राजगढ़।न बेरोजगारी, न पानी, न बिजली और न ही दूसरी किसी समस्या को लेकर यहां बवाल होता है. यहां झगड़ा है तो आम और खास के बीच. खिलचीपुर विधानसभा से अभी कांग्रेस के प्रियव्रत सिंह विधायक हैं, जो पहले भी दो बार विधायक रह चुके हैं और तीसरी बार विधायक बने हैं. वे कांग्रेस की 15 महीने की सरकार में मंत्री भी रहे हैं. इस बार भी उनका ही नाम सबसे ऊपर है. वे दिग्विजय सिंह के साथ जयवर्धन के भी करीब हैं. वहीं दूसरी तरफ बीजेपी ने इस सीट से पूर्व विधायक हजारीलाल दांगी को तीसरी बार मैदान में उतार दिया है. इसके पहले वे एक बार विधायक रहे हैं और एक बार निर्दलीय मैदान में रहकर दूसरे नंबर पर आ चुके हैं.
खिलचीपुर सीट की खासियत:अब बात करते हैं कि सीट की तो यह सीट किसान बाहुल्य है और राजस्थान से सटी हुई है. यहां की संस्कृति में राजस्थानी झलक साफ देखी जा सकती है. यही वजह है कि यहां के मतदाता मुद्दों से अधिक राजघराने या आम आदमी को अधिक तवज्जो देते हैं. राजस्थान की तरह लगभग हर पांच साल में यहां का सीन बदल जाता है. पर्यटन और राेजगार की दृष्टि से यह क्षेत्र बहुत अधिक पिछड़ा हुआ है. 2018 में यहां कुल 56 फीसदी वोट पड़े थे और 29756 वोट के मार्जिन से जीत और हार तय हुई थी. यह सीट राजगढ़ लोकसभा का हिस्सा है और यहां बीजेपी के रोडमल नागर सांसद हैं, लेकिन इसके बाद भी कांग्रेस का पलड़ा भारी दिखाई देता है.
खिलचीपुर सीट का इतिहास: खिलचीपुर सीट का इतिहास: 1962 में जब पहली बार खिलचीपुर विधानसभा सीट बनी तो इसे 229 नंबर मिला. पहली बार में कांग्रेस की तरफ से प्रभुदयाल चौबे को टिकट दिया गया और उनके सामने चार निर्दलीय प्रत्याशी थे. जब परिणाम आए तो चार में से निर्दलीय प्रत्याशी हर्ष सिंह पवार विजयी रहे. उन्होंने 252 वोट से कांग्रेस प्रत्याशी को मात दी. वर्ष 1967 में इस सीट का नंबर बदल गया और इसे 237 नंबर मिला. इस बार कुल 11 प्रत्याशी मैदान में थे. इस बार भी कांग्रेस ने प्रभुदयाल चौबे को प्रत्याशी बनाया, जबकि उनके सामने भारतीय जनसंघ पार्टी के श्रीवल्लभ मैदान में थे, लेकिन इस बार कांग्रेस के प्रत्याशी प्रभुदयाल चौबे ने जनसंघ के उम्मीदवार को 6965 वोट से हरा दिया.
साल 1972 से 1985 तक कभी कांग्रेस तो कभी बीजेपी जीती: 1972 के खिलचीपुर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार प्रभु दयाल चौबे को और जनसंघ ने नारायण सिंह पवार को प्रत्याशी बनाया. इस चुनाव में प्रभुदयाल चौबे ने पवार को 3761 वोटों से हरा दिया, लेकिन वर्ष 1977 के विधानसभा चुनाव में जनता पार्टी की तरफ से उम्मीदवार बनाए गए नारायण सिंह पवार ने यह सीट कांग्रेस से छीन ली और उन्होंने कांग्रेस के उम्मीदवार कन्हैयालाल को 21151 वोटों से बड़ी मात दी. 1980 में खिलचीपुर विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने फिर से नारायण सिंह पवार को तो कांग्रेस ने भी दोबारा कन्हैयालाल खुबन सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया. इस बार कांग्रेस के उम्मीदवार कन्हैयालाल खुबनसिंग जीते और उन्होंने बीजेपी के नारायण सिंह पवार को 8732 वोटों से हरा दिया, लेकिन वर्ष 1985 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने फिर से सीट छीन ली. इस बार कांग्रेस उम्मीदवार कन्हैयालाल दांगी जीते और उन्होंने भारतीय जनता पार्टी की तरफ से पहली बार उम्मीदवार बनाए गए पुरीलाल गुर्जर को 1812 वोटों से हराया.