रायसेन। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 200 लोगों को केरल से यहां विस्थापित कर बसाया था. कुछ परिवार यहां का वातावरण नहीं समझ पाए और परेशानी के कारण चले गए, जो परिवार ईंटखेड़ी पंचायत में बसे थे. उन्हें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा. कभी खाने को नहीं था, तो कभी सोने और पहनने के लिए कपड़े नहीं थे. इन परिवारों ने हर मुश्किल का सामना करते हुए अपने बच्चों को पढ़ा लिखा कर आर्मी और स्वास्थ विभाग में भेजा.
70 प्रतिशत लोग सरकारी जॉब में
बता दें कि जब इन परिवारों पर कर्ज बड़ा, तो एमपी गवर्नमेंट ने वसूली के नोटिस दिए. राहत की आस लिए यह परिवार इंदिरा गांधी के पास पहुंचे. उसके बाद केंद्र सरकार ने इनका कर्ज अपने ऊपर ले लिया और जमीन का भी मालिकाना हक दिलाया. जिसके बाद कुछ परिवार जमीन बेचकर, भोपाल, मंडीदीप, रायसेन और विदिशा में जाकर बस गए. बता दें कि यहां के 70 प्रतिशत लोग सरकारी जॉब में हैं. इन लोगों ने वर्षो के बाद यहां के वातावरण को समझा और धीरे-धीरे खेती करना शुरू किया. अब आलम ये है कि आर्मी से रिटायर्ड होने के बाद लोग खेती कर रहे हैं. साथ ही खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं.
गांव के अधिकतर युवा आर्मी में
देश में जब किसी परिवार का कोई युवा आर्मी में भर्ती होकर देश सेवा का संकल्प लेता है तो, न सिर्फ जवान बल्कि उसके परिवार के साथ उसका पूरा गांव गर्व महसूस करता है, ऐसा ही एक गांव ईंटखेड़ी है, जहां एक या दो नहीं बल्कि लगभग हर परिवार के सदस्य ने फौज में रहकर देश की सेवा की है.
महिलाएं भी समाज सेवा में आगे
बता दें कि आज भी इस गांव में बसे कैरेलियन परिवारों के लगभग आधा दर्जन युवा फौज में हैं. और देश की सीमा पर दुश्मन के दांत खट्टे कर रहे हैं. यह परंपरा आज की नहीं, बल्कि आजादी के बाद से ही शुरू हुई थी. जब केरल के कुछ परिवारों को यहां लाकर बसाया गया था, तब से पुरुष ही नहीं इस गांव की अधिकतर युवतियों ने भी नर्स बनकर समाज सेवा का धर्म निभाया है. आज रायसेन के जिला अस्पताल सहित भोपाल के हमीदिया अस्पताल, सुल्तानिया अस्पताल जैसे अन्य अस्पतालों में ईंटखेड़ी की युवतियां और महिलाएं नर्स के रूप में सेवा कर रही हैं.
तत्कालीन पीएम ने बसाया
दरअसल, सन 1955 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने केरल से लगभग 200 लोगो को यहां विस्थापित कर बसाया था. बाद में परिवारों की संख्या बढ़ती गई, आज यहां मलयाली समाज के 60 परिवार हैं. हालांकि, अन्य समाजों के परिवार भी यहां हैं. यहां फौज से रिटायर होने के बाद खेती-किसानी में जाकर देश की सेवा करना ईटखेड़ी के युवाओं की परंपरा रही है.