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160 साल बाद ऐसा संयोग, लीप इयर और मलमास एक साथ - क्या होता है अधिकमास

हर साल पितृ पक्ष के समापन के अगले दिन से नवरात्र का आरंभ हो जाता है, इस बार श्राद्ध पक्ष समाप्त होते ही अधिमास यानी मलमास लग जाएगा. इससे नवरात्र और पितृपक्ष के बीच एक महीने का अंतर आ जाएगा, ऐसा 160 साल बाद हो रहा है, वहीं लीप इयर और मलमास एक साथ आना भी 160 साल बाद हुआ.

160 years later Leap Year and Malamas together
160 साल बाद ऐसा संयोग

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Published : Sep 18, 2020, 9:48 AM IST

राजगढ़। हर साल पितृ पक्ष के समापन के अगले दिन से नवरात्र का आरंभ हो जाता है और घट स्थापना के साथ नौ दिनों तक नवरात्रों की पूजा होती है. यानी पितृ अमावस्या के अगले दिन से प्रतिपदा के साथ नवरात्र का आरंभ हो जाता है जो इस साल नहीं होगा. इस बार श्राद्ध पक्ष समाप्त होते ही अधिकमास यानी मलमास लग जाएगा. इससे नवरात्र और पितृपक्ष के बीच एक महीने का अंतर आ जाएगा. आश्विन मास में मलमास लगना और एक महीने के अंतर पर दुर्गा पूजा आरंभ होना ऐसा शुभ संयोग करीब 160 साल बाद होने जा रहा है. लीप वर्ष होने के कारण ऐसा हो रहा है.

160 साल बाद ऐसा संयोग

क्या होता है अधिकमास

वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी सूर्य के चक्कर 365 दिन और करीब 6 घंटे में पूरा करती है, हिंदू कैलेंडर के अनुसार इसे सूर्य वर्ष कहा जाता है, जबकी चंद्र वर्ष को 354 दिनों का माना गया है. ऐसे में हर साल सूर्य वर्ष और चंद्र वर्ष में करीब 11 दिनों का अंतर होता है. जो तीसरे वर्ष 1 महीने के बराबर हो जाता है. इसी अंतर को मिटाने के लिए हर 3 साल में एक चंद्रमास अस्तित्व में आता है, बढ़ने वाले इस माह को मलमास कहा जाता है. अधिक मास चंद्र वर्ष का एक अतिरिक्त भाग है जो हर 32 माह 16 दिन और 8 घंटे के अंतर में आता है.

अधिक मास को पुरुषोत्तम मास के नाम से भी जाना जाता है

कहते हैं कि हर मास में किसी न किसी देवता का निवास होता है और उस मास का महत्व उस देवता के अनुसार माना जाता है. भारतीय ऋषि-मुनियों ने अपने गणना पद्धति से हर चंद्रमास के लिए देवताओं का निर्धारण किया था, लेकिन इस मास को मलीन मान कर आधिपत्य स्वीकार करने के लिए कोई देवता आने नहीं आए. ऐसे में ऋषि-मुनियों ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की और उन्होंने यह आग्रह स्वीकार कर लिया, तब से इसे पुरुषोत्तम मास के नाम से जाना जाने लगा.

इसलिए महत्वपूर्ण माना गया है अधिक मास

ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि इस मास का एक अलग ही महत्व होता है, इस माह में ब्रम्हमुहूर्त में स्नान, पूरे माह का व्रत, पुराण, ग्रंथों का अध्ययन आदि करना लाभकारी होता है. अंतिम 5 दिन भगवान विष्णु की आराधना करते हुए व्रत रख, दान करने का काफी महत्व है. इस मास में दिए गए दान का पुण्य दोगुना प्राप्त होता है.

ये हैं इस बार के शुभ मुहूर्त

इस मास में प्राण प्रतिष्ठा, विवाह, मुंडन, नववधू, गृह प्रवेश, यज्ञ पावती, नामकरण संस्कार नहीं किए जाते हैं, लेकिन इस मास में पूजा पाठ, तीर्थ, स्नान, दान-पुण्य और खरीदी के लिए ये काफी महत्वपूर्ण होता है. इस माह में 30 दिनों में 18 मुहूर्त ऐसे हैं, जिनमें क्रय विक्रय, जमीन की खरीदी, वाहन खरीदी का काफी महत्व है. इस माह में पुष्य नक्षत्र के दिन खरीदी का भी काफी महत्व माना गया है.

160 सालों बाद लीप ईयर और अश्विन मास एक साथ

अंग्रेजी कैलेंडर में भी जहां सूर्य के गतिमान के बराबर करने के लिए फरवरी के माह में 1 दिन की बढ़ोतरी की जाती है, जो फरवरी में 29 फरवरी के रूप में जाना जाता है, जिसे लीप ईयर कहा जाता है. वहीं हिंदू कैलेंडर में भी 3 वर्षों बाद एक मास को बढ़ाया जाता है, इसे मलमास, अधिमास, पुरुषोत्तम मास कहा जाता है. इस साल ऐसा संयोग है कि लीप ईयर और अधिक मास एक ही साल में हुए. इससे पहले लीप ईयर और अधिक मास 160 साल पहले 1860 को साथ में आए थे.

इस तरह होती है पूजा

इस माह में पवित्र नदियों के किनारे पर जाकर लोग अपना समय व्यतीत करते हैं और पवित्र नदियों में स्नान करने के पश्चात पीपल के वृक्ष की पूजा की जाती है. इस माह में पूरे 30 दिन व्रत रखा जाता है और एक समय पर भगवान विष्णु की कथा का पाठ भी किया जाता है. अंतिम 5 दिनों में जल आहार करते हुए इसका व्रत रखा जाता है और अंतिम दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है, जिसमें भगवान को मालपुए का भोग लगाया जाता है और फिर पंडितों और गरीबों को दान दिया जाता है.

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