MP Seat Scan Rajgarh: 14 विधानसभा चुनाव में से 6 कांग्रेस, 6 बीजेपी जीती, दो बार निर्दलीय के खाते में गई, यहां की जनता करती है प्रयोग - political equation of Rajgarh vidhan sabha seat
Rajgarh Vidhan Sabha Seat: एमपी की राजगढ़ सीट कई मायनों में महत्वपूर्ण मानी जाती है, यहां के मतदाताओं का नेचर ऐसा है कि यह किसी एक पार्टी को टिकने नहीं देते हैं, हमेशा बदलाव करते हैं. यह इलाका पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के प्रभाव वाला माना जाता है और अभी भी कांग्रेस के पास है, लेकिन बीच बीच में बीजेपी जीतती रही है. आइए जानते हैं इस विधानसभा के सियासी मायने-
राजगढ़। राजगढ़ सीट पर 1957 से लेकर अब तक कुल 14 चुनाव हुए हैं, पहले दो चुनाव में यानी 1957 और 1962 के इलेक्शन में जनता ने निर्दलीय उम्मीदवार को जिताया था. वहीं 1967 और 1972 के चुनाव में कांग्रेस पर भरोसा जताया, 1977 में हिंदुत्व विचार की जनता पार्टी जीती तो 1980 में बीजेपी बनी और चुनाव जीत गई. इसके बाद एक साल ये तो दूसरी साल वो पार्टी चला आ रहा है, 1985 में कांग्रेस, 1990 और 1993 में बीजेपी, 1998 में कांग्रेस, 2003 में बीजेपी, 2008 में कांगेस, 2013 में बीजेपी और 2018 में कांग्रेस चुनाव जीती. यह आंकड़े इसलिए बताए कि 2023 में यहां मुकाबला कड़ा होने वाला है, यहां न जाति चलती है और न धर्म, यहां जनता हर पांच साल में बदलाव की बात करती है. इस बार कांग्रेस की तरफ से सिटिंग एमएलए बापू सिंह तंवर ताल ठोक रहे हैं, तो बीजेपी की तरफ से अंशुल तिवारी ने दावा किया है. दिग्विजय सिंह का यहा होल्ड है और वे किसी ठाकुर नेता को यहां से उतारने की तैयारी में है, बीजेपी इस भरोसे में है कि जनता फिर प्रयोग करेगी और यह सीट उनकी झोली में डाल देगी.
जातीय समीकरण और मतदाता:2018 के इलेक्शन रिकार्ड के अनुसार इस सीट पर कुल वोटर 203680 हैं और इनमें 98009 महिला व 105658 पुरुष मतदाता हैं. अब जातीय गणित की बात करें तो तंवर, यादव, सोंधिया, दांगी का लगभग बराबर रेशियों है, इसके बाद लोधी, गुर्जर और मीणा जाति के लोग हैं. वहीं शहरी क्षेत्र में ब्राम्हण और बनियों का बाहुल्य है, एससी-एसटी भी खासी संख्या में है. बेरोजगारी यहां का मूल मुद्दा है, इसके बाद भी यहां की जनता हर पांच साल में नया आदमी को विधायक बना देती है. इस ट्रेंड को तोड़ने के लिए इस बार कांग्रेस ने जातीय समीकरण बनाया है.
राजगढ़ विधानसभा सीट के मतदाता
सांस्कृतिक व पर्यटन की दृष्टि से राजगढ़ विधानसभा:इस सीट में पर्यटन की दृष्टि से बहुत कुछ नहीं है, बस धार्मिक पर्यटन के रूप में जालपा माता का मंदिर है. इसी मंदिर के कारण दूर दराज से लोग आते हैं, इसी मंदिर को फोकस में रखकर यात्राएं व अन्य आयोजन होते हैं. हाल ही में यहां पंडित धीरेंद्र शास्त्री की भी कथा कराई गई है.
राजगढ़ विधानसभा का राजनीतिक इतिहास:वर्ष 1957 में पहली बार यह सीट बनी, तब 59303 वोटर्स थे और इनमें से 16827 ने ही वोटिंग की थी. पहली बार चुनाव में कांग्रेस ने अपना चेहरा बैजनाथ को बनाया था, जबकि सामने पीएसपी के रामकुमार थे. कमाल की बात यह रही कि तमाम कोशिशों के बाद भी पहली बार पीएसपी के प्रत्याशी ने कांग्रेस के बैजनाथ से 3158 वोटों से चुनाव हरा दिया था. वर्ष 1962 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बैैजनाथ की जगह ब्राम्हण वर्ग के बड़े नेता रामप्रताप उपाध्याय को टिकट दिया, जबकि सामने थे निर्दलीय प्रत्याशी शिवप्रसाद सत्येंद्र खुजनेरी.
राजगढ़ विधानसभा सीट के सियासी समीकरण
कमाल की बात यह है कि इस बार भी कांग्रेस को मात मिली और निर्दलीय प्रत्याशी खुजनेरी ने कांग्रेस के रामप्रताप उपाध्याय को 987 वोटों के मामूली अंतर से हरा दिया, आखिरकार 1967 के इलेक्शन में कांग्रेस की हार का सिलसिला थमा और पहले चुनाव में प्रत्याशी बनाए गए बिजेसिंह को इस बार टिकट दिया तो उन्होंने भारतीय जनसंघ के जी. विजय को 2159 वोटों से मात दी, वर्ष 1972 के विधानसभा इलेक्शन में कांग्रेस ने बैजनाथ की जगह गुलाब सिंह काे टिकट दिया और इस बार भी कांग्रेस जीती. कांग्रेस के गुलाब सिंह ने यह चुनाव 2127 वोटों से जीता, जबकि दूसरे नंबर पर निर्दलीय प्रत्याशी विजय सिंह रहे.
जनता ने शुरू कर दिया प्रयोग और बदलाव:राजगढ़ विधानसभा सीट पर पांचवा चुनाव यानी वर्ष 1977 में बदलाव शुरू हुआ, इस साल विधायक बने जनता पार्टी के जमनालाल भंवरलाल. जबकि दूसरे नंबर पर निर्दलीय प्रत्याशी गुलाबचंद रहे, जमनालाल ने यह चुनाव 14762 वोट से जीता. वर्ष 1980 के इलेक्शन में राजगढ़ विधान सभा क्षेत्र से भाजपा ने जनता पार्टी से जीतकर आए गुप्ता जमनालाल को उम्मीदवार बनाया और उनका फैसला सही सिद्ध हुआ. जमनालाल चुनाव जीत गए और उन्होंने कांग्रेस (आई) के पहली बार उम्मीदवार बने जमील अहमद खान कुल को 3474 वोटों से हराया, लेकिन जनता ने 1985 में फिर से कांग्रेस को राजगढ़ विधान सभा क्षेत्र से जिता दिया. इस बार कांग्रेस ने गुलाबसिंह सुस्तानी को उम्मीदवार बनाया, जबकि बीजेपी ने नारायण सिंह पंवार को, कांग्रेस के सुस्तानी ने यह चुनाव भाजपा के उम्मीदवार नारायण सिंह पंवार 9261 वोटों के अंतर से हराया.
जनता ने 1990 में फिर से राजगढ़ विधान सभा सीट पर बदलाव कर दिया, इस बार भाजपा ने पंवार की जगह रघुनंदन शर्मा को उम्मीदवार बनाया. शर्मा ने कांग्रेस के उम्मीदवार विजय सिंह को 18705 वोटों के बड़े अंतर से हराया, 1993 के विधानसभा इलेक्शन में बीजेपी ने दूसरी बार रघुनंदन शर्मा पर भरोसा जताया और इस बार भी बीजेपी यह सीट जीत गई. भाजपा के उम्मीदवार रघुनंदन शर्मा ने इस बार कांग्रेस के उम्मीदवार गुलाबसिंह सुस्तानी को महज 274 वोटों से हराया, यह कम अंतर 1998 में और कम हो गया. इस बार कांग्रेस ने इस सीट से प्रताप सिंह मंडलोई को उम्मीदवार बनाया और वे सही साबित हुए, मंडलोई ने भाजपा के उम्मीदवार केदार काका को 10673 वोटों के बड़े अंतर से हराया. अब यहां की जनता प्रयोग करने लगी थी.
2003 के विधानसभा चुनाव में जनता ने फिर से बीजेपी को जिता दिया, पहली बार बीजेपी उम्मीदवार बने पंडित हरि चरण तिवारी जीते और कांग्रेस के उम्मीदवार गुलाब सिंह सुस्तानी को 17821 वोटों से हराया. अगले चुनाव यानी 2008 के एमपी इलेक्शन में फिर से कांग्रेस जीत गई, पहली बार कांग्रेस ने हेमराज कल्पोनी को उम्मीदवार बनाया और कल्पोनी ने भाजपा के सिटिंग एमएलए पंडित हरिचरण तिवारी को कुल 16529 वोटों से मात दी. ऐसे में बीजेपी ने 2013 के इलेक्शन में फिर से उम्मीदवार बदला और अमरसिंह यादव को टिकट दिया, कांग्रेस ने भी उम्मीदवार बदला और शिवसिंह बामलाबे को टिकट दिया. बीजेपी का दांव सही बैठा और उनके उम्मीदवार यादव ने कांग्रेस के शिव सिंह को 51211 वोटों से करारी शिकस्त दी, 2018 में फिर से कांग्रेस ने सीट छीन ली. इस बार कांग्रेस ने बापूसिंह तंवर को टिकट दिया, जबकि बीजेपी ने अमर सिंह यादव काे रिपीट किया. जनता ने कांग्रेस के उम्मीदवार पर भरोसा जताया, कांग्रेस के तंवर बीजेपी के यादव से 31183 वोटों से जीत गए.
राजगढ़ विधानसभा सीट का 2018 का रिजल्ट
राजगढ़ सीट का बदलता रहा नंबर:एमपी के राजगढ़ की सीट का वर्तमान नंबर 162 नंबर है, लेकिन अब तक 6 बार इस सीट का नंबर बदल गया है. पहली बार 1957 में इस सीट को 180 विधानसभा क्रमांक मिला था, इसके बाद वर्ष 1962 में राजगढ़ का विधानसभा क्रमांक बदल गया और इसे नया नंबर मिला 228 मिला. अगले चुनाव यानी 1967 में फिर से राजगढ़ का विधानसभा क्रमांक नंबर बदलकर 236 कर दिया गया, इसके बाद दस साल बाद फिर से 1977 में फिर से सीट नंबर बदलकर 254 कर दिया गया. अगला परिसीमन वर्ष 2003 में हुआ और इस सीट को नया नंबर 164 मिला, लेकिन अगले ही चुनाव यानी वर्ष 2008 में इसका सीट नंबर फिर से बदला और यह 164 से 162 हो गई, तब से यही नंबर चल रहा है.