पन्ना। वर्ष 2008 में बाघ विहीन हो चुके पन्ना टाइगर रिजर्व के बाघ टी-3 ने फिर नई इबारत लिखी. लंबी चौड़ी कद काठी वाले बाघ, जिसकी एक दहाड़ से जंगल थर्रा उठता. यह बाघ जहां से गुजर जाए, वहां जानवर सहम जाया करते थे. हुकूमत की यह दास्तां एक दशक से चली, यही सब खूबियां है फादर ऑफ पन्ना टाइगर रिजर्व यानी बाग टी-3 की. फादर इसलिए कि, बाघ विहीन हो चुके पन्ना में जो 80 से ज्यादा बाघ हैं, सब इसी के वंशज हैं. दुर्भाग्य यह है कि, औसत उम्र पार कर 18 साल में प्रवेश कर चुका यह पितामाह, गुमनामी की जिंदगी जी रहा है. उसी की संतानों ने उसे खदेड़ दिया.
बाघिन टी 1 और टी 2 ने बाघ टी 3 के साथ मिलकर बढ़ाया कुनबा: विभाग को टाइगर रिजर्व गुलजार करने वाले पितामह की फिक्र नहीं है और अब यह बाघ गुमनामी की जिंदगी जी रहा है. वर्ष 2008 यह वही साल था, जब पन्ना बाघ विहीन हो गया था. फिर 2009 में शुरू हुई बाघ पुनर्स्थापना योजना में बांधवगढ़ से बाघिन टी-1 और कान्हा से बाघिन टी-2 और पेंच से नर बाघ टी-3 को लाया गया. बाघ टी-3 के संपर्क में आने के बाद बाघिन टी-1 ने अप्रैल 2012 में सबसे पहले खुशखबरी दी और 4 शावकों को जन्म दिया, फिर बदली बाघ विहीन हो चुके पन्ना टाइगर रिजर्व की तस्वीर. बाघिन टी-1 ने ही फरवरी 2015 में दूसरी बार में 4 शावक जन्मे. टी-2 ने पहले लिटर में चार और दूसरे लिटर में 2 शावकों को जन्म दिया.