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पन्ना टाइगर रिजर्व के 14 बाघों को पहनाया जा रहा GPS सैटेलाइट रेडियो कॉलर

पन्ना टाइगर रिजर्व में इन दिनों बाघों को सैटेलाइट रेडियो कॉलर पहनाने का काम चल रहा है. इसके लिए दिन भर बाघों को लोकेट कर ट्रेंकुलाइज किया जाता है. पन्ना टाइगर रिजर्व प्रबंधन को केंद्र सरकार के द्वारा बीते माह 14 बाघों को ऑटो सैटेलाइट रेडियो कॉलर पहनाने की अनुमति प्रदान की गई थी, जिसके बाद से यहा काम जारी है.

Panna Tiger Reserve
पन्ना टाइगर रिजर्व

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Published : Jan 10, 2021, 11:05 PM IST

पन्ना। मध्य प्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व ने बाघों के संसार बसाने में देश दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बनाई है. यहां बाघों की सुरक्षा उनकी देख-रेख में प्रबंधन का बहुत बड़ा योगदान रहा है. बदलते समय के साथ यहां टेक्नोलॉजी में भी कई बदलाव हुए हैं. इन बदलावों में से एक है बाघों की लोकेशन देने वाला जीपीएस ऑटो सैटेलाइट रेडियो कॉलर. अब नई तकनीक के सैटेलाइट ऑटो रेडियो कॉलर बाघों की देख-रेख, लोकेशन के लिए पहनाए जा रहे हैं. पन्ना टाइगर रिजर्व प्रबंधन को केंद्र सरकार के द्वारा बीते माह 14 बाघों को ऑटो सैटेलाइट रेडियो कॉलर पहनाने की अनुमति प्रदान की गई थी, जिसके बाद से प्रबंधन लगातार बाघों को कॉलर पहनाने प्रयास कर रहा है. अभी तक पन्ना टाइगर रिजर्व के दो बाघों को कॉलर पहनाए जा चुके हैं. आगे भी बाघों को लोकेट कर रेडियो कॉलर पहनाने का काम प्रबंधन जारी रखेगा.

बाघों को पहनाई जा रही GPS सैटेलाइट रेडियो कॉलर

2008-09 में बाघविहीन हो गया था पन्ना टाइगर रिजर्व

पन्ना टाइगर रिजर्व में अगर बाघों की संख्या की बात करें तो आज के समय 63 से ज्यादा बाघ यहां मौजूद हैं. पन्ना टाइगर रिजर्व वर्ष 2008-09 में बाघविहीन हो गया था. जिसके बाद से तत्कालीन प्रबंधन व शहर वासियों की मदद से पन्ना टाइगर रिजर्व में फिर से बाघों का संसार बसाने का कार्य शुरू हुआ और बाघ पुनर्स्थापना योजना के तहत ये काम सफलतापूर्वक किया गया. योजना की वजह से आज 10 वर्षों में पन्ना टाइगर ने देश और दुनिया में एक मिसाल पेश की है.इसी का नतीजा है कि पन्ना टाइगर रिजर्व में आज 63 से ज्यादा बाघ मौजूद हैं और देश दुनिया से आने वाले पर्यटकों को बाघों के आसानी से दीदार हो रहा है.

दो बाघों को पहनाया कॉलर

पन्ना टाइगर रिजर्व में अब बाघों की सुरक्षा, उनकी देख-रेख, उनकी जीवन शैली के अध्ययन के लिए केंद्र सरकार द्वारा 14 बाघों को जीपीएस सैटेलाइट ऑटो रेडिओ कॉलर पहनाने की अनुमति पिछले महीनों में दी थी, जिसके बाद से एक माह के अंदर प्रबंधन ने दो बाघों को रेडियो कॉलर सफलतापूर्वक पहना दिए हैं, जिसमे बाघिन पी-213(63) और बाघ 234(61) शामिल हैं. प्रबंधन लगातार बाघों की लोकेशन ले रहा है जैसे ही बाघ लोकेट होते हैं वैसे ही उन्हें रेडियो कॉलर पहना दिया जाता है.

इस तरह पहनाया जाता है कॉलर

बाघों को रेडियो कॉलर पहनाने की प्रक्रिया बड़ी जटिल होती है. सबसे पहले बाघ को लोकेट करने के लिए प्रबंधन के अधिकारियों कर्मचारियों को दो दिन पहले से बाघ के पीछे हाथियों के सहारे घूमना पड़ता है. उसके बाद जब बाघ की लोकेशन मिल जाती है, तब वन्यप्राणी डॉक्टर की टीम और रेस्क्यू टीम के साथ अधिकारियों की मौजूदगी में हाथियों पर बैठकर बाघ को इंजेक्शन देकर ट्रेंकुलाइज किया जाता है. ट्रेंकुलाइज होते ही बाघ को चारों तरफ से हाथियों से घेर कर एक टीम उसके पार जाकर चैक करती है. फिर कहीं जाकर बाघ को रेडियो कॉलर पहनाकर जंगल में छोड़ दिया जाता है. इस प्रक्रिया में कभी-कभी दिनभर लग जाता है.

जीपीएस ऑटो सैटेलाइट रेडियो कॉलर की खूबियां

केंद्र सरकार ने जिस रेडियो कॉलर पहनाने की अनुमति प्रदान की है. उसकी खूबियों की बात जाए तो यह जीपीएस ऑटो सैटेलाइट रेडियो कॉलर है जो ऑटो मोड में चलते हैं और आसानी से बाघों की लोकेशन देंने में सक्षम हैं. अगर कभी इन ऑटो सैटेलाइट रेडियो कॉलर को बाघों से अलग करना है तो यह ऑटो मोड में रहते हैं, जिसे मात्र एक कमांड भेजकर अलग भी किया जा सकता है. प्रबंधन के द्वारा इससे बाघो की सुरक्षा के साथ साथ इन जीपीएस रेडियो कॉलर के माध्यम से बाघों की दिनचर्या के अध्ययन के लिए भी इनका उपयोग किया जा रहा है.

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