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यहां मनाई जाती है शहीद संक्रांति, तिरंगे की शान के 4 लोगों ने दी थी शहादत

रायसेन जिले के बोरास में मकर संक्रांति पर लगने वाले मेले को शहीदों के नाम से जाना जाता है, इतना ही नहीं यहां इसे शहीद संक्रांति के रूप में मानाया जाता है.

fair on name of martyrs in Raisen district on Makar Sankranti
अनोखी मकर संक्रांति

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Published : Jan 15, 2020, 1:49 PM IST

रायसेन। जिले के उदयपुरा से उत्तर दिशा में नर्मदा के तट पर स्थित बोरास में प्राचीन काल से मकर सक्रांति का मेला लग रहा है. इस मेले ने 14 जनवरी 1949 को इतिहास बनते हुए देखा है. एक ऐसा इतिहास जिसमें देश की शान में चार नौजवानों ने अपनी जान कुर्बान कर दी. लेकिन तिरंगे को झुकने नहीं दिया.

शहीदों की संक्रांति


देश सन 1947 को आजाद हो गया था, लेकिन मध्यप्रदेश के 2 जिले रायसेन और सीहोर भोपाल नवाब हमीदुल्ला के गुलाम थे. इस गुलामी को खत्म करने के लिए तत्कालीन रियासत भोपाल के नागरिकों ने जो आंदोलन चलाया था, उसे इतिहास में भोपाल विलीनीकरण आंदोलन के नाम से जाना जाता है. भोपाल में ये आंदोलन जनक्रांति का रूप धारण कर उग्र हो गया, नवाबी कार्यालयों पर तिरंगा फहराना और वंदे मातरम गाने पर गिरफ्तारी और लाठी चार्ज किया जाता था.


बोरास में 14 जनवरी 1949 को जब नवाब शाही भोपाल राज्य के पतन की कहानी लिख गया. यहां मकर सक्रांति पर लगने वाले मेले को शहीदों के नाम से इसलिए जाना जाता है, क्योंकि इसी दिन भोपाल नवाब के विरुद्ध चलाए जा रहे विलीनीकरण आंदोलन में 4 नौजवानों ने अपनी शहादत दी थी

इसलिए किया जाता है याद

14 जनवरी 1949 को मकर सक्रांति मेले में क्षेत्र के युवाओं का उत्साह चरम पर था. नर्मदा किनारे बोरास घाट पर मेला भरा हुआ था, इस मेले में भोपाल नवाब के खिलाफ विलीनीकरण आंदोलन के युवाओं ने झंडा वंदन और सभा का आयोजन किया. झंडा वंदन के दौरान बैजनाथ गुप्ता बिजली बाबा ने झंडा वंदन गीत गाया, तभी जाफर अली ने सभा स्थल पहुंचकर झंडा उतारने और सभा बंद करने की चेतावनी दी, जिसकी परवाह ना करते हुए 16 साल के छोटेलाल ने आगे आ गए. तभी थानेदार ने गोली चलाने का आदेश दे दिया. इस गोलीकांड में छोटेलाल ने सबसे पहले तिरंगे की शान में अपनी जान गंवाई.


गोलीकांड के दौरान झंडा सुल्तानगंज के 25 वर्षीय वीर धन सिंह राजपूत ने थाम लिया और पुलिस ने अगली गोली धन सिंह के सीने में दाग दी. इसी क्रम में तीसरे शहीद हुए 30 वर्षीय मंगल सिंह, तीन युवाओं के शहीद होने के बावजूद झंडा नीचे नहीं गिरा. चौथे युवक ग्राम भुआरा निवासी विशाल सिंह ने थामा और गोलीबारी जारी रही. विशाल सिंह को दो गोलियां लगीं और वो भी शहीद हो गए.


इस दौरान पुलिस क्रूरता पर उतर आई और धारदार हथियार (संगीन) उसके पेट में उमेठ दी गई, उसके बावजूद विशाल सिंह ने झंडा झुकने नहीं दिया और नर्मदा किनारे रेत में झंडा गाड़ दिया. कहा जाता है कि ये गोली कांड भोपाल नवाब शाही के पतन का कारण बना.

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