रायसेन।शिक्षक समाज का दर्पण होता है, देश और समाज के निर्माण में उसकी मुख्य भूमिका होती है...अक्सर किताबों में पढ़ी जाने वाली इन लाइनों को रायसेन जिले के आदिवासी बाहुल्य टोले सालेगढ़ में पदस्थ एक शासकीय शिक्षक ने चरितार्थ कर दिखाया है. अनलॉक-2 में अभी भले ही स्कूल शुरू नहीं हुए हैं, लेकिन बच्चों की पढ़ाई के लिए सरकार ने शासकीय स्कूलों में किताबें भेजना शुरू कर दिया है.
बैलगाड़ी से किताबें लेकर पहुंचा शिक्षक
नेशनल हाईवे- 12 पर सुल्तानपुर जोड़ पर मुख्य मार्ग से 13 किमी अंदर बाड़ी ब्लॉक में स्थित सालेगढ़ टोले के प्राथमिक स्कूल में बच्चों की किताबें पहुंचाना यहां पदस्थ शिक्षक नीरज सक्सेना ने जरूरी समझा, ताकि बच्चे अपने घर पर पढ़ाई कर सकें. इस शिक्षक ने साढ़े चार किमी का कीचड़ युक्त रास्ता खुद बैलगाड़ी हांककर तय किया और किताबें स्कूल तक पहुंचाई. इतना ही नहीं यहां किताबें लाने के बाद बच्चों के घर-घर जाकर किताबें वितरित कर स्कूल न खुलने तक उन्हें पढ़ने के लिए प्नेरित भी किया.
शिक्षक को छात्रों के भविष्य की चिंता
शिक्षक की बच्चों के प्रति यह चिंता मिसाल बन गई है. स्कूल में आदिवासियों के 94 बच्चे पढ़ते हैं. यह स्कूल ईंटखेड़ी पंचायत में आता है. सालेगढ़ में आदिवासियों और भील जाति के ही 25 परिवार रहते हैं. इनके अलावा आसपास के जंगल में टपरे बनाकर रहने वाले 20 परिवारों के मिलाकर कुल 94 बच्चे पिछले साल तक यहां पढ़ाई करने आते रहे हैं.
इस बार कोरोना महामारी के कारण अभी तक स्कूल नहीं खुले हैं, लेकिन नीरज अब तक तीन बार प्रत्येक बच्चे के घर-घर जाकर संपर्क कर चुके हैं. 11 साल पहले इस प्राथमिक शाला में पदस्थ हुए नीरज सक्सेना ने अपनी लगन और मेहनत से इस स्कूल को प्राइवेट स्कूल की तर्ज पर लाकर खड़ा कर दिया है. पहाड़ी क्षेत्र में बना ये स्कूल चारों तरफ फल-फूलदार पेड़-पौधों के लिए पहचाना जाता है.
किताबें लेकर पहुंचा शिक्षक शिक्षकीय दायित्व बन गया मिसाल
शिक्षक की कुछ अच्छा करने की जिद और जुनून ने यहां की तस्वीर ही बदल दी है. नीरज के इन प्रयासों से बच्चे और उनके परिजन ऐसे जुड़े हैं कि, वे हर मामले में आगे आकर स्कूल की चिंता करते हैं. नीरज का पर्यावरण प्रेम और शिक्षकीय दायित्व तो मिसाल बन ही गया है, वे नवाचार करने में भी पीछे नहीं रहते हैं. उन्होंने यहां स्वयं के व्यय पर अलग-अलग तख्तियां लगवाई हैं, जिन पर सामान्य ज्ञान से लेकर गणित की अवधारणा और मुहावरे तक लिखे हैं, ताकि आते-जाते बच्चे इन्हें पढ़कर कुछ नया सीख सके.