान में रतलाम से गुजरने वाली करीब 9 जोड़ी ट्रेनों का स्टॉपेज रतलाम रेलवे स्टेशन पर जरूर दिया गया है लेकिन सीमित संख्या में ही यात्री यहां पहुंच रहे हैं. जिससे रेलवे स्टेशन से जुड़ा सभी प्रकार के व्यवसाय प्रभावित हो रहे हैं.

Last Updated : Sep 21, 2020, 6:59 PM IST

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