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MP Seat Scan Khilchipur: खिलचीपुर सीट पर हुए 12 विधानसभा चुनाव, 9 बार कांग्रेस तो 3 बार जीती BJP, जानिए सियासी समीकरण

एमपी की 163 नंबर सीट और राजगढ़ जिले की एक महत्वपूर्ण सीट खिलचीपुर का इतिहास भी बराबरी वाला है. यह सीट परमानेंट किसी एक की नहीं रही, लेकिन झुकाव कांग्रेस की ओर दिखाई देता है. इसका कारण भी है कि यहां दिग्विजय सिंह का वर्चस्व है और उनकी रियासत का असर साफ देखा जा सकता है. फिर भी बीजेपी को यह कम आंकना गलत होगा. बीजेपी ने भी 13 में से 3 बार सेंधमारी की है, जबकि एक बार निर्दलीय ने जीत दर्ज की है. ईटीवी भारत ने जब इस विधानसभा सीट का स्कैन किया तो कई चौंकाने वाले तथ्य आए.

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Sep 27, 2023, 3:54 PM IST

Updated : Sep 27, 2023, 4:52 PM IST

MP Seat Scan Khilchipur
एमपी सीट स्कैन खिलचीपुर

राजगढ़।न बेरोजगारी, न पानी, न बिजली और न ही दूसरी किसी समस्या को लेकर यहां बवाल होता है. यहां झगड़ा है तो आम और खास के बीच. खिलचीपुर विधानसभा से अभी कांग्रेस के प्रियव्रत सिंह विधायक हैं, जो पहले भी दो बार विधायक रह चुके हैं और तीसरी बार विधायक बने हैं. वे कांग्रेस की 15 महीने की सरकार में मंत्री भी रहे हैं. इस बार भी उनका ही नाम सबसे ऊपर है. वे दिग्विजय सिंह के साथ जयवर्धन के भी करीब हैं. वहीं दूसरी तरफ बीजेपी ने इस सीट से पूर्व विधायक हजारीलाल दांगी को तीसरी बार मैदान में उतार दिया है. इसके पहले वे एक बार विधायक रहे हैं और एक बार निर्दलीय मैदान में रहकर दूसरे नंबर पर आ चुके हैं.

खिलचीपुर सीट की खासियत:अब बात करते हैं कि सीट की तो यह सीट किसान बाहुल्य है और राजस्थान से सटी हुई है. यहां की संस्कृति में राजस्थानी झलक साफ देखी जा सकती है. यही वजह है कि यहां के मतदाता मुद्दों से अधिक राजघराने या आम आदमी को अधिक तवज्जो देते हैं. राजस्थान की तरह लगभग हर पांच साल में यहां का सीन बदल जाता है. पर्यटन और राेजगार की दृष्टि से यह क्षेत्र बहुत अधिक पिछड़ा हुआ है. 2018 में यहां कुल 56 फीसदी वोट पड़े थे और 29756 वोट के मार्जिन से जीत और हार तय हुई थी. यह सीट राजगढ़ लोकसभा का हिस्सा है और यहां बीजेपी के रोडमल नागर सांसद हैं, लेकिन इसके बाद भी कांग्रेस का पलड़ा भारी दिखाई देता है.

खिलचीपुर सीट के मतदाता

खिलचीपुर सीट का इतिहास: खिलचीपुर सीट का इतिहास: 1962 में जब पहली बार खिलचीपुर विधानसभा सीट बनी तो इसे 229 नंबर मिला. पहली बार में कांग्रेस की तरफ से प्रभुदयाल चौबे को टिकट दिया गया और उनके सामने चार निर्दलीय प्रत्याशी थे. जब परिणाम आए तो चार में से निर्दलीय प्रत्याशी हर्ष सिंह पवार विजयी रहे. उन्होंने 252 वोट से कांग्रेस प्रत्याशी को मात दी. वर्ष 1967 में इस सीट का नंबर बदल गया और इसे 237 नंबर मिला. इस बार कुल 11 प्रत्याशी मैदान में थे. इस बार भी कांग्रेस ने प्रभुदयाल चौबे को प्रत्याशी बनाया, जबकि उनके सामने भारतीय जनसंघ पार्टी के श्रीवल्लभ मैदान में थे, लेकिन इस बार कांग्रेस के प्रत्याशी प्रभुदयाल चौबे ने जनसंघ के उम्मीदवार को 6965 वोट से हरा दिया.

साल 1972 से 1985 तक कभी कांग्रेस तो कभी बीजेपी जीती: 1972 के खिलचीपुर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार प्रभु दयाल चौबे को और जनसंघ ने नारायण सिंह पवार को प्रत्याशी बनाया. इस चुनाव में प्रभुदयाल चौबे ने पवार को 3761 वोटों से हरा दिया, लेकिन वर्ष 1977 के विधानसभा चुनाव में जनता पार्टी की तरफ से उम्मीदवार बनाए गए नारायण सिंह पवार ने यह सीट कांग्रेस से छीन ली और उन्होंने कांग्रेस के उम्मीदवार कन्हैयालाल को 21151 वोटों से बड़ी मात दी. 1980 में खिलचीपुर विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने फिर से नारायण सिंह पवार को तो कांग्रेस ने भी दोबारा कन्हैयालाल खुबन सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया. इस बार कांग्रेस के उम्मीदवार कन्हैयालाल खुबनसिंग जीते और उन्होंने बीजेपी के नारायण सिंह पवार को 8732 वोटों से हरा दिया, लेकिन वर्ष 1985 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने फिर से सीट छीन ली. इस बार कांग्रेस उम्मीदवार कन्हैयालाल दांगी जीते और उन्होंने भारतीय जनता पार्टी की तरफ से पहली बार उम्मीदवार बनाए गए पुरीलाल गुर्जर को 1812 वोटों से हराया.

खिलचीपुर सीट का रिपोर्ट कार्ड

खिलचीपुर सीट पर सियासी समीकरण: 1990 में इस विधानसभा से बीजेपी ने फिर से पवार समाज को टिकट दिया और पूअर सिंह पवार को उम्मीदवार बनाया. वे जीते भी और कमाल की बात यह है कि दूसरे नंबर पर कांग्रेस की बजाय निर्दलीय प्रत्याशी हजारी लाल रहे. हालांकि 7720 वोटों से हार गए. 1993 में इस सीट से कांग्रेस ने एक बार फिर दांगी समाज पर भरोसा जताया और रामप्रसाद दांगी को उम्मीदवार बनाया. जबकि बीजेपी ने कमल सिंह को टिकट दिया. कांग्रेस का दांव सही बैठा और उनके प्रत्याशी ने बीजेपी को 10469 वोटों से हरा दिया. यह इतिहास कांग्रेस ने 1998 में फिर दोहराया. इस बार भी कांग्रेस ने हजारी लाल दांगी को प्रत्याशी बनाया और वे जीते. इस बार बीजेपी तीसरे नंबर पर चली गई. दूसरे नंबर पर कांग्रेस के पूर्व नेता व निर्दलीय चुनाव लड़ रहे कन्हैयालाल दांगी रहे. वे कांग्रेस से 10128 वोटों से हार गए.

कुछ और सीट स्कैन यहां पढ़ें...

साल 2018 का रिजल्ट

साल 2018 में कांग्रेस ने छीनी जीत:2003 में कांग्रेस ने राजपरिवार से प्रियव्रत सिंह को उम्मीदवार बनाया और वे जीतकर विधायक बने. उन्हें कुल 59460 वोट मिले. प्रियव्रत सिंह ने भारतीय जनता पार्टी के पहली बार के उम्मीदवार जगन्नाथ सिंह तोमर को 9187 वोटों से हराया. 2008 में कांग्रेस ने फिर से प्रियव्रत सिंह को उम्मीदवार बनाया और वे फिर जीतकर विधायक बने. उन्होंने बीजेपी के उम्मीदवार जगन्नाथ सिंह को 13627 वोटों से हरा दिया. आखिरकार बीजेपी ने 2013 में फिर से कुंवर हजारीलाल दांगी को टिकट दिया और उनका दांव सही बैठा. इस बार दांगी जीते और दो बार के कांग्रेस विधायक व इस बार उम्मीदवार प्रियव्रत सिंह को उन्होंने 11479 वोटों से हार दिया. बीजेपी ने 2018 में भी हजारीलाल दांगी को प्रत्याशी बनाया, लेकिन इस बार कांग्रेस के उम्मीदवार प्रियव्रत सिंह ने अपनी सीट वापिस छीन ली. उन्होंने बीजेपी के प्रत्याशी हजारीलाल दांगी को कुल 29756 वोटों से हरा दिया.

खिलचीपुर का जातीय गणित: इस विधानसभा में पिछड़ा और सामान्य की बराबर टक्कर है. यदि सभी चुनाव को देखें तो खिलचीपुर सीट पर अब तक 13 विधानसभा चुनाव हुए हैं. इसमें से 9 बार कांग्रेस, 3 बार बीजेपी व जनसंघ और एक बार निर्दलीय को जीत मिली. इन 13 चुनाव में सौंधिया ठाकुर, दांगी, गुर्जर और पंवार समाज के प्रत्याशी ही जीतते आए हैं. यह सभी पिछड़ा वर्ग से आते हैं. इसके अलावा ट्राइबल व दलितों के वोट बड़ी संख्या में हैं, लेकिन वे अपना वर्चस्व नहीं बना पाए. ब्राह्मण वर्ग से भी एक बार विधायक बने हैं.

Last Updated : Sep 27, 2023, 4:52 PM IST

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