राजगढ़। भारत को परंपराओं और संस्कृति का देश कहा जाता है. यहां कदम कदम पर बोली और रहन सहन बदल जाती है. हमारे देश में एक ही त्योहार कई तरह से मनाया जाता है. नवरात्रि के बाद दसवें दिन विजयादशमी का त्योहार मनाया जाता है. इस दिन बुराई पर अच्छाई की जीत के लिए रावण के पुतले को जलाया जाता है और राम नाम के जयकारे लगाए जाते हैं. लेकिन राजगढ़ में एक ऐसा गांव है, जहां रावण का पुतला दहन करने की बजाए रावण को भगवान के रूप में पूजा जाता है.
जिले के भाटखेड़ी गांव में लगभग डेढ़ सौ साल पुरानी रावण और कुंभकरण की मूर्तियां मौजूद हैं. जिनकी पूजा गांव के लोग अपने इष्ट देव के रूप में करते हैं. यहां पर मान्यता है कि इनकी पूजा करने से गांव पर कभी भी विपत्ति नहीं आती है और हमेशा गांव में खुशहाली बनी रहती है.
दशहरे पर रावण और कुंभकर्ण का नहीं होता दहन
पूरे देश में दशहरे के दिन रावण के साथ कुंभकर्ण और मेघनाथ का दहन किया जाता है, लेकिन भाटखेड़ी गांव में रावण और कुंभकरण की पूजा की जाती है. भाटखेड़ी गांव के नेशनल हाईवे आगरा मुंबई के नजदीक एक खेत में रावण और कुंभकरण की मूर्तियां स्थापित हैं. और यहां के लोग बताते हैं कि यह मूर्तियां लगभग डेढ़ सौ साल से भी अधिक पुरानी हैं, और उनके पूर्वजों के द्वारा यह स्थापित की गई थी. रहवासी जगदीश यादव बताते हैं कि जब भी गांव पर कोई मुसीबत आती थी, तो वह अपनी मुसीबत लेकर देवता रावण के समक्ष आते थे और उनकी मुसीबत का हल निकल आता था.